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एकल परिवारों का चलन और रिश्तों से अधिक पैसों को अहमियत देने वाली पीढ़ी जिनके लिए ये बुजुर्ग औरतें एक बोझ से बढ़कर अब कुछ नहीं।
पूरे परिवार को एकसूत्र में पिरोकर रखने वाली, सबकी चिंता और परवाह करने में मगन खुद के प्रति बेपरवाह रहने वाली, गाहे-बगाहे हमारी गल्तियों पर अपनी खट्टी-मीठी झिड़कियों से नसीहत देने वाली, चाँद और परियों की कहानियां सुनाकर हमें प्रेरणा देने वाली, मीठी लोरी गुनगुनाकर हमें सपनों की रंग-बिरंगी दुनिया में सुख की नींद सुलाने वाली, सादा खाने में भी अपने हाथों के जादू से स्वाद का तड़का लगाने वाली, रसोई-चौके में कुछ सामान न होते हुए भी, बढिया पकवान झट से बना डालने वाली, अपने हाथों के स्पर्श से पुराने सामान को एकदम नया सा रूप देने वाली, आर्थिक संकट से जूझते परिवार पर अपने पास सहेज कर रखी गई पूंजी न्यौछावर कर देने वाली, हर अपने-पराए को हंस कर गले लगाने वाली दादी-नानी मां, हर घर-परिवार की रौनक होती हैं ये बुजुर्ग औरतें।
लेकिन न जाने क्यों आजकल परिवार की यही रौनक अब परिवारों से दूर होकर एकाकी जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं और बच्चे इनके अस्तित्व से अंजान एक अलग ही दुनिया में पल-बढ़ रहे हैं जहां मानवीय मूल्य और संवेदनाएं लगभग लुप्त हो चुकी हैं।
कारण, एकल परिवारों का चलन और रिश्तों से अधिक पैसों को अहमियत देने वाली एक ऐसी पीढ़ी जिनके लिए ये बुजुर्ग औरतें केवल एक बोझ से बढ़कर कुछ नहीं।
लेकिन ऐसे लोगों को मैं केवल बदकिस्मत ही कह सकती हूं क्योंकि वे नहीं जानते कि उन्होंने जिसे बोझ समझ खुद से अलग कर दिया है, असल में खुद का ही नुकसान किया है। वो उस दैवीय आशीर्वाद से वंचित रह गए हैं जो इनकी उपस्थिति मात्र से ही पूरे परिवार को हर बुरी नज़र और आपदा से बचाने की शक्ति समेटे होता है।
और इतना ही नहीं, जो लोग सोचते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ अब उन बुजुर्ग के अनुभव व सोच भी बूढ़े हो गए हैं, तो उन्हें जान लेना चाहिए कि घर की सबसे बुजुर्ग सदस्या जिसे अक्सर एक अवांछित बोझ की तरह समझा जाता है, मैंने पाया है कि उनके पास परिवार चलाने के लिए बिल्कुल एक मल्टीनेशनल कंपनी के सीईओ से अधिक अनुभव और कौशल होता है। इनके रहते परिवार की आर्थिक स्थिति और तमाम रिश्तों की जमा पूंजी हमेशा लाभ में ही रहती है। इनके पास कठिन से कठिन परिस्थितियों से निपटने की अचूक क्षमता होती है।
बच्चे बीमार पड़ जाएं और महंगे डाक्टर और दवाइयों से भी सुधार न आ रहा हो तो इनके प्यार और ममता भरे स्पर्श मात्र से ही बच्चे आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो फिर से चहक कर खिलखिला उठते हैं। यह सब कोरी कल्पना नहीं है। मैंने इन दादी-नानी, माँओं, में देखी है वह ईश्वरीय शक्ति जो हर पल परिवार के साथ रहती है।
तो अभी भी वक्त है, अपने घर में देवी देवताओं को अवश्य पूजिए लेकिन घर को नानी-दादी माँओं, के रूप में मिले दैवीय आशीर्वादों से भी गुलज़ार कीजिए और वैसे भी वो फिर माँ तो हैं ही।
हाँ! लेकिन आज भी सच में वो परिवार भाग्यवान हैं जहां इन बुजुर्ग औरतों की रौनकों से घर चहक रहा है।
‘उस घर से सुख, रौनकें और खुशहाली कभी नहीं जाती, जहां दादी-नानी मां की खिलखिलाती हंसी और डांट की बौछार है आती!’
मूल चित्र : Pexels
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