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पतिदेव मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे, मेरी समझदारी पर या मेरी सासू-मां की समझदारी पर, पता नहीं पर मैं मन ही मन अपनी सासू-मां को धन्यवाद दे रही थी।
आज लौकडाउन हुए कुछ हफ्ते बीत चुके थे, पतिदेव ने कहा, “सुनो! मैं ए.टी.एम जा रहा हूं, पैसे बिल्कुल खत्म हो गए हैं।”
पतिदेव ने जैसे ही कहा मैंने कहा, “याद है ना सब ने कहा है घर के बाहर मत जाना, और ए. टी. एम में तो पता नहीं कितने लोग जाते हैं, सब यूज करते हैं, तुम मत जाओ।”
“अच्छा! तो पैसे कहां से आएंगे? अभी तुम घर के राशन के लिए कहोगी तो बिना पैसों के कैसे लाऊंगा?” पतिदेव झल्लाए।
मैंने कहा, “कोई जरूरत नहीं पड़ेगी और अगर जरूरत पड़ी तो मेरे पास है थोड़े पैसे हैं, काम चल जाएगा तब तक।”
“अच्छा जब भी मैं कहता था कि अगर पैसे हैं घर में तो दे दो, बैंक में रख आता हूं, तब तो तुम कहती थी कि तुम्हारे पास कोई पैसे नहीं, अब कहां से आए पैसे तुम्हारे पास?” पतिदेव का अगला सवाल था जिसके लिए मैं बिल्कुल तैयार थी।
“वो क्या है ना, जब हमारी शादी हुई थी तब सासू-मां ने मुझसे कहा था मेरी दो बातें अपने आंचल में बांध कर रखना, एक तो ये की अपने पास हमेशा कुछ पैसे छुपा कर रखना, छुपा कर मतलब मेरे बेटे से भी। वो पैसे सिर्फ तभी निकालना जब कोई मुश्किल घड़ी हो और दूसरी ये किअपने घर में दो बाल्टी पानी हमेशा रखना।”
“तो बस ये दो बातें सासू मां कि मैंने अपने आंचल में बांध रखी थी इसलिए आपसे भी पैसे वाली बात छुपा रखी थी और अगर मैं आपको बता देती तो इस समय आपको ए. टी. एम जाना पड़ता ना, जो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।”
पतिदेव मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे, मेरी समझदारी पर या मेरी सासू-मां की समझदारी पर, पता नहीं पर मैं मन ही मन अपनी सासू-मां को धन्यवाद दे रही थी। उनकी सिखाई हुई बातें ज़िंदगी के ऐसे मोड़ पर अक्सर काम आ जाती हैं। दोस्तों बड़ों का अपने आस-पास होना किसी बड़े पेड़ के शीतल छांव से कम नहीं होता।
मूल चित्र : Canva
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