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बिहार की ज्योति कुमारी, एक ऐसी बहादुर लड़की जिसने अपने हीरो यानि की अपने पिता को बचाने के लिए 1200 किलोमीटर का सफ़र साइकिल पर उन्हें पीछे बैठा कर तय किया।
कहते हैं एक बेटी का सबसे पहला हीरो उसके पिता होते हैं और इसी बात का उदाहरण पेश करती है बिहार के एक छोटे से गांव की 15 साल की ज्योति कुमारी। इस बहादुर लड़की ने अपने हीरो यानि की अपने पिता को बचाने के लिए 1200 किलोमीटर का सफ़र साइकिल पर उन्हें पीछे बैठा कर तय किया।
लॉक डाउन का सबसे बुरा प्रभाव हमारे देश के मज़दूरों पर पड़ा है। इन दिन सोशल मीडिया और न्यूज़ पेपर की हेडलाइंस इन्हीं मज़दूरों की विवशता से भरी रहती हैं। इसी बीच एक बहादुर लड़की, बिहार की ज्योति कुमारी, की भी कहानी सामने आयी, जिसने एक बार फिर से सबको झकझोर कर रख दिया लेकिन साथ में इसने हमे गर्व भी महसूस करवाया। इसे देश ही नहीं विदेश में भी सराहा जा रहा है। ये अभी सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गयी है और हर कोई इस बहादुर बच्ची की हिम्मत और लगन को सलाम कर रहा है।
हाल ही में भारतीय साइकिलिंग फेडरेशन (Cycling Federation of India) ने जानकारी दी है की वो ज्योति को ट्रेनिंग देने के इच्छुक हैं और इसीलिए उसे ट्रायल के लिए दिल्ली बुलाया है। CFI के चेयर मैन ओंकार सिंह ने PTI को बताया की अगर बिहार की ज्योति सिंह ट्रायल लेवल पास कर लेती है तो उसे स्टेट ऑफ़ द आर्ट नेशनल साईकल अकडेमी में ट्रेनी के रूप रख लिया जायेगा। जैसे ही लॉक डाउन ख़त्म होता है ज्योति को अगले महीने ट्रायल के लिए दिल्ली बुलाया जायेगा।
उसी पर ज्योति ने कहा है की साइकिलिंग के बारे में कभी सोचा नहीं था। लेकिन, अब इसके लिए पूरी मेहनत करूंगी। साइकिलिंग के ज़रिये सपना पूरा करने के साथ गांव का नाम रोशन करूंगी। वो अगले महीने ट्रायल के लिए दिल्ली जाएगी।
बिहार के दरभंगा जिले की ये ज्योति शुरू से ही पढ़ना चाहती थीं। वो वहीं अपने गांव के सरकारी स्कूल में पड़ती थी। माँ आँगन बड़ी में काम करती है और पिता दिल्ली में रिक्शा चलाकर घर का गुज़ारा करते हैं। लेकिन दिल्ली में एक्सीडेंट का शिकार हुए पिता की देखभाल करने के लिए ज्योति को अपनी पढ़ाई छोड़कर उनके पास दिल्ली जाना पड़ा।
और कुछ ही समय बाद लॉक डाउन लग गया और वहां रहना मुश्किल हो गया। ना खाने को कुछ था और न रहने को छत। क्यूंकी मकान मालिक ने कमरा खाली करने के लिए ज़ोर डालना शुरू कर दिया था।
मज़बूरी में आकर ज्योति ने ठाना की वो अपने पिता को गांव ले जा कर ही रहेगी। और उसने जन धन बैंक अकाउंट से कुछ पैसे निकालकर एक पुरानी साईकल ख़रीदी और रातों रात अपने बीमार पिता को पीछे बैठा कर अपने गांव की और निकल पड़ी। 10 मई को दिल्ली से चली और 16 मई को दरभंगा पहुंची। उसने सात दिन में 1200 किलोमीटर की दूरी तय की और अपने घर पहुंचीं।
और इस बहादुरी का काम करने वाली लड़की ने साबित कर दिया की श्रवण कुमार सिर्फ बेटे ही नहीं बेटियां भी हो सकती है। महिलाओं को भले ही आज भी कमज़ोर माना जाता है लेकिन वक़्त आने पर सबसे ताक़तवर वही निकल कर सामने आती है। कभी एक माँ के रूप में तो कभी बेटी के रूप में तो कभी पत्नी के रूप में , एक औरत हमेशा अपने से ऊपर दूसरों को ही रखती आयी हैं। उनकी मदद के लिए अपने सारे दुःख दर्द भुला देती है। हां और यही एक नारी की शक्ति है।
ज्योति की हिम्मत और ज़ज़्बे को आज पूरा देश ही नहीं विदेश में भी सराहा जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रम्प ने भी ज्योति को सराहा। उन्होंने अपने ट्वीटर हैंडल पर ट्वीट किया कि 15 साल की ज्योति कुमारी ने अपने बीमार पिता को अपनी साइकिल के पीछे बैठा कर 7 दिनों में 1200 किलो मीटर का सफर तय किया और अपने गांव पहुंचाया। प्यार और सहन शक्ति के इस ख़ूबसूरत साहसिक कार्य ने भारतीयों और साईकल फेडरेशन की कल्पना को उजागर किया है।
मई की कड़कती धूप, 7 दिन, 1200 किलो मीटर, एक साईकल , एक 15 साल की लड़की और पीछे तक़रीबन 60 किलो वजन। सोचकर भी शायद रूह कांप जाती है। हम अपने घरों में बैठ कर अंदाजा भी नहीं लगा सकते की कितना कठिन रहा होगा ये सफ़र। और न जाने ऐसी कितने लोग है जो सिर्फ अपने घर जाने के लिए इतना सब कुछ सह रहें हैं। आखिर इनकी गलती क्या है? सरकार ने भी तो इन्हें लगभग नज़रअंदाज़ ही किया हुआ है। न ही इन्हें घर पहुंचने के लिए कोई बड़ा कदम उठा रही है और न हीं इन्हें शहर में ही रोकने के इंतज़ाम कर रही है।
लेकिन आप और हम इनकी मदद कर सकते है। आप हर संभव कोशिश करे की लॉक डाउन की वजह से जो भी लोग पलायन कर रहें हैं या फ़िर जिन लोगो की रोज़मर्रा की जिंदगी चलना मुश्किल हो गयी है, आप उन तक अपनी मदद पहुँचाये।
अपडेट :
ज्योति अभी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती है
हाल ही में ज्योति ने द हिन्दू को दिए गए टेलीफोनिक इंटरव्यू में कहा कि उसकी पढ़ाई अभी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। पहले अपने पिता की देख भाल के चलते उसकी पढ़ाई बीच में ही छूट गयी थी। लेकिन वो अभी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती है और मैट्रिक तक की पढ़ाई तो कम से कम पूरी करना चाहती है।
ज्योति ने कहा कि इतने लम्बे और कठिन सफर को तय करने की वजह से अभी वो शारीरिक रूप से थक चुकी है।
मूल चित्र : ANI/ट्विटर
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
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