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अगर आपका बच्चा समलैंगिक संबंध रखता है, तो आपकी नजरें झुक क्यों जाती हैं? एक दिन पूरा समाज इस सवाल का जवाब मांगेगा, क्यों करते हैं आप ये भेदभाव?
शेक्सपियर की एक मशहूर कहावत है,‘नाम में क्या रखा है, गर गुलाब को हम किसी और नाम से भी पुकारें तो वो ऐसी ही खूबसूरत महक देगा।’
“मीनू यह मैं क्या देखती रहती हूँ फेसबुक पर, अवनी किसी लड़की के साथ चिपक चिपक कर फ़ोटो डालती है, कितना असभ्य लगता है? इसकी शादी में ज़रूर अड़चन आएगी, देख लियो मीनू।”
“अरे! आरती भाभी दोस्त हैं दोनों, प्यार करती हैं आपस में।”
“क्या? तू पागल हो गई है क्या? ये अनाप शनाप बक रही है, लड़कियाँ आपस में प्यार कर रही हैं?”
“आरती भाभी, प्रेम ही तो है, करने दीजिए। हम उसके जीवन के फैसले नहीं ले सकते, कानून भी यही कहता है सबको अधिकार है, अपने तरिके से जीवन जीने का, साथी चुनने का, और प्यार करने का। भाभी, मैं जीने देना चाहती हूँ अवनी को, इसमें कोई बुराई नहीं है, घर आएंगी तब समझाऊँगी आपको।”
आरती भाभी का फ़ोन बिना बात किए ही काट दिया जाता है।
बस याद रखिए, सबको अपने अपने अधिकार प्राप्त हैं। समलैंगिता कोई पाप नहीं, एक एहसास है और इसके विपरीत किसी को नहीं बोलना चाहिए।
अपने बच्चों को समझें क्यूंकि हमको आरती भाभी तो सैकड़ों मिल जाएंगी, मगर मीनू, शायद ही कहीं हो।
यह बात यही दर्शाती है कि नाम से कुछ नहीं है, मर्द, औरत आदि। बात है तो सिर्फ और सिर्फ इंसान की। अगर आपका बच्चा समलैंगिक है तो क्या? क्या समलैंगिक लोगों के अंदर क्या जान नहीं बसती? या वह लोग साँसे नहीं लेते, या उनके भाव नहीं होते? समाज के कितने भी बड़े बड़े नामी लोग हैं और सफल लोगों का एक बड़ा तबक़ा ऐसे लोगों को अभिशाप मानता है, पाप मानता है।
एक उदाहरण लेते हैं, दुर्भाग्यपूर्ण अगर आपका बच्चा अपाहिज होता है तो क्या आप उसको अपने घर से समाज से निकाल फेंकने की सोचते हैं? कभी नहीं, आप अपने मानसिक विक्षप्त बच्चे को भी सीने से लगा कर रखते हैं। मगर यहाँ बात जब समलैंगिक संबंध में होने की आती है तो सबकी नजरें झुक क्यों जाती हैं? एक दिन पूरा समाज इस सवाल का जवाब मांगेगा, क्यों करते हैं आप भेदभाव। कई बार देखने में आया है, समलैंगिक बच्चा या बच्ची अगर साड़ी या फ्रॉक पेहनते हैं या लड़कियाँ पुरुष की तरह व्यवहार करती हैं, तो उनको घर से बाहर तक निकाल दिया जाता है।
यह कहाँ का न्याय है? लोग कहते हैं यह पाप है, यह आप कैसे कह सकते हैं? और इसके अलावा जो आप कर रहे हैं वो क्या है? पुण्य का काम है? कभीं नहीं, ईश्वर कभी इस बात को नहीं मान्य करेगा के आप लोग किसी के साथ इस तरह का भेदभाव करें।
भारतीय समाज, बड़े पैमाने पर, समलैंगिक संबंध को अस्वीकार करता आ रहा है, बेशक हमारे देश में इसे कानूनी मान्यता मिल गई हो मगर क्या इसका प्रभाव हमारे समाज के रूढ़िवादी लोगों तक पहुँच पाया है? मेरे व्यक्तिगत विचार में तो “नहीं”, क्योकिं हमारे देश में इसके लिए कानून पारित किया गया है मगर लोगों की सोच को बदलने की गारंटी नहीं।
आप लोग जानते नहीं, के आपके इस व्यवहार से इस तरह के लोगों को कितना कुछ सहना पड़ता है, क्या क्या झेलते हैं। क्या क्या सुनते हैं।
समलैंगिक संबंध में लोगों को समाज ऐसा मानता है जैसे वह जानवरों से भी बदतर हों। उनके साथ इतना घृणित व्यवहार होता है जिसका आप अंदाजा नहीं लगा सकते। लोग उनको तरह तरह के नामों से पुकारते हैं, समाज उनकी प्रतिभा की तरफ अपना ध्यान ही नहीं डालता, इसके बजाए अगर कोई विषमलिंगी इंसान है जो चोर है, या कोई अन्य अपराधी उसको वह लोग तरजीह देंगे मगर एक समलैंगिक जो वास्तव में लायक हो, और मेहनती भी हो लोग उसको नीची और गिरी हुई नज़रों से ही देखेंगे।
जिसके साथ इस तरह व्यवहार किया जाता हो, जो एक जानवर से भी बदतर है, उसका मानसिक विकास किस प्रकार होता होगा? मेरा उन बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों से सवाल है, क्या आप सोचते हैं के यह भेदभाव और प्रताड़ना मनुष्य को और उसकी मानसिक स्तिथि को कितना नुकसान पहुंचाती है? आप लोग आवाज़ बुलंद क्यों नहीं करते? देखा गया है कि समलैंगिक लोगों की मृत्यु दर सबसे अधिक सिर्फ और सिर्फ आत्महत्या से ही बढ़ती है, और कुछ सर्वे कहते हैं इनका क़त्ल कर दिया जाता है।
NCBI की रिपोर्ट के अनुसार समलैंगिक संबंध वाले लोगों की एड्स के द्वारा मृत्यु होती है या पीड़ित हैं। 9% से 27 % समलैंगिक पुरुष भी एचआईवी पॉजिटिव हैं। आप लोग जानते हैं ऐसा क्यों है? समाज अगर उनको समानता की नज़रों से देखता और प्रताड़ित न करता तो यह आँकड़े बहुत कम होते। इनकी इस दशा के हम सब ज़िम्मेदार हैं, लोग ऐसे लोगों से दोस्ती कर लेते हैं और उनके साथ प्रेम सम्बंध का नाटक कर, शारीरिक संबंधों को प्राथमिकता देने लगते हैं, ऐसे में उनके पास कोई विकल्प ही नहीं बचता और वह लोग कई लोगों के संपर्क में आकर ऐसे संबंधों को आधार प्रदान कर देते हैं।
फिलहाल, LGBTQA+ श्रमिकों को रोजगार के भेदभाव से बचाने के लिए कोई संघीय कानून नहीं हैं। समलैंगिक,और उभयलिंगी व्यक्तियों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों ने सहकर्मियों द्वारा कार्यस्थल,उत्पीड़न या दुर्व्यवहार में भेदभाव का अनुभव किया है।
ये मुद्दे न केवल लोगों के कार्यस्थल में LGBTQA व्यक्तियों के लिए परेशानी वाले हैं, बल्कि वे व्यवसायों के लिए भी ठीक नहीं हैं। मैं इस लेख द्वारा, LGBTQ कर्मचारियों के लिए एक सकारात्मक कार्यस्थल वातावरण को काम पर रखने और बढ़ावा देने के मूल्य को रेखांकित करता हूँ।
ऐसी ही न जाने कितनी समस्याओं से यह कम्युनिटी सदियों से भेदभाव झेलती चली आ रही है। ज़्यादातर परिवार इस बात का समर्थन नहीं करते। कुछ हैं जो समझ सकते हैं, कि आपका बच्चा बीमार नहीं है बल्कि रोमांस और प्यार की वजह से समलैंगिक संबंध में है।
मूल चित्र : Canva
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