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रज़िया सुल्तान भारत की राजधानी दिल्ली की पहली मुस्लिम महिला शासक थीं और उन्होंने सुलताना की जगह अपने नाम के आगे सुल्तान लगाया।
हाथ में तलवार और सिर पर पगड़ी, और अबाया की जगह अचकन पहने हुए एक जाबांज राजकुमारी। पहनावे से और सुनने से तो लगता है वह राजकुमारी नहीं, कोई राजकुमार थे।
भारत की राजधानी दिल्ली की पहली मुस्लिम महिला शासक जिनका नाम सभी ने सुना होगा और जानते भी होंगे, रज़िया सुल्तान मगर उनकी कहानी से कोई ओत प्रोत न होगा। हमारी आम बोल चाल की भाषा में बोलते हैं न सर्वगुणसम्पन्न यही स्तिथि थी उनकी।
वर्ष 1205 बदायूं उत्तर प्रदेश में जन्मी रज़िया के पास बहुत सारे गुण थे, जो एक राजकुमारी से मिलती है, हालाँकि वह राजकुमारी से अधिक एक राजकुमार थीं इसलिए उन्होंने उस समय महिलाओं के लिए प्रयोग होने वाला शब्द सुलताना की जगह अपने नाम के आगे सुल्तान लगाया, वह खुद को किसी वीर यौद्धा से खुद को कमतर नहीं मानती थीं। लोग उनके काम की सबसे अधिक आलोचना करते थे।भारत में उनका बोलबाला था, यह उस दौरान की बात है जब भारत में पितृसत्ता की जड़ें मजबूत हो रहीं थी, और धर्म की आड़ में महिलाओं का शोषण किया जाता था।
रजिया ने अपने जीवन में केवल 3 साल 6 महीने और 6 दिन काम किया, इतने कम दिनों में रजिया ने समाज के लिए ढेरों काम किए, जो समानता के चरण को आगे बढ़ाने में सक्षम थे। जैसे
दरअसल, रज़िया एक बेहद प्रतिभाशाली और बुद्धिमान महिला थीं, एक बुद्धिमान शासक। इसके अलावा, उसके द्वारा साहसपूर्ण साहस के पर्याप्त प्रमाण दिए। इस प्रकार एक बौद्धिक महिला होने के नाते वह सभी के प्रोत्साहन के लिए खड़ी थी।
रज़िया सुल्तान दिल्ली की पहली महिला शासक रहीं, जो अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। रज़िया अपने पिता इल्तुतमिश से सैन्य शिक्षा ग्रहण कर चुकी थीं, और उनको महारथ हासिल था इस क्षेत्र में। वह मैदान में छुपी हुई, दबी हुई महिला के रूप में ना आकर खुल कर और डट कर सामना करने के लिए जानी जाती रहीं। उन्होंने रूढ़िवादी सोच के विरुद्ध जाकर पर्दा प्रथा समाप्त की और बिना चेहरा ढके वह मैदान में उतरती थी। यह एक जीती जाती मिसाल हो सकती हैं आज के जीवन के लिए।
रज़िया सुल्तान को उनके हब्शी ग़ुलाम जमालुद्दीन याक़ूत के साथ मोहब्बत हो गई थी, और उनकी मोहब्बत परवान चढ़ रही थी, रज़िया ने उसजो अपना सलाहकार बना लिया था और उसको इजाज़त दे दी गई थी के वह सुलताना से कभी भी मिल सकता है मगर समाज में फैली पितृसत्ता और रूढ़िवादी विचारधारा की बयार ने लोगों को अंधा और बेहरा कर रखा था। लोगों को यह बात अखरती थी। मुस्लिम शासक इस बात के सख़्त ख़िलाफ़ थे।
वहीं दूसरी ओर भटिंडा के राजकुमार अल्तुनिया जो रज़िया पर अपनी जान छिड़कता था, उसने भी इसका विरोध किया और दिल्ली पर हमला बोल दिया, जिसमें याक़ूत की मौत हो गई। रज़िया तनहा रह गईं और आख़िरकार उनको अल्तुनिया से ही विवाह करना पड़ा।
रज़िया जब धीरे धीरे असमानता के दलदल में फंसती चली जा रहीं थीं उसी दौरान उनके सगे भाई ने दिल्ली की सत्ता हथियाने के लिए युद्ध का धावा बोल दिया और उसके बाद उनका भाई राज गद्दी पर बैठा दिया गया। रज़िया को यह बात अत्यधिक दुःख दे गई और वह हताश हो गईं। इसके बाद उन्होंने अपनी गद्दी वापस पाने के लिए अपने पति के साथ मिलकर फिर युद्ध छेड़ा, मगर इस बार फिर वही निराशा हाथ लगी, उनको पराजय मिली।
इन सारी नकरात्मक स्तिथि के बाद रज़िया को फरमान जारी किया गया के उनको दिल्ली छोड़नी होगी, इस फरमान के ज़रिए वह दोनों दिल्ली से निकल गए , बीच रास्ते में उनको जाट शासकों ने उनको घेर लिया और मौत के घाट उतार दिया।
देश की सबसे शक्तिशाली पहली मुस्लिम शासक का अंत हो गया, वह रज़िया जो अंगारों की भांति थी अब नहीं रही। बाकी रहे तो वह विद्यालय, कॉलेज, और कुछ कला के नमूने। उनकी बस इतनी सी ख़ता थी के वह औरत थी, और पुरुषवाद समाज कैसे इस बात को मानता, के एक औरत उनके सम्राज्य को चला रही है।
इस बात को हुए 800 साल बीत गए, मगर महिलाओं के लिए वही स्तिथि अभी भी बनी हुई है, कुछ नहीं बदला। सब कुछ बदल गया बस नहीं बदली तो वह बासी और दुर्गन्धित सोच जो आज भी महिलाओं को गिरा कर देखती है। जबकी उसके अंदर इतनी ताकत है के वह ओके सामने आपके विरोध में खड़ी हो सकती है।
वो बेपर्दा सरे मक़तल में क्योंकर चली आई, क्या लोगों तुमने मुनासिबत का कोई दर गिरा दिया।। -इमरान खाँन ‘हुसैनी’
मूल चित्र : learn.culturalindia
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