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औरत ही औरत की संगिनी होती है, वह उसका दर्द समझ सकती है और उसके दर्द की दावा भी कर सकती है, आख़िर वो औरत जो है, उसका ह्रदय सौहार्द से लबरेज़ है।
वो बिखर रही थी, सहेली ने आकर संभाल लिया, वो सहम रही थी , बहन ने हौसला दे दिया।
वो थक रही थी , भाभी ने प्यार से सहला दिया , वो गम में डूब रही थी , ननद ने हाथ थाम लिया।
वो दर्द से कराह रही थी , सास ने मरहम लगा दिया , वो हार कर मर रही थी , माँ ने प्यार से पुकार लया।
वो फिर जी उठी , वो फिर से हंसने लगी , वो औरत औरत संग रहने लगी।
एक से दो औरत भली हो गईं , जिंदगी की सूखी डाल हरी हो गई , भर गया हर जख्म , मन में भोर होने लगी।
वो सहेली बहन बन सजने लगी , वो ननद भाभी बन सहजने लगी , वो सास माँ बन दुलारने लगी , वो नारी नारी को पहचानने लगी।
हाथ से हाथ मिला , दिल से दिल की रहा ली , वो रिश्तों के पर लगा , सपनो की उड़ान भरने लगी।
तू भी औरत मैं भी औरत , दोनों पहचान एक दूजे की , अब मर्द नाम कि दीवार नहीं , अब जीत हमारी होने लगी।
ओ वुमनिया तू मुट्ठी बनने लगी , ओ वुमनिया तू पहचान पाने लगी , ओ वुमनिया तू हिलने मिलने लगी , ओ वुमनिया तू संग चलने लगी।
मूल चित्र : Pexels
Myself Pooja aka Nirali. 'Nirali' who is inclusion of all good(s) n bad(s). Not a writer, just trying to be outspoken. While playing the roles of a daughter, a wife, a mother, a read more...
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