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उसने पहले ही सोच लिया था कि वह लोगों के तानों का जवाब अपने हुनर से देगी, अपने काम से देगी, उनसे लड़ कर नहीं और वह लगी रही।
शालिनी चुलबुली सी और प्यारी सी एक लड़की थी जो हमेशा हँसती खेलती रहती थी। पढ़ाई में अव्वल, खेल कूद में आगे, घर के कामों में निपुण। सब कुछ परफेक्ट सा था उसका। किसी का दिल दुखाना क्या होता है उसे पता तक नहीं था, अपनी दुनिया में मस्त एक ज़िम्मेदार लड़की।
बस एक ही कमी थी उसमें लोगों के हिसाब से, उसकी हाइट। हाँ, छोटे कद की थी वो और उसकी इस शारीरिक कमी के लिए उसे न जाने क्या क्या सुनना पड़ता था? मानो उसके हाथ में था ये सब! उसने जानबूझकर अपना कद कम किया हो। उसकी सारी अच्छाइयों को छिपाने के लिए उसके कद को जरिया बनाया जाता था। उसे जताया जाता था हमेशा कि वो छोटी है, उसका मजाक बनाया जाता था कि ये नहीं कर सकती वो, यहाँ नहीं पहुँच सकती वो, ये तो इसके बस का ही नहीं है, वगेरह वगेरह।
शालिनी को बुरा तो बहुत लगता था, पर वो उन्हें जवाब देना जरूरी नहीं समझती थी। उसने सोच लिया था कि वह लोगों के तानों का जवाब अपने हुनर से देगी, अपने काम से देगी, उनसे लड़ कर नहीं। जैसे जैसे उसकी उम्र शादी के लायक होती गई लोगों के ताने भी बढ़ गए, पर उसने परवाह नहीं की। धीरे धीरे शालिनी की माँ से भी कहा जाने लगा कि “तुम्हारी लड़की की हाइट तो छोटी है, कोई अच्छा लड़का नहीं मिलेगा तुम्हारी शालिनी को”।
शालिनी की माँ भी पलट कर जवाब में बिना हिचके कह दे देती थी कि “क्या कमी है मेरी बेटी में? जो उसकी खूबियों को नहीं समझते उनमें और उनकी सोच में कमी है, मेरी बेटी में नहीं।” शालिनी की माँ लोगों से तो कह देती थी पर मन ही मन वो भी जानती थी लोगों की सोच को और डरती थी अपनी बेटी के भविष्य को लेकर। उसने कभी भी शालिनी को जाहिर नहीं होने दिया पर शालिनी समझ गयी थी अपनी माँ की चिंता को।
उसने माँ से आगे बढ़कर बात की और उसे समझाया, “माँ आप चिंता मत करो। जो इंसान मेरे व्यक्तिव से नहीं, मेरे बाहरी रंग रूप से मेरी पहचान करेगा वो ज़िंदगी भर मेरा साथ क्या निभायेगा? मैं जैसी हूँ, वही मेरी पहचान है।”
वो आगे बोली, “माँ आपने वो कहावत तो सुनी होगी कि ‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर? पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर’, मैं अपनी हर कमी को अपनी ताकत से हरा दूंगी और तब ही शादी करुँगी जब मुझे, मैं जैसी हूँ वैसे ही स्वीकार किया जाएगा और वो भी सम्मान के साथ। तब तक हम इस बारे में बात भी नहीं करेंगे।”
शालिनी लोगों की कही बातों को पीछे छोड़ कर और अपनी माँ को समझाकर अपनी आईएस की परीक्षा की तैयारी में पूरे जोर शोर से लग गयी। अब उसका एक ही लक्ष्य था, अपनी योग्यता से अपने व्यक्तिव की पहचान बनाना, ना कि अपने कद से।
रिजल्ट आया तो सब हैरान हो गए, शालिनी ने पहले ही प्रयास में आईएस क्लियर कर लिया था और साथ में ही कर दिया उन सभी लोगों का मुँह बंद जो हमेशा उसे कोसने के लिए ही मुँह खोलते थे। कुछ ही महीनों में उसने अपने व्यक्तिव से, अपने काम से अपनी एक अलग पहचान बना ली थी और बना ली थी जगह समीर के दिल में भी।
समीर शालिनी को अपना जीवन साथी बनाना चाहता था, उसकी अच्छाइयों की वजह से न कि वो कैसी दिखती है इस वजह से। शालिनी बहुत खुश थी कि उसकी खोज पूरी हो गयी, उसे वो मिल गया जिसकी सोच उसकी सोच से मेल खाती है।
मूल चित्र : Canva
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