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मंजिल चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो यदि पैरों में मज़बूती और दिल में हौसलों का दम हो तो फिर चाहे चलने की गति कितनी भी क्यों न हो एक न एक दिन अवश्य ही कठिन से कठिन लगने वाली मंजिल तक पहुंचा जा सकता है।
पापा की पुरानी साइकिल पिछले कई सालों से घर के पीछे बने बागीचे वाले स्टोर में उदास सी खड़ी थी। मुझे आज भी याद है वो दिन जब वो एकदम किसी नई-नकोर-नवेली सी दुल्हन की तरह हमारे घर आई थी। मां ने हैंडिल पर कलावा , और रोली चावल का टीका किया और पहियों में जल सिलाया था तब हम बच्चे उत्साहित होकर पूरे मुहल्ले में बताशे का प्रसाद बांटते घूमे। साइकिल बेशक सादा से काले रंग से रंगी थी लेकिन इसकी चमक बेमिसाल थी और होती भी क्यों न, पापा भी तो रोज़-रोज़ न जाने कौन-कौन सी पालिश लगा कर घंटो पोंछ कर चमकाया करते थे। पापा की यह साइकिल हमारे पूरे परिवार के लिए किसी उड़न खटोले से कम नहीं थी। कैरियर पर पीछे मां की गोद में छोटी बहन और पापा के आगे वाली स्पेशल छोटी वाली गद्दी पर मैं। तब मां-पापा की गृहस्थी इसी के दो पहियों पर ही तो टिकी थी।
‘रोती-बिलखती हुई मैं पहली बार स्कूल भी इसी पर ही तो गई थी। मुझे छोड़कर वापिस आते हुए तो शायद ये भी खूब रोई थी’।
जब घर वापिस लौटी तो मैं पूरे रास्ते इसी के हैंडिल पर ही तो सिर रख रास्ते भर गीली पलकें लिए सोई थी। मुझे याद है गली के मोड़ पर बजती इसकी हर घंटी पर हम कैसे सुधबुध खो बाहर दौड़कर जाया करते थे। इस साइकिल ने अपना पूरा जीवन हमारे छोटे से परिवार की खुशियों और उसकी ज़रूरतों भरे न जाने कितने ही अनगिनत थैले और पोटलियां अपने दोनों हैंडिलों , बास्केट और कैरियर पर बिना एक पल थके, खुशी-खुशी ढोए थे। सदा हवा से बातें करने वाली इस साइकिल तक जब हमारे पैर पहुंचने शुरू हुए तो कई बार हमें गिरकर संभलने का पहला पाठ भी इसी ने ही तो सिखाया था। पीछे बैठने वाला कोई भी व्यक्ति कभी भी बोझ नहीं लगता और एक सच्चा साथी होने का यह अहसास भी इसी साइकिल ने हमें कराया था। मंजिल चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो यदि पैरों में मज़बूती और दिल में हौसलों का दम हो तो फिर चाहे चलने की गति कितनी भी क्यों न हो एक न एक दिन अवश्य ही कठिन से कठिन लगने वाली मंजिल तक पहुंचा जा सकता है , यह सबक भी जाने-अनजाने में ही इसके पैडल पर पैर मारते-मारतेे हमें मिल गया। आज दो महंगी गाड़ियों के मालिक मेरे मां-पापा ने इस साइकिल को बेचने की कभी नहीं सोची क्योंकि शायद यही साइकिल उन्हें आज भी यह अहसास कराती है कि हमारे जीवन के उन खुशहाल और बेहतरीन दिनों की साथी वही थी। एक ऐसा साथी जिसने हमें सिखाया कि खुशियाँ कभी भी धन-दौलत और मंहगी गाड़ियों की मोहताज़ नहीं होती।
मूल चित्र : Youtube
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