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रिश्तों की भीड़ में कुछ अंजान रिश्ते भी अपनी उपस्थिति का अहसास करा जाते हैं........
रिश्तों की भीड़ में कुछ अंजान रिश्ते भी अपनी उपस्थिति का अहसास करा जाते हैं…तुम्हारा-मेरा बेनाम सा रिश्ता, दिल से बस पहचान का रिश्ता!
तुम्हारा-मेरा बेनाम सा रिश्ता तपती धूप में छाँव सा रिश्ता !
वक्त की आँधियां छितरा न दें रखना संजोए सूखे पात सा रिश्ता !
हो न जाए गुम भीड़ में कहीं नन्हे, अबोध बालक सा रिश्ता !
अपने कई और रिश्ते हज़ार हैं उनमें सच्चे ख्वाब सा रिश्ता!
ठेस लगे तो गाँठ जोड़ लें रेशम से पतले तार सा रिश्ता !
नाम न जाने काम न जाने दिल से बस पहचान का रिश्ता!
अंजान पते पर मंजिल पूछे दिल पर लगी छाप सा रिश्ता!
हो कर दूर भी सदा करीब है रूहों की मुलाकात सा रिश्ता!
बाद हमारे मिटने के भी महकेगा सदा गुलाब सा रिश्ता!
मूल चित्र : Pexels
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