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प्राकृतिक और महिलाएं आपस में हर आयाम से पूरक लगती हैं, और देखा जाए तो ईश्वर के दवरा भेजे हुए यह बेशकीमती उपहार, सृष्टि की प्राथमिक रचना हैं।
पानी की कल कल आवाज़ें, मेरे कानों में ऐसी लगती हैं जैसे नदी पैरों में घुंगरू पहन कर मेरी ओर चली आ रही हो।
कितना मनभावन होता है सावन हैं न? बारिश की बूंदों से मन और तन दोनों तृप्त हो जाते हैं। काले काले बादल आसमान को ऐसे ढक लेते हैं जैसे आसमान ने काली चादर ओढ़ ली हो।
अगर मैं बात करूं पर्वत की जहाँ से गंगोत्री और यमनोत्री की पवित्र धाराएं पूरे संसार को पवित्र कर रही हों। पर्वत की ऊंची ऊंची चोटी बादलों के सफेद तकिए पर ऐसे लगते हैं जैसे ये हरे भरे पहाड़ प्राकृतिक के आलिंगन में समाए हुए हैं।
नदी हो या बारिश, गंगोत्री हो या यमनोत्री, लगता नहीं? सब स्त्री से सम्बंधित प्राकृतिक तत्व हैं। मुझे तो लगता है। सारा वातावरण प्राकृतिक की गोद में समाए हुए किसी महिला के आँचल का हिस्सा है।
मूल चित्र : Unsplash
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