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आइये फ्लोरेंस नाइटिंगेल के इस जन्मदिन पर तोहफ़े के रूप में यह वादा करें कि हम अपनी नर्सेज़ का भी उतना ही सम्मान करेंगे जितना की एक साधारण डॉक्टर का करते हैं।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल का ये 200 वां जन्मदिन इस वर्ष और भी खास है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने भी 2020 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ नर्स एंड मिडवाइफ घोषित किया है। जैसे की पूरी दुनिया कोरोना वायरस से लड़ रही है और उसमे सबसे बड़ा योगदान हेल्थ केयर स्टाफ दे रहें हैं और इसमें सबसे ज्यादा नर्सेज आती है। हेल्थ केयर इंडस्ट्री में महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। इंडिया में कुल 1.9 करोड़ हेल्थ वर्कर्स हैं और इसमें से 77% महिलायें हैं। और फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन को इंटरनेशनल नर्सेज डे के रूप में भी सेलिब्रेट किया जाता है।
तो आइये जानते हैं कौन हैं फ्लोरेंस नाइटिंगेल और नर्सिंग सेक्टर में आख़िर इनका क्या योगदान रहा।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 12 May 1820 को एक समृद्ध और उच्चवर्गीय ब्रिटिश परिवार में हुआ था। लेकिन उच्च कुल में जन्मी फ्लोरेंस ने सेवा का मार्ग चुना। शुरुवात में ये मैथमेटिक्स पढ़ना चाहतीं थी लेकिन इनकी माँ ने इनका साथ नहीं दिया। लेकिन बाद में फ्लोरेंस ने अपने परिवार के विरोधों के बावज़ूद भी नर्सिंग में अपना करियर चुना और उस समय में इसे एक रेस्पेक्टेबल प्रोफ़ेशन के रूप में नहीं देखा जाता था। ख़ैर वो तो आज भी नहीं देखा जाता।
फ्लोरेंस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान क्रीमिया के युद्ध में रहा। अक्टूबर 1854 में उन्होंने 38 स्त्रियों का एक दल घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा। जब डॉक्टर चले जाते तब वह रात के अंधेरे में मोमबत्ती जलाकर घायलों की सेवा के लिए उपस्थित हो जाती थी। उनसे पहले कभी भी बीमार घायलों के उपचार पर ध्यान नहीं दिया जाता था किंतु इस महिला ने तस्वीर को सदा के लिये बदल दिया। उन्होंने क्रीमिया के इस युद्ध के समय घायल सैनिकों की बहुत सेवा की थी। इस लिए उन्हें लेडी विथ दि लैंप का नाम मिला था। उनके इस जज़्बे से ही नर्सिंग क्षेत्र में महिलाओं को आने की प्रेरणा मिली थी।
जब वो इस क्षेत्र में आई थीं तब हैजा और टाइफस जैसी बीमारियाँ ने अस्पतालों में कोहराम मचाया हुआ था। नाइटिंगेल ने अपनी मैथमेटिक्स का इस्तेमाल करते हुए डेटा एकत्र किया, मृत्यु दर की गणना की, और उस रिसर्च के बाद सामने आया कि स्वच्छता के तरीकों में सुधार से मौतों की संख्या कम हो जाएगी। और इन्हीं की तकनीकों के चलते फरवरी 1855 तक मृत्यु दर 60% से गिरकर 42.7% हो गई और वसंत तक 2.2% रह गयी थी (सेंट एंड्रयूज संग्रह के अनुसार)। इन्होंने अपने पूरे करियर में सबसे ज्यादा लोगो को हैंडवॉश यानि की हाथ धोने के लिए जागरूक किया था। इन्होंने ही मॉडर्न नर्सिंग के सिद्धांत दिए थे और हॉस्पिटल सैनिटेशन के बारे में बताया था।
लेकिन युद्ध में घायलों की सेवा करते वक़्त इन्हे गंभीर संक्रमण ने जकड़ लिया था। 1859 में फ्लोरेंस ने सेंट थॉमस अस्पताल में एक नाइटिंगेल प्रक्षिक्षण विद्यालय खोला। इसी बीच उन्होंने नोट्स ऑन नर्सिग पुस्तक लिखी। जीवन का बाकी समय उन्होंने नर्सिग के कार्य को बढ़ाने व इसे आधुनिक रूप देने में बिताया। 1869 में इन्हें महारानी विक्टोरिया ने रॉयल रेड क्रॉस से सम्मानित किया था। 13 अगस्त 1910 को फ्लोरेंस ने अपनी अंतिम सांस ली।
खासकर के इस #Covid19 के समय जब नर्सेज़ ही हमारी सबसे बड़ी बैकबोन की तरह काम कर रहीं है। इन दिनों इनकी कोशिशों की वजह से ही हम लोग सुरक्षित हैं। न जाने कितनी नर्सेज़ हैं जो दिन रात अपने परिवार को छोड़कर हमारे लिए काम कर रहीं हैं। लेकिन फ़िर भी क्या हम उनकी रेस्पेक्ट करतें हैं ? क्या उन्हें उनकी मेहनत का जितना भुगतान मिलता है ? शायद नहीं।
अगर हाल ही के दिनों की ही बात करें तो न जाने ऐसे कितने किस्से हमारे सामने आ चुके हैं जिसमे इन नर्सेज़ के साथ बदसलूकी करी गयी है। आज भी इनके प्रोफेशन को इज़्ज़त नहीं दी जाती है। अक्सर आप सुनते होंगे कि नर्स ही तो है, कोई भी बन जाता है। डॉक्टर नहीं बन पायी इसीलिए नर्स का काम कर रहीं है। लेकिन आपको बता दूं एक डॉक्टर की कामयाबी के पीछे नर्स का ही सबसे बड़ा योगदान होता है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक़ इंडिया में अभी 1000 लोगो पर 1.7 नर्सें है जबकि 2.5 नर्सें होनी चाहिए। मतलब तक़रीबन 2.5 मिलियन नर्सेज़ की शोर्टेज है और ये नंबर समय के साथ और भी ज़्यादा हो जायेंगे। तो आखिर ऐसी क्या वज़ह है जिसकी वजह से हमारी महिलायें और अन्य लोग इस प्रोफ़ेशन में आने से क़तरा रहीं है।
इसके पीछे एक नहीं बहुत से कारण है। सबसे पहले तो आज भी हमारे देश में इसके लिए प्रॉपर एजुकेशन फैसिलिटीज़ नहीं है। इसी कारण साल दर साल स्टूडेंट एनरॉलमेंट कम होता जा रहा है। हमेशा से ही इसे हल्के में लिया गया है और अक्सर लोग डॉक्टर पर ही फ़ोकस करते आये हैं।
इसी के साथ हमारे यहां नर्सेज की आय भी अच्छी नहीं है। अगर देखा जाए तो एक डॉक्टर से भी ज्यादा काम नर्स के ज़िम्मे होता है। वो पेशेंट्स को फ़िज़िकल केयर से लेकर इमोशनल केयर भी देतीं है। लेकिन इसके बावज़ूद एक नर्स की औसतन आय 15000 – 20000 हज़ार ही होती है। तो शायद ये भी एक मुख्य कारण है की महिलायें इस फील्ड में आना नहीं चाहतीं।
घर से लेकर हॉस्पिटल तक सबकी केयर करने वाली इन नर्सेज़ की केयर करने वाला कोई नहीं होता है। अगर अभी भी देखें तो न जाने कितनी ऐसी नर्सेज़ हैं जो अपने घर ही नहीं गयी होंगी और दिन रात बस इन पेशेंट्स की केयर करने में लगी हुईं हैं। लेकिन इन सब में हम उनकी सिचुएशन को अनदेखा कर रहें हैं
और इतना ही नहीं इनकी हेल्थ पर भी कोई ध्यान नहीं देता है। आज भी हमारे देश में हॉस्पिटल सैनिटेशन का कोई महत्व ही नहीं है। ये नर्सेज़ दिन रात न जाने कितने पेशेंट्स के सम्पर्क में आती हैं, लेकिन इनके हाइजीन के बारे में कोई नहीं सोचता है। इनके एप्रिन से लेकर मास्क तक न जाने कितने दिनों तक इस्तेमाल किये जाते है जो की इनके सेहत के लिए भी हानिकारक है, लेकिन हमारे देश में तो हॉस्पिटल सैनिटेशन के बारे में कोई सोचता ही नहीं है। लोग तो बस इन महिलाओं को उनकी केयर करने वाले एक रोबोट की तरह समझते है , जिनकी खुद की कोई जरूरत नहीं है।
लेकिन अब ये वक़्त हर तरफ से आगे बढ़ने का है और हर क्षेत्र में महिलओं की सामान इज़्ज़त और इनकम का है। इस इंटरनेशनल नर्सेज डे पर अगर हम फ्लोरेंस नाइटिंगेल जैसी महिलायें और चाहते है तो सबसे पहले उन्हें समझने की जरूरत है। उनकी ज़रुरतों को हमें समझने की ज़रूरत है। उनकी इज़्ज़त करने की हमें ज़रूरत है।
अगर आज फ्लोरेंस नाइटिंगेल हमारे बीच मौजूद होती तो वो शायद इस सिचुएशन को बेहतर तरीके से हैंडल कर पाती। शायद वो अपने मैथमेटिक्स के फ़ॉर्मूले इस्तेमाल करके सैनिटेशन के बारे लोगों को जागरूक कर पातीं। लेकिन उनकी कमी हमारी ये महिलायें पूरी कर रहीं है।
फिजिकल अटैक से लेकर मेन्टल टार्चर तक सब कुछ इन नर्सेज़ ने सह लिया लेकिन कभी शिकायत नहीं की। और अपना काम पूरे जज़्बे से साथ कर रहीं है। लेकिन अब हमें इन्हे समझने की जरूरत है। इनकी इनकम भी इनके काम के डेडिकेशन के बराबर ही होनी चाहिए। आइये फ्लोरेंस नाइटिंगेल के इस जन्मदिन पर उन्हें तोहफ़े के रूप में यही वादा करते हैं कि हम इन नर्सेज का भी उतना ही सम्मान करेंगे जितना की एक साधारण डॉक्टर का करते हैं।
मूल चित्र : Wikipedia/Google
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
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