कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

आँधियों में चट्टान के जैसी, माँ हो जाऊँ मैं कुछ तेरे जैसी

होती हूँ जब मुश्किल में डूबी, सोचती हूँ, तू होती माँ, तो क्या करती? सुलझ जाती हैं गाठियाँ सभी,है तेरी परवरिश की क्या खूबी...

होती हूँ जब मुश्किल में डूबी, सोचती हूँ, तू होती माँ, तो क्या करती? सुलझ जाती हैं गाठियाँ सभी,
है तेरी परवरिश की क्या खूबी…

कहते हैं सब, हूँ मैं अपने पैरों पर,
पर बनाना चाहती हूँ कुछ अपनी पहचान।

पापा के चेहरे की मुस्कान,
वह तृष्टि, वह तेज, वह मान
सिर उठा के शान से दिखता है क्यूंकि,
उनके पीछे है माँ तेरा धैर्य, तेरा सम्मान।

आँधियों में चट्टान के जैसी,
हो जाऊं कुछ तेरे जैसी।

होती हूँ जब मुश्किल में डूबी,
सोचती हूँ, तू होती माँ, तो क्या करती।
सुलझ जाती हैं गाठियाँ सभी,
है तेरी परवरिश की क्या खूबी।

अँधेरे में लौह के जैसी,
हो जाऊं कुछ तेरे जैसी।

छोटी-बड़ी तारीफें सुनकर,
मन में आता माँ तेरा ही ध्यान।
अभी तो हूँ सिर्फ अपने जैसी,
हो जाऊँ कुछ तेरे जैसी।

आज जो हूँ मैं भी एक माँ,
समझ गयी हूँ क्या है यह ज़िम्मा,
था प्यार, आदर तेरे लिए पहले भी बहुत,
पर रुतबे में तू और उठ गयी है माँ।

सन्नाटे में ॐ के जैसी,
हो जाऊं कुछ तेरे जैसी।

मूल चित्र : Canva 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Gunjan Dua

Start at home mother, freelance content writer, cooking enthusiast, khandaani storyteller read more...

1 Posts | 2,220 Views
All Categories