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माना जा रहा है कि फिल्म थप्पड़ ने घरेलू हिंसा के बारे में बातचीत शुरू की है, लेकिन अब सिर्फ बातचीत नहीं, इसे एक अगले पायदान पर चढ़ना होगा जहाँ सवाल और भी मुश्किल हैं।
जब से फिल्म थप्पड़ अमेज़न प्राइम पर आयी है बहुत से लोगों ने इसे देखा और इसकी बहुत बातें हुई , समीक्षाएं हुई , लेकिन कुछ बातें जो मैंने होती नहीं देखी
फिल्म में मैरिटल रेप दिखाया तो जाता है और वो भी उस महिला वकील का जो आर्थिक रूप से सक्षम है, मज़बूत है , किसी दूसरी औरत के लिए लड़ती है लेकिन इसके खिलाफ आवाज़ तक नहीं उठाती , बस चुपचाप अलग हो जाती है , मैरिटल रेप शब्द तक फिल्म में नहीं कहा जाता
क्या ये ओवर सिम्पलीफिकेशन और क्लास बायस नहीं है?
एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में नेत्रा अपने प्रेमी के साथ लॉन्ग ड्राइव पर जाती है , सुबह साइकिलिंग के बाद मिलती है, और फिर बड़ी आसानी से उसे छोड़ भी देती है , किसी भी शादीशुदा मर्द का कोई और रिश्ता नहीं दिखाया जाता
विधवा माँ , सिंगल मदर दिया मिर्ज़ा पर समाज और पुरुष सवाल उठा सकते हैं – करती क्या है ये ? लेकिन उसे किसी नये रिश्ते की चाह होना शायद संस्कार नहीं ?
अमु की जेठानी का शायद एक ही डायलाग है फिल्म में जो “ये कह रहे थे ” से शुरू होता है, वो अच्छा खाना बनाती है और चुपचाप परोसती है , और ऐसी बहु की शादी बनी रहती है और घर भी – मैसेज क्लियर है
पूरी फिल्म का premise है एक थप्पड़ जो पति नहीं मार सकता लेकिन उस हिंसा का पूरी कानूनी कार्यवाही में ज़िक्र तक नहीं किया जाता, और एक सवाल अगर यही थप्पड़ पार्टी के बजाय बैडरूम में मारा जाता तो इसके नतीजे क्या होते?
सुनीता आखिर में पति पर वापिस हाथ उठाती है और वो रुक जाता है लेकिन इसका मतलब ये है कि घरेलू हिंसा ऐसे रूकती है ? नहीं कई बार बढ़ती है जानलेवा हो जाती है , और दोनों तरफ से हिंसा किसी रिश्ते को बेहतर नहीं बना सकती न ही ये बराबरी है।
अगर अमु तय करती की उसको ये बच्चा नहीं चाहिए तो शायद भारतीय समाज के लिए शायद कम विक्टिम हो जाती और उसकी तकलीफ कम, महिला की कोख पर उसका अधिकार है या नहीं?
ये सब भी उसके सेक्सिज़्म को बखूबी दर्शाता है। और इस सबके बावजूद एक सॉरी और एक फ़िल्मी डायलाग – मैं अब तुम्हें कमाऊंगा से सब माफ़ होता जैसा लगता है।
घरेलू हिंसा से लड़ रही महिला भी वही बातें करे जो पितृसत्तात्मक समाज चाहता है तभी स्वीकार्य है , जैसे कि –
अक्सर तर्क बस ये दिया जाता है कि थप्पड़ ने घरेलू हिंसा के बारे में बातचीत शुरू की है, बातचीत ही हो रही है लेकिन दया और करुणा से ऊपर उठकर अब इसे हक़ और कानून के अगले पायदान पर चढ़ना होगा जहाँ सवाल और भी मुश्किल हैं जैसे कि शादी में सेक्स का अधिकार, महिला का एबॉर्शन का अधिकार और स्त्रियों के संपत्ति में अधिकार।
मूल चित्र : फिल्म थप्पड़
Pooja Priyamvada is an author, columnist, translator, online content & Social Media consultant, and poet. An awarded bi-lingual blogger she is a trained psychological/mental health first aider, mindfulness & grief facilitator, emotional wellness read more...
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