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इरफान खान अपना डायलॉग पहले आंखों से कह देते थे उसके बाद वह उनकी ज़ुबां पर आता था और उनकी वो आंखें और डिंपल वाली मुस्कान दिल में रहेंगी...
इरफान खान अपना डायलॉग पहले आंखों से कह देते थे उसके बाद वह उनकी ज़ुबां पर आता था और उनकी वो आंखें और डिंपल वाली मुस्कान दिल में रहेंगी…
साल 2020 की शुरुआत वैसे ही कुछ खास अच्छी नहीं हुई क्योंकि बिन बुलाए मेहमान की तरह कोरोना ने दस्तक दे दी। पर हम किसी तरह इसमें भी कुछ अच्छा ढूंढने की कोशिश कर ही रहे थे लेकिन 29 अप्रैल 2020 को जो हुआ उससे मुझे सच में बहुत दुख पहुंचा। सुबह-सुबह ही ख़बर मिली की हमारे सबके चहेते अभिनेता इरफान खान इस दुनिया में नहीं रहे। वो कैसे गए और क्यों गए सब जानते हैं इसलिए मैं वो बात ही नहीं करना चाहती क्योंकि वो मेरे लिए और उनके सच्चे चाहने वालों के लिए गए ही नहीं।
इरफान अपनी फिल्मों में किरदार को अपना बना लेते थे और ऐसे लगता था मानो ये तो बस उन्हीं के लिए बना है। मुझे वाकई पहली बार किसी हस्ती का जाना इतना बुरा लगा। कुछ लोग अपने ना होकर भी अपने जैसे लगते हैं और उनका जाना अपनों के जाने से भी ज्यादा खलता है। इरफ़ान ख़ान के जाने पर यही एहसास हुआ।
वैसे तो उनका फिल्मी करियर करीब 30 साल का था लेकिन उनके शुरूआती दिनों में ना हम उन्हें उतना पहचान पाए ना ही फिल्मी जगत ने इस हीरे को पहचाना। ख़ैर, देर आए दुरुस्त आए और अपनी मेहनत के बलबूते पर इरफान ने फिर अपना परचम ना सिर्फ बॉलीवुड में बल्कि कई इंटरनेशनल फिल्में करके हॉलीवुड में भी फहराया। वो हक़दार भी थे इसके बल्कि इससे भी ज्यादा के।
20 सितंबर 2013 को उनकी एक फिल्म आई जिसका नाम था लंचबॉक्स। हालांकि मैंने तब ये नहीं देखी थी लेकिन कुछ महीनों बाद देखी। वो दिन था और इरफ़ान खान मेरे पसंदीदा बन गए थे। माय फेवरेट हीरो फॉरएवर। एक सादी सी कहानी को भी अभिनय के माध्यम से कैसे एक्स्ट्राऑडिनरी बनाया जा सकता है ये सिर्फ़ इरफ़ान ही जानते थे। फिर तो मैंने ना जाने कितनी ही फिल्में बार-बार देखी सिर्फ इसलिए क्योंकि उनमें इरफान खान थे। दिग्गज कलाकार हों या नए या फिर आगे आने वाले, इरफ़ान अब हमेशा के लिए दि बेस्ट रहेंगे।
इरफान खान और अभिनय तो एक-दूसरे के पर्यायवाची थे ही लेकिन मुझे जो सबसे ज्यादा उनमें पसंद था वो था उनकी आंखें। वो अपना डायलॉग पहले आंखों से कह देते थे उसके बाद ज़ुबां पर आता था। मैं उन्हें जब भी पर्दे पर देखती थी उनकी आंखें और डिंपल वाली मुस्कान ये दो बातें ऐसी थी कि उनकी कही एक बात बार-बार भी सुन लो तो हर बार नई सी लगती थी।
उनकी 4 फिल्में तो मैंने पचासों बार देखी हैं। उनका वो स्वाभाविक सा रूमानी और नटखट अंदाज़ इतना फुल ऑफ लाइफ था कि अगर किसी दिन मन ख़राब हो तो इनमें से मैं कोई एक फिल्म देख लेती थी और फिर सब ठीक हो जाता था। जादूगर की तरह वो अपने अभिनय की छड़ी घुमाते थे और करोड़ों को अपना दीवाना बना देते थे। करीब-करीब सिंगल का शायर योगी, कारवां फिल्म का श़ौकत, पीकू का राणा और हिंदी मीडियम का राज बत्रा, ये वो 4 लोग हैं जिन्होंने मुझे हंसाया भी और बहुत कुछ सिखाया भी।
जब इंसान की उम्र तो बढ़े लेकिन वो बूढ़ा होने की बजाए और भी ख़ूबसूरत लगने लगे तो उसके लिए अंग्रेज़ी में कहावत है ‘Aging like a wine’ मतलब वाइन जितनी पुरानी होती है उतनी ही बेहतर। बस इरफ़ान का सुरूर कुछ वैसा ही था।
हमारे प्यारे पान सिंह तोमर, तुम जब मुस्कुराते थे, हम मुस्कुराते थे तुम 50 की उम्र में भी किसी नए नवेले हीरो से कहीं ज्यादा दिल धड़काते थे और तुम्हारी सोने पर सुहागा आंखें, अंदर और बाहर की सच्चाई को बख़ूबी बयां करती थी
ऐश्वर्या राय के साथ इरफान ने 2015 में फिल्म जज़्बा में काम किया था। फिल्म भले ही इतनी कामयाब नहीं हुई लेकिन इसमें इरफ़ान का एक डायलॉग पूरी फिल्म का पैसा वसूल करवा देता है।
‘मोहब्बत है इसलिए जाने दिया, ज़िद होती तो बांहों में होती’ और डायलॉग ख़त्म होते ही उनकी वो स्माइल जिसके बाद आप ‘उफ्फ’ कहे बिना नहीं रह पाएंगे।
https://www.youtube.com/watch?v=EV-KiIFaCBk
‘भाइयों के बीच कोई आएगा नहीं’ ये डायलॉग भले ही शब्दों में साधारण सा लगे लेकिन इरफान ने 2004 में तब्बू के साथ आई शानदार फिल्म मकबूल में जिस इंन्टेंसिटी के साथ इसे कहा है उससे आपको ये पता चलेगा कि इरफान साधारण से शब्दों को में भी कैसे जान फूंक देते थे।
“Remember it always, remember that you and i made this journey and went to a place where there was nowhere left to go”. मीरा नायर की 2007 में आई फिल्म नेमसेक में इरफान ने एक पिता के रोल को जिया था। ये फिल्म माता-पिता और बच्चों के रिश्ते की एक खूबसूरत कहानी है जिसका ये डायलॉग और सीन मुझे बेहद पसंद है।
“बीहड़ में बाग़ी मिलते हैं, डक़ैत मिलते हैं पार्लियामेंट में।” हो सकता है आपमें से कुछ ने पान सिंह तोमर ना देखी हो क्योंकि इसकी जितनी चर्चा होनी चाहिए थी हुई नहीं और अगर नहीं देखी तो ज़रूर देखिएगा। पान सिंह तोमर भारत के एक ऐसे एथलीट की सच्ची कहानी पर आधारित थी जो पूरे सिस्टम पर ज़ोरदार वार करती है। फिल्म भले ही बायोग्राफी थी लेकिन पान सिंह को याद करेंगे तो इरफान का चेहरा ही सामने आ जाएगा।
कहते हैं एक सुनार की सौ लुहार की, इरफान के अलावा फिल्म में चाहे कितने भी जाने माने अभिनेता-अभिनेत्री क्यों ना हो लेकिन अगर पूरी फिल्म में उनका एक भी सीन होगा ना तो आप उसे भूल नहीं पाएंगे। फिल्म गुंडे में रणवीर सिंह, अर्जुन कपूर और प्रियंका चोपड़ा जैसे कर्मशियल स्टार्स के साथ थे इरफ़ान खान। उनका डायलॉग “हम कानून हैं, कानून की खास बात होती है वो अपनी औकात पर आ जाए तो कहीं भी घुस सकता है और किसी को भी तोड़ सकता है” लाजवाब था।
ये तो बस ट्रेलर है उनकी हर फिल्म का हर डायलॉग उठा कर देख लीजिए। जी नहीं भरेगा। जब वो गए तो सबसे पहला यही ख्याल आया कि ‘अभी नहीं इरफ़ान, अभी तो आपके और भी कई किरदारों को देखना था। उस दिन के बाद से उनके बहुत सारे इंटरव्यूज़, फिल्में और प्रोग्राम देख रही हूं। उन्हें याद करके उनकी मुस्कुराहट ही याद आ रही है।
उनके जाने से जो जगह खाली हो गई है वो कभी भरेगी नहीं लेकिन अपनी फिल्मों की जो विरासत वो हमें दे गए हैं वो उन्हें हमेशा हमारे दिलों में ज़िंदा रखेगी। जिस दिन इरफ़ान गए सोशल मीडिया पर लोग सब भूलकर सिर्फ़ उन्हें ही याद कर रहे थे।
इरफान खान की हर सुख-दुख में साथी उनकी पत्नी सुतापा ने बड़ी हिम्मत से उनके ना रहने पर जो संदेश सबके लिए दिया वो दिल छू लेने वाला था। सुतपा ने कहा “मैं इसे एक परिवार के बयान के रूप में कैसे लिख सकती हूं जबकि पूरी दुनिया इसे व्यक्तिगत नुकसान मान रही है? जब लाखों लोग इस समय हमारे साथ हैं तो मैं अकेला महसूस कैसे कर सकती हूं? मैं सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमने कुछ खोया नहीं बल्कि पाया ही है।
हमने वो चीज़ें पाईं जो वो हमें सिखाकर गए हैं और अब हमें उन चीज़ों पर अमल करना है और खुद को विकसित करना चाहिए। मैं उस खालीपन को भरना चाहती हूं जिसके बारे में लोगों को इल्म भी नही है। ये हमारे लिए अविश्वसनीय है लेकिन इसे मैं इरफ़ान के शब्दों में कहूं तो ये ‘जादुई’ है भले ही वो वहां हो या नहीं और उन्हें यही पसंद भी था। वो कभी एकआयामी असलियत को चाहने वाले नहीं थे, लेकिन वो ज़िंदगी भर के लिए मुझे बिगाड़ कर चले गए।
उनकी परफेक्शन की कोशिशें मुझे किसी भी साधारण चीज़ को स्वीकारने नहीं देगी। इरफ़ान को हर चीज़ में लय और संगीत सुनाई देता था चाहे वो शोर ही क्यों ना हो। मैंने इरफ़ान के साथ रहते हुए उस धुन पर नाचना और गाना सीख लिया। मज़ेदार बात ये है कि हमारा जीवन अभिनय का मास्टरक्लास था, इसलिए जब ‘बिन बुलाए मेहमान’ की एंट्री हुई, तब तक मैंने उन मतभेदों से सामंजस्य बिठाना सीख लिया। डॉक्टर की रिपोर्ट किसी फिल्म स्क्रिप्ट की तरह होती थी जिन्हें मैं परफेक्ट देखना चाहती थी इसलिए हर ब्यौरे को ध्यान से पढ़ती थी ताकि उन चीज़ों से चूक ना जाऊं जो बातें वो अपनी परफॉर्मेंस में ढूंढते थे।
इस पूरे सफ़र के दौरान हमें कुछ शानदार लोग मिले जिनमें से कुछ का ज़िक्र मुझे करना होगा। हमारे ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ, नितेश रोहतोगी (मैक्स अस्पताल साकेत) जिन्होंने शुरुआत में हमारा हाथ थाम रखा था, डॉ. डेन क्रेल (यूके), डॉ. शिद्रवी (यूके), मेरे दिल की धड़कन और अंधेरे में मेरी लालटेन डॉ. सेवंती लिमये (कोकिलाबेन अस्पताल)।
यह समझाना मुश्किल है कि यह यात्रा कितनी शानदार, दर्दनाक और रोमांचक रही है। मुझे लगता है कि यह ढाई साल का अंतराल रहा है जो कि इरफान के कंडक्टर की भूमिका निभाने में एक शुरुआत, मध्य और अंत भी रहा। हम 35 साल एक दूसरे से जुड़े रहे। हमारी शादी का रिश्ता नहीं बल्कि एक मिलन था।
मैं अपने छोटे से परिवार को एक नाव में देखती हूं जिसमें मेरे दोनों बेटे बाबिल और अयान भी मेरे साथ हैं। इसे आगे बढ़ाने में इरफान के निर्देश वहां वहीं यहां से मोड़ो भी हमारे साथ हैं। लेकिन चूंकि जीवन सिनेमा नहीं है और कोई इसमें रीटेक नहीं होते। ईमानदारी से मेरी कामना है कि मेरे बच्चे इस नाव को अपने पिता के मार्गदर्शन के माध्यम से सुरक्षित रूप से चलाते रहे और रॉकबाय करे। मैंने अपने बच्चों से पूछा, यदि संभव हो, तो वे अपने पिता द्वारा पढ़ाए गए सबक को अपनी लाइफ में जोड़े जो उनके लिए महत्वपूर्ण है।”
बस अंत में मेरी तरफ़ से इतना ही कहना चाहूंगी:-
मौत भी उसके बिना रह नहीं पाई ज़िंदगी से उसे वो अपने लिये छीन लाई फिर मिलेंगे इरफान …
मूल चित्र : Facebook
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