कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

सब छोड़िये, आज ज़रा प्यार और रोमांस की बातें करते हैं …

कहने को तो शादी के सात साल बाद हमारे बीच बहुत कुछ बदल गया था लेकिन फिर एक दिन अलमारी की सफाई करते करते मेरे हाथ कुछ ऐसा कि मैं वहीं रुक गयी...

कहने को तो शादी के सात साल बाद हमारे बीच बहुत कुछ बदल गया था लेकिन फिर एक दिन अलमारी की सफाई करते करते मेरे हाथ कुछ ऐसा कि मैं वहीं रुक गयी…

पहले रोमांस था और आज राशन है…

शादी के सात साल बाद बहुत कुछ बदल गया।  फ़ोन पर ‘पहली मुलाक़ात’, ‘पहला गिफ्ट’, ‘पहली बारिश’ की बजाय ‘आते वक़्त धनिया टमाटर लेते आना’, ‘डायपर बड़े साइज़ वाला लेना है’, बातें ज्यादा आम होने लगीं।   सुकून से शाम की चाय पर एक दुसरे को तकते अपने भविष्य के सपने सजाते-सजाते आज पांच मिनट बैठकर बात नहीं कर पाते। बेधड़क मोटरसाइकिल लेकर लोनावाला के लिए निकल जाते भरी बारिश में, आज बाज़ार जाने के लिए दो दिन पहले प्लानिंग करते है। कितना कुछ बदल गया, सब कुछ पहले है, घर, परिवार, बच्चे, रिश्ते, जिम्मेदारियां, बस अगर कुछ नहीं है तो ‘रोमांस’…

अलमारी की सफाई करते-करते, हाथ लगा …

अलमारी की सफाई करते करते एक दिन हरे रंग का  पुराना कागज़ हाथ लगा। जैसे ही खोलकर पढ़ने वाली थी कि पीछे से कवी (मेरे पति) आ गए और तुरंत कागज़ छीनकर अपने पास ले लिया। कौतुहल वश मैं उनसे कागज़ लेने की ज़द्दोज़हद करने लगी। बड़ी नाकाम कोशिशों के बाद आखिर हार मनवाकर वो मुझे कागज़ देने को राज़ी हो गए।

क्या था उस हरे कागज़ में…

वो हरा कागज़ पहला ‘हाथ से बनाया हुआ’ कार्ड था, जो मैंने उन्हें शादी से पहले दिया था। मुझे खुद याद नहीं था वो कार्ड। 

“ये तो मेरी ही लिखावट है!” चौंक कर मैंने कहा। 

“हाँ! तुमने पहली बार मेरे लिए कुछ लिखा था”, कह कर वो फ़ोन में देखने लगे, चुप चाप, शांत, तल्लीन। घर की एक चीज़ मेरे बगैर बाताये उन्हें मिलती नहीं और इतना सा कागज़ संभाल कर रख लिया? वो भी बेतरतीब सा? कुछ ज्यादा ख़ास नहीं, बिगड़ी सी लिखावट में? और मैं उन्हें देखती रही। वो मगन थे अपने फ़ोन में। 

इन्हीं छोटी-छोटी यादों को सहेज लेना शायद प्यार है

यही छोटी छोटी यादों को सहेज लेना शायद प्यार है उनके लिए। 

‘रोमांस’ शायद समय के साथ फीका पड़ सकता है पर ‘प्यार’ कभी नहीं। हम अक्सर रिश्तों को उनके दिखाने या जताने के तरीकों से आंक लेते हैं, लेकिन वो हमेशा उसी तरह हमारे साथ होते हैं जैसे फूलों में सुगंध। सूखने के बाद भी किताब के उस पूरे पन्ने को महका देती हैं। प्यार दिखावे की उन सभी सीमाओं से परे है।

हो सकता है कभी ये समर्पण मांगता है, कभी सुकून, कभी समय, लेकिन हमेशा बिखरा होता है, हमारे आसपास, हमारे अन्दर। उन छोटी-छोटी सारी बातों में, “तुम टाइम पर खाना क्यूँ नहीं खाती” से लगाकर “तुम ही देख लो ना” तक। गाजर के हलवे में इलाइची की महक सा है प्यार, दिखता नहीं लेकिन कब इसकी खुशबू हलवे का स्वाद और महक दोनों बढ़ा देती है, पता ही नहीं चलता। 

मूल चित्र : Pexels 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Shweta Vyas

Now a days ..Vihaan's Mum...Wanderer at heart,extremely unstable in thoughts,readholic; which has cure only in blogs and books...my pen have words about parenting,women empowerment and wellness..love to delve read more...

30 Posts | 490,730 Views
All Categories