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एक बात मुझे कभी कभी सोचने पर विवश करती है, मैं कैसी सास बनूँगी? क्या समय का चक्र मुझे भी ठीक वहीं ले जाकर खड़ा करेगा जहां मैं कभी खड़ी थी?
एक बेटे की माँ होने के नाते खुद को भावी सास के रूप में अक्सर कल्पित किया करती हूँ। हाँ जानती हूँ थोड़ा जल्दी कर रही हूँ पर सास-बहु के इतने ग्रंथों का पठन करने के बाद और हर घर में इस रिश्ते की एक मनोरंजक कहानी को सुनने पर इस विषय पर चिंतन करना स्वाभाविक सा हो ही जाता है। ‘सास’ की हमारे जीवन में नमक सी भूमिका लगती है, ना हो तो बेस्वाद और ज़्यादा हो गया तो खारा। बिलकुल नपा तुला सा रिश्ता।
यही बात मुझे कभी कभी सोचने पर विवश करती है, मैं कैसी सास बनूँगी? क्या समय का चक्र मुझे भी ठीक वहीं ले जाकर खड़ा करेगा जहां मैं कभी खड़ी थी? शायद हाँ! शायद नहीं! इसी कशमकश में आज एक पत्र लिखा है मेरी भावी बहू को, आपके साथ साझा कर रही हूँ।
प्रिय बेटी,
तुम हमारे जीवन में खुशियाँ लेकर आना, मेरे बेटे का जीवन खुशियों से भर देना, हमारे घर के अनुसार ढ़ल जाना, हम जैसी बनने की कोशिश करना, लेकिन ना भी बन सको तो कोई बात नहीं, तुम हमें स्वीकार हो।
अपनी पसंद नापसंद हमें बताना, कुछ हमारा पहन लेना, कुछ अपनी पसंद का पहनना, हमारे रीति रिवाज़ में ढल जाना, हमारे रिवाजों को अपनाना, लेकिन ना निभाना चाहो तो भी कोई बात नहीं, तुम हमें स्वीकार हो।
हमें अच्छा लगेगा जो तुम हमारे लिए कुछ पकाओ, अलग अलग व्यंजन से हमारा दिल जीत जाओ, लेकिन ना बना सको तो भी कोई बात नहीं, तुम हमें स्वीकार हो।
नौकरी से जब तुम आओ तो हमारे पास आकर बैठना, शाम की चाय साथ लेना हमें अच्छा लगेगा, मैं तुम्हारे लिए लाऊं वो कप और हम साथ साथ चुस्की लें, हमें स्वीकार है।
जो बिगड़ जाए कभी रसोई में कुछ, तुम्हे प्यार से फिर बनाना सिखाऊं, फिर साथ साथ पका कर प्यार की आंच में, परोसे हम दोनों एक साथ, हमें स्वीकार है।
मेरे घर की डोर तुम भी अपने हाथ में लेना, अपने निर्णय और प्रस्ताव खुलकर रखना, अनुभव गलतियों से ही बनते हैं, जानती हूँ मैं, ग़लत भी हो तो कोई बात नहीं, तुम हमें स्वीकार हो।
मानना मुझे तुम अपनी माँ ही, लेकिन जो घर पीछे छोड़ आई उसे भी संजोये रखना, जो दवा दो मुझे बीमार पड़ने पर, तो खैरियत पूछना दौड़कर अपने घर की भी, हमें स्वीकार है।
पालना बच्चों को परम्पराओं के साथ, रखना मान मेरी सलाह का, लेकिन सुसज्जित करना उसमें नयी रीतियाँ भी अपनी, हमें स्वीकार है।
जो ना भी बन पाओ हम जैसी, कोई शर्त नहीं, रहोगी हमेशा इस घर का हिस्सा, एक अटूट अंग, हम सब को खुद में समेत लेना, हमें स्वीकार है।
तुम्हारी अपनी…
मूल चित्र : Pexels
Now a days ..Vihaan's Mum...Wanderer at heart,extremely unstable in thoughts,readholic; which has cure only in blogs and books...my pen have words about parenting,women empowerment and wellness..love to delve read more...
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