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काश कि खतों का वही दौर फिर से लौट आए जो अपने साथ रिश्तों में वही पुराना ठहराव सा भी लौटा लाए और फिर से कोई प्रियतमा खत में फूल रख कर भेजे।
फूल तुम्हें भेजा है खत में, लता दी, स्वीकार करना। लगभग सात दशकों तक, 30 हज़ार से अधिक गीत गाकर, हिंदुस्तान के दिलों पर राज करने वाली स्वरकोकिला लता मंगेशकर दी को ईश्वर स्वास्थ्य प्रदान करे। ‘फूल तुम्हें भेजा है ख़त में !’ एक ऐसा ही उनके द्वारा गाया बेहद खूबसूरत गीत है जो खत और उससे जुड़ी भावनाओं की याद दिल से जाने ही नहीं देता। इस गीत में लताजी ने ‘फूल’ का उच्चारण जिस प्रकार किया वैसा उच्चारण आज तक कभी किसी ने नहीं किया ! सोचना पड़ जाता है कि फूल ज्यादा कोमल है या उनका ‘फूल’ कहना , बस यही लता हैं।
यूं तो आजकल की प्रियतमा अब ईमेल के साथ गुलाब की एचडी इमेज भेज कर अपने प्रेम का इज़हार कर रही हैं जिसका जवाब भी प्रेमी की ओर से चंद सेकेंड्स में ही मिल जाता है, है ! न कमाल ! यही तो है हाईटेक युग में हाईटेक प्रेम पत्रों के आदान प्रदान का सहज, सुलभ सुख !
लेकिन क्या गुलाब की डिजिटल इमेज से प्रियतमा के हाथों की सुगंध और दिल के कोमल भाव प्रेमीमन तक पहुंच पाते होंगे ? लगता तो नहीं !
मुझे तो लगता है कि काश वही पुराना चिट्ठी, ख़त,फूल और डाकिए के इंतज़ार वाला ज़माना लौट आए कि जहां प्रेमिका ख़त में एक अपने दिल के प्रतीक चिन्ह के रूप में फूल रख कर भेजा करती थी और कभी-कभी तो छिपकर, लजाते -शरमाते हुए, खत में फूल के साथ-साथ अपने अधरों का चुंबन भी अंकित कर प्रेमी तक पहुंचाने की कोशिश किया करती। ख़त लैटरबाक्स तक पहुंचाकर, फिर बेचैन होकर अगले ही दिन से डाकिए की साइकिल की घंटी पर कान धरे रखती कि ख़त का जवाब आया होगा। तब ख़त पहुंचने में तीन-चार दिन का वक्त लगा करता था। जबकि अब तो इस पल भेजो और अगले ही पल जवाब मिल जाता है। लेकिन देखा जाए तो ख़त भेजने और जवाब मिलने में लगे तीन-चार दिन के समय वाली लंबी अवधि से रिश्ते में विश्वास और सब्र बना रहता था जो आजकल के क्विक रिप्लाई वाले प्रेम संबंधों से गुम सा हो गया लगता है।
आजकल की फास्ट मैसेजिंग ने रिश्तों में एक बेसब्रापन भर दिया है, जिसमें तुरंत जवाब न आने पर रिश्ता खत्म करने की भी जल्दी रहती है। काश कि खतों का वही दौर फिर से लौट आए जो अपने साथ रिश्तों में वही पुराना ठहराव सा भी लौटा लाए और फिर से कोई प्रियतमा खत में फूल रख कर भेजे। खतों के ज़रिए होने वाले ऐसे ही एक खूबसूरत प्रेम संवाद को दर्शाता है। 1968 में कई पुरस्कारों से सम्मानित फिल्म ‘सरस्वतीचन्द्र’ का सदाबहार युगल गीत “फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा दिल है !” जिसे लता मंगेशकर और मुकेश ने गाया था।इन्दीवर द्वारा रचित और कल्याणजी-आनंदजी द्वारा संगीतबद्ध किया यह गीत आज तक हमारे हृदयों में खतों के आदान-प्रदान के पीछे छिपे प्रेमभरे कोमल अहसासों को जीवित रखे हुए है।
इस गीत को लिखने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। असल में कल्याणजी-आनंदजी को एक फैन द्वारा भेजा गया एक ख़त मिला था जिसमें लिपस्टिक के निशान के साथ ‘टू डीयर यू ‘ लिखा हुआ था। जब मज़ाक-मज़ाक में यह ख़त इंदीवर जी को दिखाया गया तो उन्होंने कहा कि ये लिपिस्टिक छोड़ो, इस पर तो गाना बनाया जा सकता है और फिर इस प्रकार यह गीत लिखा गया।
यह गीत इतना कोमल बन पड़ा कि जब सुनते हैं तो बिल्कुल गुलाब की पंखुड़ी पर ओस की मानिंद फिसलता हुआ दिल में उतर जाता है। 5 मिनट 10 सैकेंड्स के इस ट्रैक को नूतन(कुमुद) एवं मनीष(सरस्वतीचंद्र) ने भी इसे उतने ही कोमल भावों से पर्दे पर जिया जिस कोमलता से लताजी और मुकेश ने इसे स्वर दिया है।
https://www.youtube.com/watch?v=WtU389r6uys
‘फूल तुम्हें भेजा है ख़त में फूल नहीं मेरा दिल है प्रियतम मेरे तुम भी लिखना क्या ये तुम्हारे काबिल है ?
प्यार छिपा है ख़त में इतना जितने सागर में मोती चूम ही लेता हाथ तुम्हारा पास जो तुम मेरे होती फूल तुम्हें भेजा है ख़त में !’
ख़त में गुलाब को अपने दिल का प्रतीक चिन्ह बनाकर भेजते हुए प्रेयसी अपने प्रेमी को प्रणय निवेदन करते हुए बहुत ही कोमल भाव से पूछती है कि क्या वह उसके प्रेम के काबिल है ? जिसका जवाब प्रेमी भी सागर की अथाह लहरों के बीच मोतियों की संख्या का अंदाजा लगाने को कहकर अपनी भी स्वीकृति प्रदान कर देता है। यहां ख़त में फूल भेजकर प्रणय निवेदन और स्वीकृति कितनी सहजता और सरलता से हो जाती है न। न जाने क्यों नूतन जी जब अपने जूड़े से फूल निकालकर खत में रखती हैं और जब मनीष उसे छूकर देखते हैं तो वैसा खूबसूरत अहसास तो शायद रूबरू मुलाकात में भी न होता होगा शायद।
‘नींद तुम्हें तो आती होगी क्या देखा तुमने सपना आंख खुली तो तन्हाई थी सपना हो न सका अपना!
तन्हाई हम दूर करेंगे ले आओ तुम शहनाई प्रीत लगा के भूल न जाना प्रीत तुम्हीं ने सिखलाई फूल तुम्हें भेजा है ख़त में !’
जहां एक ओर प्रेम में विरह की घड़ियां इसे और निखार देती हैं वहीं दूसरी ओर मिलने को बेताब दो दिलों की पीड़ा को भी कई गुना बढ़ा देती है। तो सपनों में मिलना ही एकमात्र सहारा बाकी रह जाता है, लेकिन स्वप्न तो फिर स्पन्न ही ठहरा ! आँख खुलते ही टूट कर बिखर जाता है !
इसलिए कैसे न कैसे करके प्रेम को यथार्थ के धरातल पर लाने के लिए प्रेमिका प्रेमी से सामाजिक स्वीकृति लेने का आग्रह करती है। यहां नूतन ‘तनहाई हम दूर करेंगे, ले आओ तुम शहनाई’ गाते हुए एकांत में होते हुए भी प्रेमी की आंखे अपने तन-मन पर महसूस करते हुए शरमा कर आँचल से चेहरा ढक लेती है, जो बेहद खूबसूरत दृश्य बन पड़ा है!
‘ख़त से जी भरता ही नहीं अब नैन मिले तो चैन मिले चांद हमारे अंगना उतरे कोई तो ऐसी रैन मिले !’ मिलना हो तो कैसे मिलें हम मिलने की सूरत लिख दो नैन बिछाये बैठे हैं हम कब आओगे ख़त लिख दो फूल तुम्हें भेजा है ख़त में !’
प्रेमी दिलों के बीच दूरियां पाटने को ख़त अवश्य ही एक महत्वपूर्ण ज़रिया साबित होते हैं किंतु एक निश्चित समय के बाद यह साधन भी विरह की पीड़ा को कम कर पाने में नाकामयाब रहता है।
तब अक्सर ऐसे अवसर ढूंढने को प्रेमी बेताब दिखाई देते हैं जब वे दोनों एकदूसरे की आँखों में आँखे डालकर अपने हृदय में छिपे प्रेम का इज़हार कर सकें। इस अंतरे में नूतन जब ‘चांद हमारे अंगना उतरे ,कोई तो ऐसी रैन मिले’ गुनगुनाती हैं तो प्रेम का वैभव उनकी चमकती आँखों साफ दिखाई देता हैं!
मुझ जैसे न जाने कितने ही इंटरनेट यूज़र होंगे जो ईमेल्स के ज़माने में भी न जाने क्यों आज भी ख़तों, उनसे जुड़े अहसासों और गीतों की बात करते पाए जाते हैं ! इसकी कुछ तो वजह अवश्य होगी। ख़तो पर बने गीतों में यह गीत हमेशा ही सर्वोपरि रहेगा। मालूम नहीं कि यह जादू नूतन, लता, मुकेश, इंदीवर या कल्याण जी का है या फिर ख़तों के उस खूबसूरत दौर का है जिसके अहसास से हमारी आज की पीढ़ी वंचित है।
अंत में बस यही कहना चाहूंगी कि बेहतरीन शब्द, स्वर, साज़ और अभिनय की जादुई लेखनी से लिखे गए इस गीतरूपी खत को मेरे दिल ने अपने भीतर जतन से तह करके रख लिया है ! आप भी इसे सुनिए और खो जाइए अपने प्रिय की यादो और बातों में।
मूल चित्र : Pexels
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