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वह नानी, दादी की कहानियां, बचपन की शरारतें, मां - पापा की डांट और फिर से नानी का अपने गोद में लेकर पुचकारना, कुछ अलग सी जिंदगी हुआ करती थी।
वह नानी, दादी की कहानियां, बचपन की शरारतें, मां – पापा की डांट और फिर से नानी का अपने गोद में लेकर पुचकारना, कुछ अलग सी जिंदगी हुआ करती थी।
कहते हैं वक्त आगे बढ़ता जाता है, पल भर को भी रुकता नहीं, पर यादें, यादें तो मानसपटल पर कभी ना मिटने वाली गहरी छाप छोड़ जाती हैं। ऐसी हीं कुछ यादें हैं मेरे बचपन की जिनमें खो कर ऐसा लगता है जैसे मैं फिर से छोटी बच्ची बन गई और समय के पालने में लेटी झूला झूल रही हूं।
वह नानी, दादी की कहानियां, बचपन की शरारतें, मां – पापा की डांट और फिर से नानी का अपने गोद में लेकर पुचकारना, कुछ अलग सी जिंदगी हुआ करती थी, बेफिक्र सी, ना किसी बात कि चिंता ना किसी बात का डर। ऐसी कई यादें हैं बचपन की जो कई बार हमारी आज की जिंदगी की समस्याओं का समाधान बड़ी आसानी से कर देती हैं। कभी – कभी मुझे लगता है कि, बचपन में नानी – दादी के साथ बिताए हुए लम्हें अनमोल थे।
मम्मी जब भी दादी के पास जाती मुझे नानी के पास छोड़ जाया करती क्यूं ? ये बात तब समझ नहीं आती थी पर तब नानी ने समझाया कि दादी की तबीयत अक्सर खराब रहा करती और फिर वहां मेरी देखभाल सही तरीके से नहीं हो पाती इसलिए मम्मी ऐसा करती, तो इस तरह मुझे नानी के साथ ढेर सारा समय मिल जाता।
नानी ढेर सारी कहानियां सुनाती, अपने पास ही सुलाती और हर बार ऐसी चीजें खाने की आदत डलवा देती जिन चीज़ों को मैं देखना भी पसंद नहीं करती। ना जाने ऐसा कौन सा जादू होता उनकी बातों और कहानियों में कि, मैं उनकी कही हर बात झटपट मान जाती और जब मम्मी वापस आती तो मैं एक अच्छी बच्ची के रूप में मिलती।
नानी की कहानियों में बहादुर परियां होती जो अपनी बहादुरी से किसी राजकुमार कि मदद करती, जादू होता और हरी सब्जियां और फल खाने वाले बहादुर बच्चे होते जो निडर होकर किसी भी चुनौती का सामना करने की क्षमता रखते और अपनी बहादुरी के लिए पुरस्कार पाते।
कितना अच्छा हो अगर हम भी अपने बच्चों को स्मार्ट फोन की जगह दादी, नानी के साथ ऐसे अनमोल पल, ऐसी भूली – बिसरी यादें दे पाएं।
मूल चित्र : Canva
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