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रेडियो जॉकी आकांशा सक्सेना को रेडियो से जुड़े हुए 15 साल हो गये हैं और लगातार बेहतरीन परफॉर्मेंस के लिए इन्हें सम्मानित किया जा चुका है।
शुरुवात इन्होंने अपने ऑडिशन में प्रीति ज़िंटा के डायलॉग ‘सलाम नमस्ते’ से करी और आज इनको रेडियो से जुड़े हुए 15 साल हो गये हैं। इनके रेडियो में लगातार बेहतरीन परफॉर्मेंस के लिए इन्हें लाडली अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
आज भी बहुत सी लड़कियों के सपने पूरे नहीं हो पाते, उन्हें उनके मर्ज़ी के प्रोफेशन में नहीं जाने दिया जाता और जब बात हो किसी ऐसे प्रोफेशन की जिसमें उन्हें फील्ड में जाना हो तो ये और भी मुश्किल हो जाता है। इन्हीं में से एक है मीडिया, जिसे देश का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। इसे लेकर आज भी समाज में बहुत गलतफहमियां फैली हुई हैं। लेकिन अब वक़्त आ चुका है कि इन्हें दूर करा जाये और हर महिला को उसके सपने पूरे करने की आज़ादी मिल सके।
इसी सिलसिले में नेशनल अवार्ड विनिंग रेडियो जॉकी आकांक्षा सक्सेना जी बात हुई। ये पिछले 15 वर्षों से मीडिया से जुड़ी हुई हैं। आइये जानते हैं इनसे हुए टेलीफोनिक इंटरव्यू के कुछ अंश जिसमें इन्होनें रेडियो से सम्बन्धित बहुत सी जानकारियां हमारे साथ साझा करीं :
मैं अप्लाई करने तो मार्केटिंग टीम के लिए गयी थी। लेकिन वहां मुझे बतौर रेडियो जॉकी ले लिया गया। मुझे इसके बारे में कोई आइडिया नहीं था। मुझे बस एक लाइन याद आ रही थी प्रीति ज़िंटा की – ‘सलाम नमस्ते।’ और उसी को फ्रेम करके मैंने अपना पहला ऑडिशन दिया था। तो बस यहीं से मेरा और रेडियो का सफर शुरू हुआ और मैंने सोचा नहीं था कि ये यहां तक पहुंच जायेगा।
नहीं मेरा अनुभव यही कहता है की मीडिया और परफार्मिंग आर्ट्स ( आप थिएटर भी करती हैं ) दो ऐसे फील्ड हैं, जहां आपके टैलेंट (हुनर) और हार्ड वर्क (कड़ी मेहनत) के बेसिस पर आपको आंका जाता है न कि जेंडर (लिंग) के बेसिस पर। अगर रेडियो की बात करें तो इसमें फीमेल वॉइस को भी उतनी ही दवज्जो दी जाती है जितनी मेल वॉइस को।
बिलकुल चुनती हैं। अगर हम देखें तो एक रेडियो स्टेशन में अगर 2 पुरुष होंगे तो 2 महिलायें भी होंगी। यह एक अच्छा करियर ऑप्शन है, उन सभी लड़कियों के लिए जो मीडिया से जुड़ी रहना चाहती हैं लेकिन हार्डकोर मीडिया में नहीं जाना चाहतीं।
आप ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन करें। चाहें तो जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन (पत्रकारिता एवं जनसंचार) का कोर्स भी कर सकती हैं या आजकल बहुत से कॉलेज में इसके डिप्लोमा कोर्स होते हैं। वो भी कर सकते हैं। लेकिन पढ़ाई इसमें सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।
आप एक अच्छे रेडियो जॉकी तब ही बन सकते है जब आप अच्छा पढ़ते हों। एक रीडिंग हैबिट यानि पढ़ने की आदत होनी बहुत ज़रूरी है। एक अच्छा रेडियो जॉकी हमेशा सेंसिबल बात बोलता है और साथ ही आपकी भाषा पर पकड़ होना बहुत ज़रूरी है। आप इंग्लिश, हिंदी और साथ ही रीजनल लैंग्वेज पर भी ध्यान दें। आप अख़बार पढ़ें, न्यूज़ चैनल देखें, जनरल नॉलेज आपकी अच्छी होनी चाहिए। बेसिकली खबर और शब्दों पर आपकी पकड़ अच्छी होनी चाहिए।
जब 2006 में, मैं इस फील्ड में आयी थी तब प्राइवेट एफ एम चैनल शुरू ही हुए थे, तो हर शहर में इसके ओपन ऑडिशन्स हो रहे थे, तो कह सकते हैं कि उस टाइम थोड़ा आसान था लेकिन अब ऐसा नहीं है। अगर आप के अंदर टैलेंट है, तो ही आपको लिया जायेगा। और आजकल तो सोशल मीडिया की वजह से आप आसानी से पता लगा सकते हैं कि किस चैनल की क्या ज़रूरतें हैं। और मीडिया में जाने के लिए कॉन्टेक्ट्स होना बहुत ज़रूरी है क्यूंकि इसमें एक्सपीरियंस बहुत मायने रखता है। तो जो लोग इसमें पहले से काम कर रहे हैं, ज़्यादातर उन्हीं को चांस मिलता है। लेकिन अगर आप में टैलेंट है तो आपको कोई नहीं रोक सकता।
शुरुवात में 15000 – 20000 रुपये तक आप कमा सकती हैं। और ये ब्रांड और शहर के हिसाब से भी अलग अलग होती है। अगर आप एक अच्छे ब्रांड और मेट्रो सिटीज़ में है तो सैलरी उसके हिसाब से होगी। और जैसे जैसे एक्सपीरियंस बढ़ेगा, सैलरी भी बढ़ जाती है।
इसमें सेल्स और मार्केटिंग का बहुत बड़ा रोल होता है, तो वो भी एक अच्छा करियर ऑप्शन है। साथ ही प्रोग्राम हेड और एग्जीक्यूटिव प्रोग्राम हेड, म्यूजिक टीम, टेक्निशंस की भी इसमें पोस्ट होती है। और इनफैक्ट रेडियो जॉकी से ज्यादा अच्छा पैसा इनमे होता है।
रेडियो जॉकी के बारे में कहा जाता है कि वो कुछ भी बोलते हैं लेकिन ऐसा नहीं है, एक अच्छा रेडियो जॉकी अपने 4 घंटे के प्रोग्राम के लिए कम से कम 2 घंटे प्री प्रोडक्शन को देते हैं।
दूसरी बात कहा जाता है कि ‘ऐंकर्स का क्या है, ये तो 4 घंटे आते हैं और साथ में दूसरी जॉब भी करते हैं‘, तो मैं उन सभी को बताना चाहूँगी की ऐसा बिलकुल नहीं है। हम भी फुल टाइम जॉब करते हैं। 4 घंटे अगर हम ऑन एयर आते है तो उसके पीछे घंटो की तैयारी, मीटिंग्स में भी समय लगता है।
साथ ही लोगों को लगता है कि रेडियो में तो बस विज्ञापन ही आते हैं। तो आप को बता दूं कि हमारे पास रेवन्यू जेनेरेट करना का इकलौता माध्यम सिर्फ यही होता है। लेकिन फिर भी हम कोशिश करते हैं कि कम से कम विज्ञापन चलाएं और जो हैं उन्हें एंटरटेनिंग फॉर्म में चलाएं।
अगर म्युज़िक की बात करें तो उसके पीछे भी एक पूरी टीम होती है जिन्हें क्रेडिट मिलना बहुत ज़रूरी है। और कहा जाता है कि मीडिया में पैसा नहीं है। लेकिन मैं बताना चाहूँगी कि रेडियो में अच्छा पैसा मिलता है अगर आप में टैलेंट है तो।
अगर कोई भी महिला जो मीडिया से तो जुड़ी रहना चाहती है लेकिन हार्डकोर जर्नलिज्म में नहीं जाना चाहती हैं तो उनके लिए ये बेहतरीन जगह है। और मेरा अनुभव कहता है कि रेडियो महिलाओं के लिए बहुत ही सेफ है। ज़्यदातर कंपनीज़ आपको पब्लिक शोज़ या किसी भी इवेंट के लिए जाने-आने की सुविधा देती है। और इसमें टैलेंट के आधार पर आपको चुना जाता है ना कि जेंडर के आधार पर। तो अगर आपको लगता है कि आप इस काबिल हैं कि लोगों को बांध सकती हैं तो आपको ज़रूर इसे चुनना चाहिए।
कहते है महिलायें अपनी आइडेंटिटी छिपाती हैं लेकिन ये भारत की पहली महिला रेडियो जॉकी हैं जिन्होंने ऑन एयर कहा था कि ये शादी शुदा हैं। इनका शो ‘Mrs. शर्मा’ बहुत ही पॉपुलर शोज़ में से एक रह चुका है। फिलहाल, ये एक सिंगर मदर है। ये कहती हैं कि रेडियो इनका पहला प्यार है और साथ ही ये अपने अन्य शौक भी पूरे करती हैं। ये बहुत ही ख़ूबसूरत कथक भी करती हैं और एक बेहतरीन थिएटर आर्टिस्ट भी हैं। इन्होनें ज़ी मीडिया एंटरटेनमेंट लिमिटेड के साथ भी काम करा हुआ है। और अभी ये बेंगलुरु के Fever 104 एफएम के साथ जुड़ी हुई हैं। इनके रेडियो में लगातार बेहतरीन परफॉर्मेंस के लिए इन्हे नेशनल अवार्ड (राष्ट्रीय पुरुष्कार) से भी सम्मानित किया जा चुका है।
मूल चित्र : RJआकांशा सक्सेना की एल्बम से / Canva
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
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