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क्या ज़्यादा ज़रूरी है? तन की खूबसूरती या मन की?

जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं। कभी किसी को निर्धनता मार देती है कभी बिमारी और कभी विकलांगता। समाज की विकलांग लोगो के लिए दयाभाव नहीं प्रेम रखना चाहिए और उनके जीवन को खुशिओं से भर देना चाहिए। 

आज भी विकलांगता को कमज़ोरी समझा जाता है और विकलांग व्यक्ति से कोई रिश्ता नहीं बनाना चाहता। क्या मन की खूबसूरती से तन की खूबसूरती ज़्यादा ज़रूरी है?

तूलिका ने फटाफट नाश्ता और दोपहर के लिए हल्का खाना बनाकर टिफिन में रखा और तैयार होकर हास्पिटल पहुंची। आज तनव की हालात कल से काफी बेहतर थी। तनव को नाश्ता, दवाईयां देकर व मोबाइल न चलाकर आराम करने की हिदायत देकर आफिस चली गई।

रात में खाना ले गई और वहीं सोई भी क्योंकि तनव का बाइक से एक्सीडेंट हो गया था, लेकिन उसके घर से कोई नहीं आ पा रहा था। तूलिका ने जब सड़क पर पड़े तनव देखा, तो तुरंत उसे हास्पिटल पहुंचाया था। तनव उसकी ही कंपनी में कार्यरत था।

10 दिनों के बाद हास्पिटल से घर आते समय तूलिका ने लड़खड़ाते तनव को सहारा दिया। तभी तनव ने कहा, “तूलिका क्या तुम हमेशा के लिये मेरा हाथ थाम सकती हो, मैं अपनी जिंदगी का सफर तुम्हारे साथ तय करना चाहता हूँ।”

तूलिका ने हंसकर कहा, “क्या तुम अहसान का बदला चुकाना चाहते हो? मैं तो खुद ही लड़खड़ाते हुए चलती हूं।” बचपन में एक दुर्घटना के बाद से उसकी चाल में हल्की सी लचक थी और तनव के इस निवेदन को वो दया समझ रही थी।

तब तनव ने कहा, “तुम जैसी निडर, आत्मनिर्भर और खूबसूरत दिल वाली लड़की को अपनी जीवनसंगिनी कौन नहीं चाहेगा। इतने दिनों मेंं मैं कब तुम्हें चाहने लगा मुझे पता ही नही चला।” और फिर माता पिता की सहमति से दोनों परिणय सूत्र में बंध गये।

काश तनव की तरह और भी नौजवान मन की सुंदरता को समझकर साथी का हाथ थामने का कदम उठायें।

मूल चित्र : Pexels

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