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स्त्री को पुरुष की दृष्टि से देखने की यह दीर्घकालिक परम्परा

तुमने उनके पंख छीन बचाया उन्हें उन खतरनाक उड़ानों से जो उन्हें हवा पे बिठा ले जा सकती थीं किसी दूसरी दुनिया में...यह दीर्घकालिक परम्परा!

तुमने उनके पंख छीन बचाया उन्हें उन खतरनाक उड़ानों से जो उन्हें हवा पे बिठा ले जा सकती थीं किसी दूसरी दुनिया में…यह दीर्घकालिक परम्परा!

स्त्री को पुरुष की दृष्टि से देखने की,
यह दीर्घकालिक परम्परा
जोकि प्रारंभ हुई तुम्हारे
अगणित पितामहों के द्वारा
आज भी विस्तार पा रही,
तुम्हारे ही सदृश अनेक योग्य, कुशल
पुत्रों, पौत्रों व प्रपौत्रों द्वारा

तुम बनते रहे सदैव पिताओं का गौरव
पत्नी, भगिनी सहित
माँ व पुत्री भी रहीं ‘स्त्री-मात्र’
तुम्हारे मठ व गढ़ तोड़ने का हर प्रयास
तोड़ता रहा उनकी गर्दनें
संबंध का तंतु तो पहले ही जर्जर था

रक्षक की भूमिका में तुम रहे सतर्क
उनकी रक्षा की तुमने
उनके उन सपनों से
जिन्हें देखते-देखते
वे पार कर सकती थीं तुम्हारे परकोटे

तुमने उनके पंख छीन बचाया उन्हें
उन खतरनाक उड़ानों से
जो उन्हें हवा पे बिठा
ले जा सकती थीं किसी दूसरी दुनिया में

तुमने उनके कंठ को कर काबू
मध्यम कर दी आवाज़ और
हँसी की घंटियों पर लगाकर पहरे
बचा लिया उनके एहसासों को
सार्वजनिक होने से

तुमने स्वयं चुने उनके लिए
‘अपने जैसे’ पुरुष
तुमने दूर रखा उन्हें ‘स्त्रीपक्षधर पुरुषों’ से
कि, जिन्हें पुरुष मानना भी स्वीकार नहीं तुम्हें
स्त्रियों संग घुल-मिल
बराबर पर बैठा लेने वाला ‘पुरुष’
तिरस्कृत है तुम्हारी परम्परानुसार

तुम सौंपते रहे अपनी ‘रक्षिता’ स्त्री
किसी ‘स्वयं’ से ही ‘पूर्ण-पुरुष’ के हाथों
ताकि तुम निरंतर जन्मते रहो और,
निरंतर प्रवहमान रहे तुम्हारी परंपरा…

मूल चित्र : Unsplash 

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