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इस लॉकडाउन में मुझे उन पुराने सीरियल और फिल्मों को देखने का मौका मिला जिनके बारे में मैं अपनी माँ से बचपन में सुना करती थी...
इस लॉकडाउन में मुझे उन पुराने सीरियल और फिल्मों को देखने का मौका मिला जिनके बारे में मैं अपनी माँ से बचपन में सुना करती थी…
अनुवाद : शगुन मंगल
यह मई का महीना है और इस महीने में मदर्स डे है और देशभर में पहले ही लॉक डाउन के 50 से अधिक दिन हो चुके हैं।
क्या कनेक्शन है? खैर, पिछले कुछ हफ्तों के दौरान, अन्य लोगों की तरह घर पर बंद, मैंने बहुत सारी ऑनलाइन कंटेंट – फिल्में, टीवी शो, न्यूज़ (ये मेरे प्रोफ़ेशन का हिस्सा है) और संगीत देखा। लेकिन मिलेनीअल जेनरेशन से अलग, मैं पुरानी यादों में ड़ूब गयी और कुछ ऐसे पुराने सीरियल और फिल्में देखीं जिसके बारे में अक्सर मेरी माँ बात किया करती थीं और जो वो अपने 30s में देखा करती थीं।
मैंने 2013 में अपनी मां को खो दिया था, और हर बेटी की तरह मेरे पास भी उनके साथ बिताये पलों की यादों का भंडार है। सबसे अच्छी यादें उन चीजों से संबंधित थीं जो वो अपने टीनेजर दिनों में देखती थीं और 90 के दशक में अपने 20s, 30s में और जैसे-जैसे मैं उनके पसंदीदा पुराने सीरियल और फिल्मों को देखती हूँ, तो मुझे लगता है कि एक औरत होने के नाते मैं उनके बारे में और एक आकांक्षी माँ के बारे और अधिक जान पा रही हूँ।
मेरे द्वारा देखें जाने वाला पहला पुराने टीवी शो था तृष्णा, 1985 की दूरदर्शन टेलीविजन श्रृंखला थी, जिस मे 13 एपिसोड थे और जेन ऑस्टिन की ऑल-टाइम क्लासिक प्राइड एंड प्रेज्युडिस की आधिकारिक हिंदी रीमेक थी।
इस शो में कोई भव्य सेट नहीं है, जीवन चरित्रों से बड़ा नहीं है, कोई ओवर-टॉप मेक अप नहीं है, और फिर भी एक 31 वर्षीय के रूप में मैं पूरी तरह से कहानी में शामिल हो गयी, उस समय के बुनियादी तकनीकी पिछड़ेपन को अनदेखा कर रही थी, और पूरी तरह से उन पात्रों में घुस चुकी थी। मैंने इसकी किताब भी पढ़ी है और इसका इंग्लिश वर्जन भी देखा है, लेकिन फिर भी मैं पूरी तरह से क़िरदारों की तरफ़ आकर्षित हो रही थी – एक स्ट्रांग ओपिनियन रखने वाली रेखा जो अपने मन के हिसाब से करती है और चलती है। संगीता हांडा, जिन्होंने इसमें रेखा एलिजाबेथ का किरदार निभाया है, वो सलवार सूट पहनती हैं जिसने मुझे मेरी माँ के कॉलेज के दिनों के सूट के कलेक्शन की याद दिलाई। यह सीरीज़ यूट्यूब के प्रसार भारती आर्काइव्ज चैनल पर उपलब्ध है।
इस लॉकडाउन के दौरान दूसरा कंटेंट, जो थोड़ी देर के लिए मेरी सूची में था, वो है 1981 में फारूख़ शेख और दीप्ति नवल द्वारा अभिनीत चश्मे बद्दूर।
फिल्म में एक साधारण प्रेम कहानी है, एक स्व-निर्मित महिला नेहा और 80 के दशक के बिना गैजेट वाला सामान्य जीवन और आकर्षक बातचीत। इसके साथ बातों-बातों में, ऋषिकेश मुखर्जी की ख़ूबसूरत कुछ ऐसी फिल्में हैं, जो मेरी माँ ने, जब मैं बड़ी हो रही थी, तब मेरे साथ दोबारा देखीं।
इस सूची में आखिरी है 2000 के शुरुआती दिनों का एक पुराना सीरियल, अस्तित्व – एक प्रेम कहानी; एक श्रृंखला जो अपने समय से बहुत आगे थी, एक कामकाजी महिला चिकित्सक जो एक महत्वाकांक्षी पेशेवर और एक प्यार करने वाली माँ थी। मैंने हाल ही में कुछ एपिसोड्स ही देखें हैं और मैं इसके क़िरदारों से और रिश्तों की उलझनों से पूरी तरह से मंत्रमुग्ध हो चुकी हूँ। यह कहानी ख़ूबसूरत निकी अनेजा द्वारा अभिनीत है, जिनकी मोनोक्रोम और फूलों की शिफॉन साड़ी उन दिनों मेरी माँ भी पहना करती थी।
फिल्मों और धारावाहिकों के अलावा, मैंने जगजीत सिंह के कुछ ट्रैक भी दोबारा सुने और यह एक शांत अनुभव था।
इस लॉकडाउन ने न केवल मुझे कुछ पुराने सीरियल और फिल्में, लेकिन अभी तक के कितने प्रभावशाली कंटेंट को देखने का समय दिया, बल्कि मुझे इस बात का भी अहसास करवाया कि मेरी माँ क्या थीं और उन्होंने मुझे जीवन में क्या बनने के लिए प्रेरित किया।
वह हमेशा जीवन के प्रति एक सरल दृष्टिकोण रखती थीं। भले ही वह एक गृहिणी थी जो स्कूल के छात्रों के लिए घर पर ट्यूशन लेती थीं, उन्होंने मुझे एक अनुशासित पेशेवर जीवन जीने और पुरुषों की तरह ही काम को गंभीरता से लेने की प्रेरणा दी।
मेरी माँ की पसंद ने मुझे उनसे और अधिक प्यार करने और उनका सम्मान करने में मदद की है और मुझे उम्मीद है कि आने वाले सप्ताहांत में उनके कुछ और पसंदीदा चीज़ों को देखूंगी। इन पुराने सीरियल और फिल्मों के साथ थ्रोबैक मूमेंट बुरा नहीं है।
मूल चित्र : YouTube
Media professional and Digital Literacy Mentor read more...
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