कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

शॉर्ट फिल्म ‘एवरीथिंग इस फाइन’ एक माँ की अनकही को कहती है

एक माँ की अनकही को कहती है फिल्म 'एवरीथिंग इस फाइन' और पूछती है कि आपने अपनी माँ को समझा कितना? उनके लिए अपने दिल से क्या किया? 

Tags:

एक माँ की अनकही को कहती है फिल्म ‘एवरीथिंग इस फाइन’ और पूछती है कि आपने अपनी माँ को समझा कितना? उनके लिए अपने दिल से क्या किया? 

मां – दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत शब्द, यही कहते हैं ना आप और हम
लेकिन कभी उस मां से पूछा है तुमने – ‘मां आपको क्या चाहिए?’
मां ने तुम्हारे बिना कहे ही सब कुछ कर दिया
मां ने तुम्हारी परवरिश के लिए अपना सब लगा दिया
उसने कभी ख़ुद से भी नहीं पूछा कि वो क्या चाहती है
तुझे बड़ा करने में उसने ख़ुद को झोंक दिया
लेकिन क्या बड़ा होने पर उस मां से पूछा कभी तुमने – ‘मां आपको क्या चाहिए?’
मां यही कहेगी – ‘सब ठीक है!’

तेरे आने के बाद मां ने ख़ुद को भुला दिया
तेरे लिए कपड़े लेने थे तो अपना काम पुराने में ही चला लिया
तेरी पढ़ाई के लिए वो कभी शायद कहीं घूमने ना गई हो
तेरे महंगे शौक पूरे करने के लिए वो अपनी प्यारी चप्पल भी ना ले पाई
तुझे महंगा फोन लेना था तो उसने अपने बचाए पैसों से दिया
लेकिन क्या तुमने कभी उस मां से पूछा है – ‘मां आपको क्या चाहिए?’
मां यही कहेगी – ‘सब ठीक है!’

अब तो तुम बड़े हो गए हो, नौकरी के लिए बाहर चले गए हो…
अब भी तुम्हारी माँ तुमसे कुछ नहीं मांगती
जब मिलने आती है तो तुम्हारे लिए ही ढेर सारी चीज़ें लाती है
उसका रात-रात जग कर रोना कभी किसी ने सुना नहीं
जिसने सबको अपने से पहले रखा उसके लिए कोई खड़ा नहीं
अपनी मां से आज ज़रूर पूछना – ‘मां तुझे क्या चाहिए?’
मां फिर भी कहेगी – ‘कुछ नहीं बेटा, सब ठीक है!’

लार्ज शॉर्ट् फिल्म्स एक नई लघु कहानी लेकर आया है जिसका नाम है Everything is fine /एवरीथिंग इस फाइन  यानि ‘सब ठीक है’। निर्देशक और लेखिका मांसी जैन की यह फिल्म एक अधेड़ उम्र की औरत की कहानी है जो अपने पति के साथ दिल्ली शहर में रह रही अपनी बेटी से मिलने आती है।

इतने सालों बाद उसे ऐसा लगता है कि वो अब अपने पति के साथ नहीं रह सकती। मां अपनी बेटी से यह बात बताती है तो वहां भी निराशा ही हाथ लगती है। ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगी इसके बारे में। आप देखेंगे तो ही समझ पाएंगे कि यह फिल्म क्या कहना चाहती है।

सीमा पाहवा ने इसमें मां का किरदार अदा किया है और पालोमी घोष ने बेटी का। इनके अलावा भी इसमें कुछ किरदार हैं। यह फिल्म ब्रसेल्स शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में नेक्स्ट जेनेरेशन कैटेगरी का अवॉर्ड भी जीत चुकी है।

मदर्स डे तो चला गया है और आप सबने मां के साथ अपनी-अपनी तस्वीर पोस्ट करके अच्छी-अच्छी पंक्तियां भी लिखी होंगी। लेकिन असली मदर्स डे तभी होगा जब आप अपनी मां को सच में समझ पाएंगे और उनके लिए दिल से कुछ करेंगे।

मूल चित्र : यूट्यूब 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

133 Posts | 494,166 Views
All Categories