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आज जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो महसूस होता है कि ये केवल एक फिल्म कलाकार ही नहीं थे , ये तो जाने अंजाने हमारे जीवन का हिस्सा बनकर साथ चल रहे थे।
इस मंत्र का अर्थ देश के युवाओं को अपने ही अंदाज़ में समझाने वाले फिल्म ‘कर्ज’ के ‘मांटी’ उर्फ ऋषि कपूर (67) का गुरुवार 30 अप्रैल , सुबह मुंबई के एचएन.रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल में निधन हो गया। उनके भाई रणधीर कपूर ने इसकी पुष्टि की। बॉबी फिल्म से कैरियर की शुरूआत करने वाले ऋषि कपूर फिल्म के रिलीज़ होते ही स्टार बन गए। उन्होंने हमारा परिचय एक जीवन से भरपूर युवा से कराया जो प्रेम को लेकर अति संवेदनशील रहता है। हंसते मुस्कुराते , मस्तमौला ऋषि कपूर अपनी हर फिल्म से देश को दीवाना बनाते रहे।
उन्हें बॉबी के लिए 1974 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार और साथ ही 2008 में फ़िल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने उनकी पहली फ़िल्म में शानदार भूमिका के लिए 1971 में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त किया। उनकी यादगार फिल्में बाबी, मेरा नाम जोकर, कभी कभी, रफू चक्कर, लैला मजनूं, पति पत्नी और वो, सागर,प्रेम रोग, जमाने को दिखाना है, तवायफ, नगीना मुल्क, मंटो आदि रही। आज जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो महसूस होता है कि ये केवल एक फिल्म कलाकार ही नहीं थे , ये तो जाने अंजाने हमारे जीवन का हिस्सा बनकर साथ चल रहे थे। ‘प्रेम’ के अनेको रंगों को पर्दे पर निभा कर हमें उसके पीछे छिपी पीड़ा का अहसास कराने वाला वो मांटी, राजू, विकी, देव, चिंटू आज हमारे बीच से अचानक यूं चला गया कि दिल से बस यही निकल रहा है – ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे ! ओम शांति ओम !
मूल चित्र : Youtube
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