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शिक्षा अगर वास्तव में ग्रहण की गयी हो तो वह अपना असर ज़रूर दिखाती है, इंसान बुद्धिजीवी बन जाता है और साथ के साथ असमानता को घोर विरोधी बन जाता है।
“ए राधा! जा ई दूध का गिलास बबुआ के दे आव त।”
हर शाम राधा दूध का गिलास बबुआ को देने जाती और ललचाई नज़रों से अपने बड़े भाई को दूध पीता देखती और मन ही मन सोचती, “ना जाने कैसा लगता होगा ई दूध, मास्टरनी जी तो रोज कहती हैं कि सबको दूध जरूर पीना चाहिए। पर अम्मा भी का करे इतना ही दूध आता है घर में कि बस भाई और पापा को ही पूरा पड़ पाता है।”
उधर बबुआ रोज तो दूध का गिलास खाली कर दिया करता था लेकिन आज उसके दिमाग में टीचर जी की बात कौंध रही थी।
आज तो टीचर जी बड़ा ही अजीब बात बोली थी और बबुआ दूध का गिलास ले कर चल पड़ा अपनी टीचर जी की बात अम्मा और पापा को बताने, “अम्मा तुमको पता है आज हमारी टीचर जी क्या बताई हम लोग को किलास में? ऊ बोली कि लड़का और लड़की में कोई फरक नहीं होता है। जितना जरूरत लड़का को अच्छा पढ़ाई-लिखाई का है ना, इतना ही जरूरत लड़की को भी पढ़ाई-लिखाई का है।”
“और उसी तरह जितना जरूरत हमको दूध पीने का है ना, इतना ही जरूरत राधा को भी दूध पीने का है। और इतना ही तुमको भी दूध पीने का जरूरत है, काहे कि तुम तो घर में सबसे ज्यादा काम करती हो और राधा भी तो हमसे ज्यादा मेहनत करती है। दिन में तुम्हारा मदद करती है और रात को पढ़ती है।”
अम्मा अपने बेटे की बात सुन आश्चर्य से भर उठी, “अच्छा तुम्हरी टीचर जी बोली है तो ठीक ही बोली होगी बेटा, लेकिन तुमको तो मालूम है ना कि इससे जादा दूध हम नहीं ले सकते।”
बबुआ मुस्कुराया और बोला, “हमको मालूम है इसलिए हमारे पास एक तरीका है जिससे हम सब लोग दूध पी पाएंगे।”
बबुआ रसोई से एक और गिलास ले कर आया। अपने गिलास का आधा दूध दूसरे गिलास में डाला और राधा की तरफ बढ़ा दिया। राधा और अम्मा को पहली बार अहसास हुआ कि वे दोनों भी दूध के गिलास की हकदार हैं।
मूल चित्र : Canva
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