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रामायण को बार-बार देखने के बावजूद हम उसके मूल्यों को सिर्फ दूसरों पर ही क्यों थोपते हैं?

रामायण में प्रेम, अनुबंधन, और निस्वार्थता या असतित्व की बात कई बार की गई, तो इन नैतिक मूल्यों को हमनें क्यों इतनी आसानी से नजरअंदाज कर दिया?

रामायण में कई बार प्रेम, अनुबंधन, निस्वार्थता और असतित्व की बात की गई है, तो इन नैतिक मूल्यों को हमनें क्यों इतनी आसानी से नजरअंदाज कर दिया?

हमने देशव्यापी लॉकडाउन के पहले सप्ताहांत में प्रवेश किया है। COVID-19 के 3rd स्टेज में प्रवेश करने के डर से हम में से ज्यादातर लोग अपने घरों में या तो मन से या बेमन से छुपे हुए हैं। और फिर भी, चाहे आवश्यकता कहिये, जान-बूझकर या केवल ज़िद कहें, लोग लॉकडाउन का उल्लंघन करते हुए स्थिर संख्या में अपने घरों से बाहर निकलते हुए दिखाई देते हैं।

भूली-बिसरी मीठी यादें?

जब पुलिस बैटन और चिकित्सा विशेषज्ञों और (एक बार को) बेबस नेताओ की दलीलें काम नहीं कर रही हैं, तो लोगों को अपने घरों में रखने के लिए एक नए आईडिया का हाल ही में परीक्षण किया जा रहा है। लोकप्रिय पौराणिक शो रामायण जो 1990 के दशक में एक घरेलू नाम बन गया था, राष्ट्रीय लोक प्रसारक दूरदर्शन पर एक बार फिर प्रसारित किया जा रहा है। लोगों की मांग पर सूचना और प्रसारण मंत्री, प्रकाश जावडेकर ने इसकी घोषणा की।

1980 के दशक के अन्त में और 1990 के दशक के मध्य में जब ये टेलीविजन पर प्रसारित किया गया था, तब रामायण के शो ने लोगों को अपने घरेलू कामों को छोड़, अपने टीवी स्क्रीन पर बांधने के लिए ख्याति प्राप्त की। जब यह प्रसारित किया गया था उस समय सड़कें सुनसान हो जाया करती थीं, और जो लोग बाहर होते थे, वो एपिसोड देखने के लिए अपने घरों में आ जाते थे।

एक बुरा दुष्प्रभाव

1990 के दशक के प्रारंभ में, जब दूरदर्शन पर रामायण का पहला दौर समाप्त हुआ था (इसे समय-समय अंतराल के बाद पर दो बार प्रसारित किया गया था), तब लालकृष्ण आडवाणी ने देश में चारो तरफ़ राम रथ यात्रा (राजनीतिक और धार्मिक रैली) का नेतृत्व किया और हिंदुओ को इससे जुड़ने के लिए आग्रह किया, जिससे कि सदियों पुरानी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनवाया जा सके।

हम सब जानते हैं कि उसके बाद क्या हुआ। कार सेवकों द्वारा मस्जिद का धवस्त करना, फ़िर इसके कारण हुए दंगे, हिंसा के तुरंत बाद हुए धमाके, बलात्कार, और खून। ये ऐसी घटनाएं है जो इतने सालों बाद भी हमारी यादों से नहीं जाती हैं।

सवर्ण मूल्यों को थोपा गया?

यह समय, हिंदू धर्म के सबसे पुराने महाकाव्य, रामायण को भारतीय जनता के लिए इस माध्यम से पेश करना बहुत बढ़िया लगा था। लोग, विशेष रूप से उच्च जाति के हिंदू परिवारों के पुरुष, सम्मान, बलिदान(दूसरों का) और उनकी औरतों की तरफ नज़र रखने वाले दुश्मन के विनाश के प्रतिष्ठित मूल्यों की वजह से रामायण को बहुत मानते थे।

इसे पूरा करना मर्दाना रोल मॉडलस का सपना था जो राम राज्य की ओर ले जाता है, और ऐसे में कई लोग अपना पैसा, बल और तिकड़म लगा कर इसको पूरा कर रहे थे।

यदि रामायण में कभी प्रेम, बंधन, निस्वार्थता या असतित्व की बात की गई (जैसा कि तीनों ने वनवास के लिए अपने भव्य, प्रिय महल को छोड़ दिया), तो इन नैतिक मूल्यों को आसानी से नजरअंदाज कर दिया गया। भगवान राम रैली का मुख़्य पॉइंट बन गए, और जय श्री राम रैली की आवाज बन गयी।

नई बर्बादी का डर

वापस आज में आते हुए। ये घोषणा सुनते ही मुझे पहला विचार आया कि यह बहुत अच्छा निर्णय है। साइंस न सही, लेकिन माइथोलॉजी अगर लोगों को घर में सुरक्षित रख रही है तो वो ही सही। लेकिन जब मैंने पहला एपिसोड देखा, तो एक अज़ीब सी पुरानी बेचैनी में महसूस हुई।

मेरे मन में यह डर आया, कि जिस धारावाहिक ने लोगों के दिमाग पर इतना गहरा प्रभाव डाला था, वह फिर से एक आवेजक की तरह होगा – भले कितना ही छोटा – लेक़िन इतिहास खुद को दोहराता है। और यहाँ मैं मास हिस्टीरिया यानि  सामूहिक उन्माद के बारे में बात कर रही हूँ, न कि छोटी हानियों की, जैसे परिवारों में एक बार फिर पितृसत्ता जन्म लेगी, जो निश्चित रूप से मेरे मन में एक और डर है।

व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी और अवैज्ञानिक सोच

हमने हाल ही में साबित किया है कि हम अभी भी अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच से ग्रस्त हैं, हर्ड मेंटेलिटी के बारे में सुना है ना आपने (थालियों को बजाया गया जिससे कॉस्मिक ऊर्जा बनेगी और वायरस मर जायेगा वाले मैसेज और मीम्स याद हैं ना आपको!)?

महामारी गुजरने के बाद, चाहे हम सामूहिक मृत्यु से बचने के लिए प्रबंधन करें या नहीं, लेकिन मंदी और बेरोजगारी से नहीं बच सकते हैं। लोग पहले से ही पैसे और भोजन के लिए एक-दूसरे से लड़ रहे होंगे।

एनआरसी और सीएए हमारे दरवाज़े पर दस्तख दे रहे होंगे। इन सब के बीच, शाहीन बाग को पुनर्जीवित किया जाएगा, जिसमें मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित लोगों की, नागरिकता छीन ली जाएगी, जो कि वैसे भी है।

दंगे फिर से शुरू हो सकते हैं, नेता अपने खेल फिर से खेल पाएंगे। धर्म के नाम पर एक बार फ़िर राज्यों के बटवारे होंगे और इन सबका बहुत बुरा प्रभाव हम सब पर पड़ेगा। शायद  COVID-19 के नुकसान से भी कहीं ज़्यादा।

और इस बार रामायण की भूमिका?

और इसमें वे लोग शामिल होंगे जो अपने घरों में रामायण देख रहे हैं, एक बार फिर से हिंदू राष्ट्र के गौरव और राम राज्य का सपना देख रहे हैं, जो डर, हिंसा और लालच को समाज से मिटा देगा। उस नक़ली आदर्श की खोज में, वहां और कोई नहीं, बल्कि वे स्वयं रास्ते में खड़े हैं, और बस दक्षिणपंथी नेताओं द्वारा थोड़ा सा भड़काने पर ही वो वापस भड़क जाएंगे।

एक बार फिर रामायण का उपयोग उन लोगों को सही ठहराने और समर्थन करने के लिए किया जाएगा जो ‘अन्य’ को खत्म करने के लिए आगे रहते हैं।

हो सकता है कि मैं बड़ा चढ़ाकर बात कर रही हूँ। हो सकता है कि मृत्यु, बीमारी और संसाधनों की कमी की खबर, जिससे मीडिया खेलती रहती है, वह मेरे दिमाग पर भी हावी हो रही है, जिससे मैं भविष्य के लिए चिंतित हूं।

मुझे लगता है कि दोषपूर्ण पात्रों के बावजूद, रामायण प्रेम और लालसा की एक सुंदर कहानी है। मैं मानती हूं कि लोगों को भी इन खबरों से रेस्ट लेने की ज़रूरत है और अपने तनाव को कम करने के लिए सादगी, विश्वास और पारिवारिक मूल्यों के पुराने युग में जाने की आवश्यकता है। वो सब माना जा सकता है! अगर हम अपने आप से वादा करें कि हम घर से बाहर निकलने पर वैज्ञानिक रूप से फोकस्ड, तर्कसंगत रूप से प्रेरित और एक दूसरे से अधिक प्यार और मदद  करेंगे। याद रखें रामायण का सन्देश यही है।

मूल चित्र : धारावाहिक रामायण  

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