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“डोर बेल बज रही है…”
“अरे सुबह सुबह कौन आ गया, शायद आज सफाईवाला जल्दी आ गया? अरे बहु देख तो कौन आया है?” शांता जी ने अपने कमरे में से कहा।
शीला ने भागकर देखा, दरवाजे पर मम्मी जी की सहेली आई हैं, “आईये आंटी जी कैसे आना हुआ सब ठीक है तो है?”
“हां बहू सब ठीक है। तुम बताओ कैसी हो?”
“तुम्हारी सास उठ गई या अभी तक सो रही है? आज मॉर्निंग वॉक को भी नहीं आई?”
“आंटी जी, रात में मम्मी जी को थोड़ा बुखार था तो आज वॉक पर नहीं गयीं और भाभी जी और रीतू कैसे हैं?”
“लो मम्मी जी आ गयीं! आप दोनों बात कीजिए। मैं चाय लाई…”, शीला इतना बोलकर चली गयी।
“कैसे आना हुआ तेरा सुबह सुबह? मेरी याद आ रही थी क्या?” शांता जी ने अपनी सखी से कहा।
“कुछ नहीं। ऐसे ही आ गयी। आज मेरी पोती रीतू का जन्मदिन है, तीन साल की हो गयी है आज। तो तुम सब शाम को मेरे घर आ जाना। बहू और बच्चों को भी ले आना साथ में। ठीक है?”
तभी शीला भी चाय लेकर आ गयी।
“बहू तुम भी आ जाना शाम को रीतू का जन्मदिन है।”
“अच्छा आंटी जी, आ जाउंगी मम्मी जी के साथ।”
“अच्छा तो शांता अब मैं चलूँ। शाम को मिलते “, और आंटी जी चली गयी।
“देख लो तुम चलो तो ठीक है, वरना मैं चली जाऊँगी।”
“नहीं मम्मी जी, ये दोनों शैतान आपको परेशान कर देंगे, मैं चल लूँगी। इसी बहाने गली की औरतों से भी मिलना हो जाएगा। इन बच्चों के साथ रहकर बाहर जाने का, मोहल्ले में गप्पे मारने का मौका ही नहीं मिलता।”
शाम को सब तैयार होकर पहुच गए पार्टी में। वहां मौजूद सभी को शीला अच्छे से जानते थी, तो कोई परेशानी नहीं थी बात वात करने में। सब बच्चों की टोली एक तरफ, औरतों की टोली एक तरफ बैठ कर लगे गप्पे मारने।
तभी एक आंटी बोल पड़ी, “और शीला बहू! तुम्हारे मायके में अब सब ठीक चल रहा है? अब तो तुम्हारी भाभी तुम्हारे पापा मम्मी को तंग नहीं करती? शांता बता रही थी कि तुम्हारी भाभी बहुत तेज़ तरार है? तुम्हारी मम्मी का तो जीना दूभर कर रखा है?”
शीला ने अपनी सास की तरफ़ देखकर कहा, “अब सब ठीक है आंटी जी। भाभी को अब अलग कर दिया है”, इतना बोलकर शीला किचन की तरफ चल पड़ी।
रसोई घर में रीतू अपनी मम्मी रीना के साथ खड़ी थी। शीला ने रीना को रीतू के जन्मदिन की शुभकामना दी औऱ रीना के साथ नाश्ते के लिए प्लेट्स लगाने लगी तभी रीना ने पूछा, “और भाभी अब घर पर सब ठीक है। अब तो आप दोनों पति-पत्नी की लड़ाई नहीं नहीं होती? कुछ दिनों पहले आपकी और भैया की खाने में मिर्च को लेकर कहा सुनी हो गयी थी?”
शीला ने बड़े आश्चर्य से पूछा, “यह सब तुम्हें कैसे पता चला? हम दोनों को मिले तो काफी समय हो गया? और न ही मैंने तुम्हें बताया, फिर कैसे?”
“अरे शीला भाभी तुम भी न! तुम्हारी और मेरी सास रोज मिलती हैं। जब मिलती हैं, तो बातें भी घर की होती हैं। तुम्हारी सास ने मेरी सास से कहा और मेरी सास ने मुझ से।”
“सही कह रही हो रीना तभी मैं सोचू जब अपने मायके की बातें मैंने अपनी सास को नहीं बतायीं। जब मेरी मम्मी का फ़ोन आता था तो मैं अपने कमरे में जाकर बात करती थी। तो मेरी सास ने चोरी से मेरी सारी बातें सुनी और उसे पूरे मोहल्ले में फैला दिया? उसी तरह से उन्होंने मेरे और मेरे पति के बीच होने वाली लड़ाई को भी जग जाहिर कर दिया?”
“किसी ने सच ही कहा है कि आप किसी बात को कितना भी छुपा लो, वो बात दुनिया को पता चल जाती है, क्यूंकि दीवारों के भी कान होते है तो बातों के पैर आगे से इस बात का मैं पूरा ध्यान रखूँगी कि मम्मी जी को अपने निजी मामलों से दूर ही रखूं।”
इतना कहकर शीला ने रीना से कहा, “चलो अब हम भी बाहर चल कर पार्टी का मजा ले लें।”
दोस्तों, आपको यह कहानी कैसी लगी?
यह सच्चाई है, घर का भेदी लंका ढाये। आपकी निजी बातों को उजागर करने के पीछे आपका ही कोई अपना होता है। आप भी अपने जीवन के उस भेदी को पहचान कर अपना नुकसान होने से बच सकते हैं…
मूल चित्र : Canva
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