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माँ आपके ये डायलॉग्स बनाते हैं आपको मेरी फेवरिट हीरोइन…आई लव यू माँ!

क्यूंकि माँ मैं आपसे इन दिनों नहीं मिल नहीं पा रही, तो सोचा क्यों ना आज कुछ अलग हो जाए? तो माँ इस लिस्ट को पढ़िए और बताएं क्या मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं आप?

क्यूंकि माँ मैं आपसे इन दिनों नहीं मिल नहीं पा रही, तो सोचा क्यों ना आज कुछ अलग हो जाए? तो माँ इस लिस्ट को पढ़िए और बताएं क्या मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं आप?

अभी लॉकडाउन का समय चल रहा है और ये मदर्स डे भी आ गया। कई सारे बच्चे ऐसे हैं जो अपने घर से दूर हैं।  खासकर अपनी माँ से दूर हैं। ऐसे समय माँ की याद आना तो लाज़मी है। तो माँ, मैं कुछ इमोशनल सा लिख कर मैं आपको आज रुलाना नहीं चाहती। मैं चाहती हूँ कि आज आप हँसे!

माँ मैं चाहती हूँ कि आज आप हँसे!

पर मुझे एक बात बताइये कि जब भी आपको अपनी माँ की याद आती है तो उनको कौनसी आदत की सबसे ज़्यादा याद आती है? भाई, मेरे लिए तो माँ की याद, मतलब उनके हाथों के खाने की याद, उनकी डांट की याद, और सबसे ऊपर रोज़ मरा की बातों पे उनके अनूठे रिएक्शंस और डायलॉग्स की याद। अब ये डायलॉग्स जो हैं ना हर देसी माँ का राम बाण नुस्का तथा जनम सिद्ध अधिकार हैं।  

अगर हम बात करें कि हमारे बीच ड्रामेबाज़ कौन है, तो भाइयों और बहनों वो सिर्फ हमारी माँ हो सकती हैं। हम सब के देसी माँए जितना हमसे प्यार करती हैं, उतना ही हमें ताने मरने में भी आगे रहती हैं।

तो यहाँ पर माँ को याद करते हुए ये एक लिस्ट है उन डायलॉग्स की जो हर भारतीय बच्चा बड़े होते होते अपनी माँ के मुँह से सुनता है, बल्कि अभी तक सुनता आ रहा हैं।  तो इस लिस्ट को पढ़िए अपनी माँ को याद करिये और लॉकडाउन के इस समय में थोड़ा मुस्कुराइए। 

‘थोड़ा और बटर लगा के खा, सूखती जा रही है एकदम…’

मतलब ये तो अटल सत्य है कि एक माँ के लिए उसका बच्चा हमेशा भूखा ही रहता है।  मतलब भले ही मैं 4 रोटी खा के पेट तान के बैठी हूँ, पर फिर भी मेरी माँ मुझे एक एक्स्ट्रा रोटी खिला के ही मानेगी क्यूंकि उनके लिए मैं हमेशा,  ‘हाय रे मेरी बच्ची कितनी दुबली हो गई है’ ही रहूंगी! 

‘उठ जा कुम्भकरण दोपहर हो गई!'(असल समय सुबह के 7 बजे)

अब चाहे सोमवार हो या रविवार हर माँ को प्रातः कल अपने बच्चे को उठाने में बड़ा आनंद आता है। और इसके लिए उनका सबसे पसंदीदा तरीका होता है, सुबह को दोपहर बताना! क्यूंकि हम बच्चो के पास तो घड़ी होती ही नहीं है!

‘कहाँ हो बेटा, कब आओगे घर?’

अब चाहे आप अपनी माँ के साथ रहते हो या फिर उनसे दूर ऐसा हो ही नहीं सकता की वो हर घंटे आपको फ़ोन कर के पूछती ना हो कि ‘कहाँ हो बेटा कब आओगे घर?’ हाँ कभी कभी उनकी ये आदत आपको खटक ज़रूर सकती है, पर यही वो प्यार है, जो बाद में याद आता है।  

‘तुम घर पे नहीं रहती हो तो शांति रहती हैं…!’

मुझे याद हैं कि मैं जब घर पे रहती तो मेरी माँ हमेशा कहती थीं कि ‘बेटा तुम घर पे नहीं रहती हो तो बड़ी शांति रहती है।’ परंतु जब भी मैं घर से बाहर कई दिनों के लिए किसी ट्रिप पे जाया करती थी तो हमेशा कहती थी ‘बेटा तुम घर पे नहीं  हती हो तो बड़ा सुना लगता हैं!’ मतलब माँ हम बच्चे करें तो क्या ना करें! क्या बोलें तो क्या न बोलें!

‘मैं ना इस फ़ोन को आग लगा दूंगी एक दिन…’

अगर हमारी माँओं का कोई सबसे बड़ा दुश्मन है, तो कसम से वो हमारा फ़ोन है। ‘सारा दिन फ़ोन पे लगी रहती है!’  या ‘बेटा कभी फ़ोन के बाहर भी देख लो!’ या फिर ‘इस फ़ोन को तो मैं आग लगा दूंगी!’ और ये, ‘ये फ़ोन ना हो गया जी का जंजाल हो गया।’ ये लाइन्स हमारी सारी मम्मियों की पसंदीदा हैं!

‘हे राम! कहाँ से पैदा हो गए ये, दिन भर मेरी छाती पे मूंग दलते रहते हैं!’

मुझे याद हैं जब भी मेरे और मेरे भाई के झगड़े होते थे तो मेरी माँ का सदाबहार तथा सदैव एक ही प्रत्रिक्रिया होती थी कि ‘कहाँ से आ गए ये दोनों मेरी छाती पे मूंग दलने! ये दिन देखने के लिए पैदा किया था?’ हमारी मम्मियों की इन लाइन्स को सुन के लगता है, हाय ये कैसा प्यार है आखिर!

‘तू मम्मी से ऐसे बात करेगी?’

‘मम्मी से ऐसे बात करेगी?’ शर्म हया सब बेच खाई है? श्रवण कुमार का सोचा था, ये दानव पैदा हो गई…!’  ‘तुझे 9 महीना अपनी कोख़ में पाला , तेरी सुसु-पोटी साफ़ की, ये दिन देखने के लिए कि तू मुझसे बहस करें?’

अब ये लाइन्स तब आती थी जब भी हम बच्चे अपनी मम्मियों को कुछ समझने की कोशिश करते है जिसमे भूले भटके से हम सही हो वो गलत हों। मम्मी ये कह देना कि ‘मम्मी से ऐसे बात करेगी? शर्म हाय सब बेच खाई है, श्रवण कुमार का सोचा था ये दानव पैदा हो गई’ या फिर  ‘तुझे 9 महीना अपनी कोख़ में पाला, तेरी सुसु-पोटी साफ़ की ये दिन देखने के लिए कि तू मुझसे बहस करे?’ का एक ही मतलब हो सकता है – हाहाकार!

‘सबसे सुन्दर लग रही है, नज़र ना लगे!’

अब चाहे आप अपने नए कपड़ो में काफी बुरे ही क्यों ना लग रहे हो आपकी माँ के लिए आप हमेशा सबसे सुन्दर राजा बेटा या बेटी ही रहोगे।  

‘घर का सारा काम मुझे ही करना पड़ता है, इस घर में कोई मेरी मदद ही नहीं करता!’

अब ये हमारी सारी माँओं का उनके बच्चों को बिना कुछ किये आत्मग्लानि दिलाने की निंजा तकनीक है। अब आखिर इसलिए तो वो हमारी माँ है क्यूंकि वह हमसे हमेशा दो कदम आगे रहती हैं!  

‘हाँ माँ की आखिर सुनता कौन है? खुद के बच्चे होंगे तब पता चलेगा!’

हर देसी माँ की तरह मेरी माँ भी किसी भी झगड़े में मुझे हराने के लिए मेरे भविष्य के बारे में मुझे यह कह के डराती थी कि ‘खुद के बच्चे होंगे तो पता चलेगा!’ यह वाक्य अपने आप में एक दो धारी तलवार है। इस से हम डर भी जाते हैं, और हमे यह भी एहसास हो जाता हैं कि हम कितने बुरे बच्चे हैं। वाह माँ वाह!

‘मैं तेरी माँ हूँ कि तू मेरी?’

इस बात का इतिहास गवाह है कि जब भी मैंने मेरी माँ को कुछ भी सिखाने की कोशिश की है तो मुझे जवाब में हमेशा, ‘मैं तेरी माँ हूँ या तू मेरी?’ यही सुनने को मिला है। तो हमारी सीख यही है कि भला माँ को बच्चा क्या सिखाएगा?

‘पूरे कपड़े पहन ले, ठण्ड लग जाएगी!’

अब हम बच्चे भले ही कितना भी फैशन दिखा लें, हमारी माँ हमसे ज़्यादा जानती है कि हमें कितनी ठण्ड लगती है। आखिर ऐसा कभी हुआ है कि ठण्ड के मौसम में हमारी माँ ने स्वेटर और एक्स्ट्रा गरम कपड़े पहने बगैर हमें निकलने दिया हो? नहीं ना? और उनकी इस टोका-टोकि के फायदे का एहसास हमें बाद में पता चलता है, क्यूंकि वो माँ हैं और वो हमें हमसे ज़्यादा ही जानती हैं।  

तो ये तो थीं माँ और उनके डायलॉग्स की बातें। अब अगर ये डायलॉग्स ना हों तो बच्चों को उनका जीवन कुछ नीरस और बेजान सा नहीं लगेगा? बस अब अंत में एक शुक्रिया करना चाहूंगी हम सब बच्चों की तरफ से सारी माँओं का डांटने के लिए, तानों के लिए और हम जहाँ भी हों हमेशा हमारा ख्याल रखने के लिए! माँ आप अपने डायलॉग्स ज़ारी रखें क्यूंकि जैसा मैंने शुरू में कहा, ” माँ आप मेरी फेवरिट हेरोइन हो! हैप्पी मदर्स डे माँ!”

मदर्स डे  : चलिए एक बार मां को भी इंसान की तरह देखें,  उन्हें एक मां की छवि से बढ़कर देखें, जो दिन भर बस आपकी और घर की देखभाल करती है और उन वर्किंग मदर्स को भी जो अपनी वर्क लाइफ और घर के बीच संतुलन बनाकर चलती है।  इस बार उन्हें एक औरत के रूप में देखें और इस मदर्स डे पर उन्हें सेलिब्रेट करें, चाहे आप उनके साथ रह रहें हैं या उनसे दूर। 2020 के इस मदर्स डे को अपनी मां के लिए यादगार बनाते है या अगर आप एक मां हैं तो अपने लिए यादगार बनायें।

मूल चित्र : Movie Khoobsurat 

 

About the Author

Nishtha Pandey

I read, I write, I dream and search for the silver lining in my life. Being a student of mass communication with literature and political science I love writing about things that bother me. Follow read more...

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