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कुछ खट्टे तो कुछ मीठे, अच्छे और सच्चे बच्चे !

बचपन, भोलापन, मासूमियत, नादानी इन सारे शब्दों में  कितनी पवित्रता झलकती है और बचपन होता ही इतना प्यारा है सबका मन मोह लेता है।  

बचपन, भोलापन, मासूमियत, नादानी इन सारे शब्दों में  कितनी पवित्रता झलकती है और बचपन होता ही इतना प्यारा है सबका मन मोह लेता है।

‘बच्चे मन के सच्चे, सारी जग के आंख के तारे…ये वो नन्हे फूल हैं जो, भगवान को लगते प्यारे.. ‘

बच्चों के बचपन और भोलेपन को परिभाषित करते इस गीत की ये पंक्तिया हमें ये अहसास दिलाने को लिए काफी हैं कि भगवान का ही दूसरा रूप ये बच्चे होते हैं। 

‘जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया,
बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया…’
-निदा फ़ाज़ली

कितना सही लिखा न फाजली जी ने !
आज मन हुआ कि इन बच्चों के बारे में बातें की जाए। 

ये भोले भाले, मन के सच्चे बच्चे पूरा दिन धमाचौकड़ी मचा-मचा कर हमें जहां परेशान हाल कर डालते हैं वहीं कहीं न कहीं उनकी इन्ही शरारतों में हम बड़ों की दुनिया के लिए कई सबक भी छिपे होते हैं। हमारे यही मासूम कभी -कभी अपने सहज भोलेपन में देखिए न कई बार ऐसे काम कर जाते हैं जो हम बड़ों की दुनिया को सोचने पर मजबूर कर देते हैं। 

कहा जाता है कि बच्चों के मन में छल-कपट, ईर्ष्या-द्वेष नहीं होता। वे तो बस भावुक, ईमानदार, सच्चे, और सरल हृदय होते हैं। शायद इसीलिए ही उन्हें भगवान का रूप माना जाता है।अब तो लगता है कि इन मासूम,सरल बच्चों के मन में हम बड़े लोग ही जहर घोलकर इन्हें समय से पहले बड़ा बनाने का अक्षम्य अपराध यदा कदा करते रहते हैं। हमें उनका बचपना बरकरार करने के लिए हर संभव कोशिश करती रहनी होगी। उनके बचपने में किए गए कामों पर फटकार लगाने की बजाय, समझना होगा कि यही तो बचपन की वो खासियत है जो इन्हें हमसे ज्यादा सरल और प्रसन्नचित् बनाती है। ये बच्चे इतने सीधे होते हैं कि किसी की भी बात पर बिना सोचे-समझे आँख मूँदकर विश्वास कर लेते हैं। 

बच्चों की मासूमियत उनके चेहरे से ही नहीं….कभी कभी उनकी छोटी छोटी हरकतों से भी दिल को छू जाती है।ये नटखट बच्चे कभी कभी अपनी बात मनवाने के लिए जिद पर भी अड़ जाते हैं और अगर गलती से उनकी किसी जिद को पूरा न किया जाए तो वे मुंह फुला लेते हैं और कुछ समय तक हम बड़ों से रूठे भी रहते हैं और फिर अपने आप ही थोड़े समय के बाद सब गुस्सा भूलकर फिर से पहले की तरह मस्त हो जाते हैं।फिर कोई भी उन्हें देखकर यह नहीं कह सकता कि कुछ क्षण पहले वे हमसे गुस्सा थे।

यही तो इन बच्चों की वो खास बात है जो बड़ों को इनसे अलग करती है और सच मानिए बस यही एक कारण है कि ये बच्चे सबका दिल लुभाने में सफल रहते हैं और उन्हें अपना बना लेते हैं और ये बच्चे किसी अजनबी के साथ भी थोड़ी ही देर में ऐसे घुलमिल जाते हैं, मानो कि हमेशा से उसके साथ रह रहे हों। 

बच्चों को बड़ों की तरह रहने, उनके जैसे दिखने में भी बड़ा आनंद आता है।  कभी पापा का स्कूटर चलाने की एक्टिंग, कभी मम्मी की तरह दुपट्टा पहनकर रसोई में से चाय लाने की एक्टिंग, कभी टीचर की तरह चश्मा और छड़ी लेकर आपकी क्लास लगाने की ऐक्टिंग, मतलब कि बच्चा एक और रूप अनेक। यही तो कमाल है इस बचपन का। कभी इनसे गप्पें लगाकर देखिए, ये बड़ों के भी कान काट लेते हैं। जब इनसे बात करेंगे तो पता चल जाएगा कि ये तो हमसे ज्यादा जानकारी रखते हैं। 

घर में यदि कोई बीमार हो जाए तो ये बिना कहे ही उनकी तिमारदारी में जुट जाते हैं। बार-बार छूकर बीमार का बुखार देखते हैं। उन्हें समय समय पर पानी, दवाई और फल देकर और उनके पास सारा समय बैठकर व गप्पे लगाकर उनका मन बहलाने का काम भी ये बढ़िया करते हैं। जिससे बिमार व्यक्ति को आराम के साथ साथ मनोरंजन भी मिलता है।कभी कभी तो किसी दिन ये हमारी मदद करने के चक्कर में घर में इतना काम फैला देते हैं, इसके लिए उन्हें डाँट भी लगा दी जाती है। फिर भी वे अपने सेवाभाव वाली आदत को नहीं छोड़ते और अपनी ही धुन में मस्त मगन रहते हैं। थोड़ी देर के बाद फिर आ जाते हैं कोई दूसरा काम करने के लिए। जरा-सी शाबाशी मिलने पर फिर से फूले नही समाते।

घर में अगर कोई पालतू जानवर हो तो बस फिर क्या? उसके लालन-पालन की पूरी जिम्मेदारी बिना कहे ही ये बच्चे अपने ऊपर से लेते हैं। उनका खाना-पानी, घूमना-घुमाना, नहलाना, और साफ सफाई ये पूरी तन मन धन से करते हैं। बाजार से पहले तो जिद करके खिलौने लाएंगे, फिर घर आते ही खिलौने का पोस्टमार्टम कर डालते हैं और डांट पड़ने पर फिर से खिलौने के लिए जिद न करने की कसम खाते हैं, और अगले दिन फिर से कोई नया खिलौना माँग लेते हैं। 

कुल मिलाकर ये बच्चे अपने व्यवहार से हम बड़ों को कहीं न कहीं हमें अपने भीतर झांक कर देखने को मजबूर करते हैं, जहां इतनी नफरत, द्वेष, प्रतिस्पर्धा,लालच और स्वार्थ भरा हुआ है। 

हमें चाहिए कि बच्चों को उनके बचपन में ही जीने देने की कोशिश करनी चाहिए। उम्र से पहले समझाबुझा कर संजीदगी सिखाकर, उनका बचपन नहीं छीनना चाहिए।बल्कि हो सके तो कुछ पल के लिए उनके आप को भी बच्चा बनकर अपने बचपन के नटखट, खूबसूरत लम्बे को याद कर लेना चाहिए और यदि इनके बचपन वाली ये सरलता, भोलापन और सच्चाई हम बड़ों वाली दुनिया भी सीख जाए तो यकीन मानिए कि ये संसार एक खुशनुमा स्वर्ग बन जाएगा।

मूल चित्र : Pexels 

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