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कभी कभी प्रेम की पीड़ा की अतिश्योक्ति शरीर के कुँज कुँज में एक व्याकुलता की लहर को सुशोभित करती है, मगर मन व्याकुल रहता है और विरह की अग्नि में तपने लगता है।
कितनी विरह, कितनी वेदना , कितनी मिलन की पिपासा , कितने अश्रु दृगों में , पलकें बिछाएँ करते इंतजार , हृदय घिरा घनघौर तिमिरमय , तिमिरमय मेरा संसार तुम बिन कितनी विरह, कितनी वेदना , कितनी मिलन की पिपासा।
भर जाता हृदय मैं उन्माद सा , घुल जाता होंठों मैं विषाद सा , कितनी विरह, कितनी वेदना, कितनी मिलन की पिपासा।
आंखें पथरीली हो गईं , पलकें हुई निर्झरिणी , पीड़ा कुछ कम न हुई , हृदय चितवन बिच्छिन्न हुआ , कलियाँ सारी मुरझा गईं , छा जाता हृदय में विराग सा , कितनी विरह, कितनी वेदना , कितनी मिलन की पिपासा।
नींद से सूनी पलकें , तेरी यादों की परछायीं , चिर उन्नींदी मेरी निशाँ , कितनी विरह, कितनी वेदना , कितनी मिलन की पिपासा।
विरह की यह वेदना , विरह का क्रंदन मेरा , एक करुण भाव से , गूंजता उर में न जाने , मधुर स्वरअलापता , कितनी विरह, कितनी वेदना , कितनी मिलन की पिपासा।
क्रंदन से आहत हृदय हुआ , तनिक भी आराम न , नीर भरा, एक आह भरा , प्रतिपल, प्रतिक्षण मेरा , अनुराग भी उन्माद सा , संगीत की लयमय अनुभूति , उन्माद भरी बेस्वाद सी , कितनी विरह, कितनी वेदना , कितनी मिलन की पिपासा।
पलकों पर हैं पल रहे , स्वप्न प्रियतम से मिलन के , नैन थक थक चूर हुए , तेरा पथ निहार कर , चिर उन्माद उर में समाया , कट गया घनघोर तिमिर , आस जागी फिर मिलन की , प्यासी थी पपीहे की तरह , स्वाति की एक बूँद को , कितनी विरह, कितनी वेदना , कितनी मिलन की पिपासा।
नैन मगन हो गए , झर झर बरसने लगे , दृगों से मोती ! पलकें सजी हैं व्रीड़ा के गहनों से , होंठों ने मुस्कुरा कर कहा , मेरा सर्वस्वा तो तुम ही हो, बस तुम ही हो , कितनी विरह, कितनी वेदना , कितनी मिलन की पिपासा।
मूल चित्र : Pexels
Blogger [simlicity innocence in a blog ], M.Sc. [zoology ] B.Ed. [Bangalore Karnataka ] read more...
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