कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

संवेदनहीन

क्षण भर में जो कुछ भी हुआ उसने मुझे व्याकुल कर दिया , मुझे अपनी संवेदनहीनता पर घिन सी आ रही थी और चाहने पर भी मै उस बैगवाले को ढूंढ नही पा रही थी।

क्षण भर में जो कुछ भी हुआ उसने मुझे व्याकुल कर दिया , मुझे अपनी संवेदनहीनता पर घिन सी आ रही थी और चाहने पर भी मै उस बैगवाले को ढूंढ नही पा रही थी।

मई मास का अंतिम सप्ताह, सुबह के कुछ साढ़े दस बजे भी ऐसा लग रहा था जैसे सूरज आग के गोले बरस रहा हो। ऐसे समय में भी हमारे जैसे कुछ अजीबोगरीब व्यक्तित्व के धनी कुछ लोग दुपहिया वाहनों अपने आप को तीव्र धूप से बचाने का असफल प्रयास करते हुए अपने -अपने गंतव्य की तरफ अग्रसर थे। पूरे पांच दिनों की भागमभाग के बाद हमारे नसीब में यह शनिवार का दिन आया था, सो हम दोनों पति-पत्नी ने सोचा कि जो आवश्यक कार्य कई दिनों से भीषण गर्मी की वजह से नही हो पा रहा है क्यों न उसे आज निपटा ही लिया जाए। इस प्रकार हम – दोनों भी अपने दुपहिया वाहन पर सवार हो निकल पड़े थे। आहा ! क्या किस्मत थी हमारी , नियत समय से काफी पहले ही हम अपने आवश्यक कार्यो से निवृत्त हो गए थे। ऐसा प्रतित होता था मानो हमने कोई जंग जीत ली हो । तभी आश्चर्यमिश्रित खुशी के साथ पतिदेव ने प्रस्ताव रखा क्यों न सरोजिनी- नगर मार्किट का एक चक्कर लगा लिया जाए ? वाह !  नेकी और पूछ -पूछ , मेरा मन -मयूर नाच उठा।

मैं सरोजिनी – नगर मार्किट जाने का लोभ संवरित नहीं कर पा रही थी। सरोजिनी – नगर मार्किट नई दिल्ली का बेहद मशहूर स्ट्रीट मार्केट है और स्ट्रीट मार्केट में शॉपिंग करने का अपना अलग ही मजा है। तो इस तरह हम दोनों पति – पत्नी अपने नए गंतव्य की तरफ अग्रसर थे । थोड़ी ही देर में हम वहाँ पहुँच तो गए थे लेकिन सूर्य देवता अपनी क्रोध भरी नज़रों से हमे भस्म कर देने तत्पर थे। ऐसी भीषण गर्मी में भी,वहाँ कई फेरीवाले घूम रहे थे , कोई रूमाल लेकर , कोई बेल्ट लेकर , कोई कई तरह के पाउडर, काजल, लिपस्टिक लेकर तो कोई बड़े -बड़े बैग्स लेकर। इतनी तेज धूप में चेहरे पर दुपट्टा और आँखों पर धूप वाला चश्मा पहनने के बावजूद थोड़ी ही देर में मैं बुरी तरह थक गई थी। पतिदेव का बटुआ भी हमे मुँह चिढ़ा रहा था। तभी पीछे से हमे एक बैग वाले ने आवाज़ लगाई। “साहब बैग ले लो।” पतिदेव कुछ कहते इससे पहले ही मैंने सपाट लहजे में उसे मना कर दिया ।” नही भैया हमे कोई बैग नही चाहिए। बैगवाले ने अनुनय भरे स्वर में अनुरोध किया , ” मैडम एक बैग ले लो, सुबह से बोहनी नही हुई है। मै मन ही मन मुस्कुराई, और सोचा यह अच्छा मौका है , मोल भाव करने का। मैंने उसके दो सौ रुपये के बैग का भाव सौ रुपये लगाया , फिर भी वह तैयार हो गया । तभी पतिदेव ने अपना खाली बटुआ दिखाया और बैग खरीदने में अपनी असमर्थता जताने लगे लेकिन बैगवाला तपती धूप में अपना एक बैग बेचने को तत्पर था , उसने कहा” पास में ही ए. टी.एम है”। और हमे वहाँ तक ले गया । जितनी देर में पतिदेव ने पैसे निकाले उतनी देर में उसने सारे पॉलिथीन बैग्स को अपने एक बैग में डालने में मेरी सहायता की। जैसे ही मैंने उसे सौ रुपए का नोट दिया उसकी आँखों मे अजीब सी चमक आ गई। धूप से मुरझाया हुआ उसका चेहरा जैसे खिल गया , उस नोट को उसने माथे से लगाया और भीड़ में कहीं विलीन हो गया । क्षण भर में जो कुछ भी हुआ उसने मुझे व्याकुल कर दिया , मुझे अपनी संवेदनहीनता पर घिन सी आ रही थी और चाहने पर भी मै उस बैगवाले को ढूंढ नही पा रही थी। काफी देर तक ढूंढने पर भी जब वह नही मिला तो बोझिल कदमो से हम पार्किंग की तरफ चल पड़े तभी कुछ दूरी पर वही बैगवाला हमे नज़र आया , मै उसके पास पहुंची और उसे एक सौ का नोट पकड़ाते हुए कहा “भैया यह तुम्हारे बैग का सही मूल्य है “। अब आगे बढ़ते हुए हम पति पत्नि काफी हल्का महसूस कर रहे थे ।

मूल चित्र : Youtube 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Anchal Aashish

A mother, reader and just started as a blogger read more...

36 Posts | 103,589 Views
All Categories