कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
आपके घर के बड़े-बूढ़ों ने ज़रूर युद्ध के समय ऐसा माहौल देखा होगा जब अपने ही घरों में लोग बंद हो जाया करते थे और उन्हें घर की सारी लाइट्स बंद करके अंधेरे में रहना पड़ता था।
ऐसा मेरे और आपके जीवन में शायद पहली बार हुआ है जो हो रहा है। आपके माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी ने ज़रूर युद्ध के समय ऐसा माहौल देखा होगा जब अपने ही घरों में लोग बंद हो जाया करते थे और शाम होते-होते उन्हें घर की सारी लाइट्स बंद करके अंधेरे में रहना पड़ता था। लेकिन बड़े भी कह रहे हैं कि ये जो हो रहा है, उन्होंने भी पहले कभी ऐसा अनुभव नहीं किया था। तो आप समझ सकते हैं कि माहौल साधारण नहीं है।
कई दिन हो चुके हैं, कई दिन बचे हैं और ऐसी आशंका है कि शायद लॉकडाउन के ये दिन और बढ़ भी सकते हैं। लेकिन धैर्य रखना बेहद ज़रूरी है। बस ये याद रखना है कि जैसे हर रात के बाद सवेरा होता है वैसे ही हर मुश्किल घड़ी के बाद ख़ुशी के पल भी ज़रूर आते हैं।
लॉकडाउन में अब तक जो समय मैंने बिताया वो साझा करना चाहती हूं। लॉकडाउन की ख़बर मिलते ही मैं और मेरे पति दिल्ली से अपने गृहनगर पहुंच गए। हम दोनों एक ही शहर से हैं जो दोनों परिवारों के लिए थोड़ी राहत की बात है। शुरुआत के कुछ दिन तो मैं अपने माता-पिता के साथ ही रही। लॉकडाउन की लाख बुरी बातें होंगी, लेकिन उनमें से सबसे अच्छी ये रही कि मैंने अपने माता-पिता के साथ कई सालों बाद इतने दिन एक साथ गुज़ारे और मुझे बेहद अच्छा लगा।
हमने साथ में बैठकर रामायण और महाभारत देखी। अच्छी-अच्छी बातें की। अपने बचपन की किताबें और तस्वीरें देखकर मैंने कई यादें ताज़ा की। मेरे पिता संस्कृत के अध्यापक हैं और उन्होंने अपना पूरा जीवन संस्कृत का प्रचार-प्रसार करने में ही गुज़ारा है। अभी भी जब भी मौका मिलता है तो जगह-जगह संस्कृत शिविरों में जाकर लोगों को इसकी शिक्षा देते हैं।
बचपन में मैं और मेरी बहन अपनी टूटी-फूटी संस्कृत में ही बात करते थे इसलिए मैंने सोचा ये अच्छा मौका है जब मैं उनसे थोड़ी संस्कृत फिर से सीख सकती हूं। उन्होंने बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी मुझे पढ़ाया और संस्कृत भारती के 6 महीने के डिस्टेंस कोर्स में मैंने एडमिशन ले लिया। इस कोर्स के खत्म होने पर मुझे सर्टिफिकेट मिल जाएगा। आपकी भी इच्छा हो तो ये कोर्स कर सकते हैं केवल 320 रुपये की फीस में।
मेरी मम्मी ने मुझे रोज़ कुछ-कुछ नया बनाकर खिलाया। उनकी एक नई हॉबी के बारे में मैंने जाना कि उन्हें कपड़े प्रेस करना बहुत अच्छा लगता है। जब मैंने उनसे कहा कि मैं आपका हाथ बंटा देती हूं तो उन्होंने एक क्यूट सी हंसी के साथ कहा, “नहीं ये मैं ही करूंगी। तू कुछ और कर ले क्योंकि मुझे कपड़े सजा कर रखना बहुत अच्छा लगता है।”
मैं हमेशा से जिज्ञासु स्वभाव की रही हूं और मुझे कुछ नई-नई चीज़ें सीखने का शौक रहता है, इसलिए मैंने मम्मी से थोड़ा सा स्वेटर बुनना सीखा। हालांकि इतना वक्त नहीं मिला कि मैं इसमें ट्रेन हो सकी लेकिन मज़ा आया। घर रहते हुए जब मैं अपने पापा की किताबों को देख रही थी तो मुझे लगा कि हम अब डिजिटल वर्ल्ड के कारण किताबों से थोड़ी दूर होते जा रहे है। अपने स्कूल-कॉलेज के दिनों में मुझे किताबें पढ़ने का शौक था लेकिन धीरे-धीरे नौकरी के बाद ये छूट सा गया। तो मैंने सोचा क्यों ना इस वक्त में कुछ अच्छी किताबें पढ़ लूं। तो मैंने 3 किताबें छांटी और उन्हें आजकल पढ़ रही हूं। सच मानिए, ऐसा लग रहा है जैसे फिर से किताबें पढ़ने का मेरा शौक जाग गया हो।
यूं ही हंसते-खेलते करीब 10 दिन अपने माता-पिता के साथ गुज़ारने के बाद फिर मैं अपने ससुराल आ गई। यहां भी ऐसा पहली बार था जब मैं शादी के बाद इतना लंबा समय गुज़ारूंगी। मेरे सास-ससुर बेहद संवेदनशील और सरल स्वभाव के हैं। यहां भी मुझे अपना ऑफिस और घर का काम करने के साथ-साथ लिखने और पढ़ने का वक्त आराम से मिल जाता है। इसके अलावा मैंने और मेरे पति ने आजकल बैडमिंटन खेलना और सैर करना शुरू कर दिया है। दिल्ली में जॉब के साथ ना ही इतना वक्त मिल पाता है और ना ही वहां के फ्लैट्स में इतनी खुली-खुली छतें हैं जहां हम खेल सकें। इसलिए बैडमिंटन के ज़रिए हम अपने स्वास्थ्य की तरफ़ भी ज्यादा ध्यान दे पा रहे हैं।
आजकल बाहर का खाना-पीना भी एकदम बंद हैं इसलिए बस घर का बना खाना ही खाते हैं। एक बात तो माननी पड़ेगी बाहर का खाना देखकर भले ही मुंह में पानी आ जाए और खाने को जी ललचाए लेकिन उसके साइड इफेकट्स झेलने से बेहतर है घर का स्वादिष्ट खाना खाया जाए और अगर कभी मन करें तो घर में ही सामान लाकर पिज्ज़ा या बर्गर भी बनाने की कोशिश की जा सकती है।
मेरे देवर और ननद के साथ मैं बिल्कुल दोस्तों की तरह रहती हूं और क्योंकि उनकी और मेरी उम्र में काफी सालों का फासला है, इसलिए मुझे उनसे और उन्हें मुझसे कई नई बातें सीखने को मिलती हैं। मैं और मेरे जैसे 90 के दशक में पैदा होने वाले लोग थोड़े पुराने, थोड़े नए हैं इसलिए अपने माता-पिता और छोटे भाई-बहनों को किसी और से बेहतर समझ सकते हैं। या यूं कहे कि हमारी जेनेरेशन एक बांध की तरह है जिसका एक रास्ता पुरानी सड़क पर ले जाता है और एक नई सड़क की ओर।
कुल मिलाकर मुझे ये वक्त अच्छा लग रहा है। हां, बाहर ना निकल पाना और पूरा दिन घर में ही बंद रहना कभी-कभी मुश्किल भी लगता है लेकिन ये हम किसी और के लिए अपनी ही भलाई के लिए कर रहे हैं। इस वक्त देश को हमारी ज़रूरत है और हमें अपने इस कर्तव्य का मज़बूती से निर्वाह करना होगा। वो दिन मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी जब मेरे देश ने अपने घरों से बाहर निकलकर कोरोना के ख़िलाफ़ इस लड़ाई के असली कर्मवीरों का तालियां और थालियां बजाकर अभिनंदन किया था। हमें ऐसे ही एक साथ इस जंग को जीतना है और अदृश्य दुश्मन को हराना है।
तब तक लॉकडाउन के इन दिनों में कोई नई चीज़ सीखें और अपने परिवार के साथ अच्छा वक्त गुज़ारें। साथ ही अपने आस-पास हर ज़रूरतमंद की यथासंभव मदद भी कीजिएगा। आपकी और आपके परिवार की सुरक्षा की कामना करती हूं।
मूल चित्र : Canva
read more...
Please enter your email address