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मन ही ईश्वर, मन ही देवता, यह एक कहावत है संसार में मनुष्य की सभी गतिविधियां मन ही निर्धारित करता है।
खुद के सिवा न कोई संगी , मन होता भई बड़ा दुरंगी।
किसी पराए को जा अपनाता , कभी अपनों को पराया कर जाता , मन ये भईया बड़ा दुरंगी।
माया की ऊँची नगरी बसाता , कभी उसी नगरी को आग लगाता , मन ये भईया बड़ा दुरंगी।
चाहे तो दोस्त से दुश्मनी निभाता , कभी जा पुराने बैरी को गले लगाता , मन ये भईया बड़ा दुरंगी।
प्यार में चाहे तो दुनिया लुटाता , कभी उसी दुनिया को मिट्टी में मिलाता , मन ये भईया बड़ा दुरंगी।
मोह में बंधने की तरकीब जुटाता , कभी वही बंधन तोड़ भाग जाता , मन ये भईया बड़ा दुरंगी।
किसी के गुण पर बरबस रीझ जाता , कभी उन्हीं गुणों को धता बताता , मन ये भईया बड़ा दुरंगी।
सुख में कभी कलपता रहता, कभी दुखों में चैन की बंसी बजाता, मन ये भईया बड़ा दुरंगी।
जब प्यार मिले तो चिढ़ सा जाता , कभी प्यार बांटने को अकुलाता , मन ये भईया बड़ा दुरंगी।
लगी प्यास बुझाने नदी तक जाता , कभी बारिश बन सागर की प्यास बुझाता , मन ये भईया बड़ा दुरंगी।
भरे मेले में भी अकेला पड़ जाता , कभी अकेले में सपनों की दुनिया सजाता , मन ये भईया बड़ा दुरंगी।
जहां लग जाए वहीं धूनी रमाता। कभी उखड़ जाए फिर लौट कर न आता , मन ये भईया बड़ा दुरंगी। तभी तो खुद के सिवाय , इसका कोई न संगी !
मूल चित्र : Pexels
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