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मनुष्य जीवन में कभी किसी का दोस्त बन जाता है और कभी दुश्मन, मगर प्यार के अटूट बंधन और आलिंगन जो प्रेम से किया गया हो, मन में पड़ी सारी गाँठे खोल देता है।
माहिका ने आज अचानक आने का प्लान बनाया इतने सालों बाद। सुना था विदेश से तबादला हुआ उसके पति का इस शहर में। हमारे बीच तो कुछ रिश्ता ही नहीं रहा। कभी थी हम बचपन की सहेलियां। एक दुसरे के लिए जान देते थे। बिना बताए कोई बात रह नहीं पाते थे। सुचि के मन मे उथलपुथल हो रही थी। सालो पहले मन मे जो गाँठ पड गयी वो कैसे खुलेगी? कि डोर बैल बजी, माहिका ने सूचि को पकड़ के गले लगा लिया सूचि की समझ ही नही आया कि क्या करे! पर गले लगते ही मन की गाठें अपने आप धूमिल होती जा रही थी …हल्की सी जो बची वो आपस मे शिकायतो की बौछार खोल रही थी।आँसू बह बहकर समाधान बता रहे थे गलतफहमी दूर हो चुकी थी। मन की गाठों को समय रहते खोल लेना चहिये।
मूल चित्र : Youtube
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