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निदा फाजली जी की कविता 'बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां' से प्रेरित आज की इसी पीढ़ी की नज़रों से माँ की ममता का बखान कुछ यूं भी हो सकता है...
निदा फाजली जी की कविता ‘बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां’ से प्रेरित आज की इसी पीढ़ी की नज़रों से माँ की ममता का बखान कुछ यूं भी हो सकता है…
क्योंकि अब न तो मिट्टी का वो चूल्हा रहा, न गोबर से लीपा वो चौका और न ही बेसन की सौंधी रोटी पर लहसुन-मिर्च की खट्टी चटनी धर कर खाने वाली वो पीढ़ी, जो माँ की ममता की याद आने पर इन सब चीजों के बीच रची-बसी अपनी माँ की पहचान ढूंढा करती है!
आज की पीढ़ी जरा सी हटके है और हो भी क्यों न , वक्त सदा एक सा नहीं रहता। लेकिन वक्त के बदलने पर भी बच्चों के लिए माँ का प्यार और उसके दुलार से जुड़ा हर अहसास वही रहता है। बस बच्चों के मन में उस ममता भरे अहसास की परिभाषा ज़रा सी ज़रूर बदल जाती है।
आज जब माँ घर और आफिस दोनों एकसाथ संभालती है तो भागा-दौड़ी से निपटने के लिए रसोई और उसमें आए बदलाव और साथ ही खान-पान की नई शैली अधिकतर परिवारों के जीवन का हिस्सा बन चुकी है!
निदा फाजली जी की कविता ‘बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां ‘ से प्रेरित आज की इसी पीढ़ी की नज़रों से माँ की ममता का बखान शायद कुछ यूं भी हो सकता है न ,
पिज्जा के मेल्टिड चीज़ के जैसी, रिश्तों को यम्मी बनाती माँ, पास्ता के सॉस के मिर्च सी तीखी, जी भरकर डांट पिलाती माँ ! चिप्स के जैसी टैंगी बातें, मोमोज़ की फिलिंग सी भाती माँ ! बर्गर की क्रीमी लेयर्ज़ से टपकता, मेयोनीज सा प्यार लुटाती माँ ! मैगी के स्लर्पी टैक्सचर जैसी, नाचोस के क्रिस्प सी झुंझलाती माँ ! इटैलियन किचिन में खाना बनाती, वीडियो काल से अपनापन जताती माँ ! हमको तब और भी भाती है, जब कुछ घर का, कुछ स्विगी कर मंगवाती माँ !
तो माँ की ममता बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी के स्वाद में भी उतनी ही अद्भुत है जितनी पिज्ज़ा के मैल्टिड चीज़ में ! क्योंकि माँ के जैसा तो खुद ईश्वर भी नहीं !
मूल चित्र : Canva
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