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सीरीज़ पाताल लोक के तीन लोकों की महिलाओं की अलग परिस्थियां और संघर्ष हैं, फिर भी ये महिलाएं अपनी शर्तों पर जीवन जीती हैं, बिना किसी ग्लानि के।
झकझोर दिया है पाताललोक ने। बहुत विचलित हूँ, कहानी और किरदार दिमाग में लगातार घूम रहे हैं। कोशिश कर रही हूँ कि कुछ ख्याल आये लेकिन बार बार इसके किसी दृश्य पर जाकर ठहर जाती हूं। किस बेबाकी से ये कहानी किसी राइफल की तरह एपिसोड दर एपिसोड सवाल दागती चली जाती है और अंत होते होते सीना छलनी हो जाता है।
ऐसा कुछ भी नहीं जिससे हम वाकिफ़ नहीं, हाँ लेकिन ऐसा बहुत कुछ है जिसके बारे में जानते हुए भी हम अनजान बने रहना चाहते हैं। राजनीति,मीडिया, पुलिस और नौकरशाही का सच, हमारे समाज में बहुत गहरी पसर चुकी असमानता का सच, हमारे मजबूरी के नाम पर बनाए झूठे बहानों का सच, ऊंची इमारतों के असली ठिकानों का सच सब कुछ दिखाती है ये वेब सीरीज़ पाताल लोक हमें।
सबसे अच्छी बात है कि किसी नैतिकता का बहाना लेकर इन्होंने इस सच पर कोई फ़िल्टर नहीं लगाया, जस का तस परोस दिया है। कईं दृश्य ऐसे हैं जिन्हें देखकर आप सिहर जाते हो घबराकर आँखे बंद करने लगते हो। बहुत से संवाद ऐसे हैं जो आप सुनना नहीं चाहते, आप उन्हें म्यूट (mute) कर देते हो। लेकिन हमारे आँख बंद करने से या सुनाई न देने के भ्रम में रहने से सच्चाई बदल नहीं जाएगी। ये सबकुछ रोज़ हो रहा है हमारे आस पास, अख़बार भरे पड़े हैं इससे भी भयावह खबरों से।
जयदीप अहलावत के द्वारा बड़ी खूबसूरती से निभाया गया हाथीराम चौधरी का साधारण किरदार इस कहानी की यूएसपी है। सब कुछ वास्तविक लगता है, हाथीराम का बाबुजी से जुड़ा अतीत, उसका पत्नी के साथ खूबसूरत रिश्ता या अपने बेटे के भविष्य को लेकर आशंकित पिता। एक ही व्यक्ति के इन विभिन्न रूपों में जयदीप अहलावत ने बखूबी जिया है। लेकिन दिल जीत लेता है इन सबसे बीच एक भृष्ट व्यवस्था से लड़ता हुआ अपने उसूलों पर चलता हुआ एक ईमानदार पुलिस अफसर।
कहते हैं एक विफलता इंसान को तोड़ देती है, लेकिन हाथीराम के पास अपनी असफल प्रयासों कि एक श्रृंखला है, फिर भी वो हिम्मत नहीं हारता। अपने हाथ आये इस आखरी मौके को वो छोड़ना नहीं चाहता, उसकी अपनी जिंदगी से ज्यादा बड़ा हो जाता है उसके लिए स्वयं को साबित करना।
जयदीप के साथ साथ बाकी सभी कलाकारों ने भी अपना सर्वक्षेष्ठ अभिनय किया है । ‘हथौड़ा त्यागी’ के किरदार में अभिषेक बनर्जी ने कमाल का अभिनय किया है, बहुत ही कम संवादों के बावजूद जो प्रस्तुति उन्होंने दी है वो इस कदर है की एक दो एपिसोड के बाद ‘हथौड़ा त्यागी’ का खौफ आपके जहन में बैठ जाता है, आप डरने लगते हो किए अब ये न जाने क्या करेगा। ‘संजीव मेहरा’ के किरदार में नीरज काबी इतने वास्तविक लगते हैं कि आप सोचने पर मजबूर हो जाते हो कि कहीं वो सच में मीडिया से जुड़ी हुई कोई शख्सियत तो नहीं। राम के लक्ष्मण की तरह अंसारी के भेष में इश्वाक सिंह, साये की तरह हाथीराम के साथ चलते हैं । जगजीत संधू (तोप सिंह), बोधिसत्व शर्मा (सिद्धार्थ), अनुराग अरोरा (एसएचओ विर्क), आसिफ खान (कबीर एम), विपिन शर्मा (डीसीपी भगत) फ़ेहरिस्त लंबी है, इन सभी कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है।
बहुत खुश हूँ में इस सीरीज के महिलाओं की भूमिका से, इनके पास बहुत कम है कुछ कहने या करने को क्योंकि कहानी का केंद्र में पुरूष किरदार हैं। फिर भी जिस तरह से उनका पात्र लिखा गया है वो सभी कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
इन तीन अलग अलग लोकों की महिलाओं की अलग परिस्थियां और संघर्ष हैं। फिर भी ये महिलाएं अपनी शर्तों पर जीवन जीती हैं। बिना किसी ग्लानि के। रिक्शा से उतरते ही सड़क पर गुल पनाग का जयदीप अहलावत को थप्पड़ मारने वाला दृश्य मेरे लिए इस सीरीज के बेहतरीन दृश्यों में से एक।है। उनके रिश्ते का सारा सार इस एक दृश्य में समाहित है। संजीव मेहरा की पत्नी डॉली के किरदार में स्वस्तिका मुखर्जी ने आलीशान घरों में पसरे तनाव को महसूस करवाया है। ‘सारा मैथ्यूज’ के एक युवा पत्रकार के रोल में निहारिका लायरा दत्ता ने पहले दृश्य में ऐसा प्रभाव छोड़ा है कि आपको उनके पात्र का नाम हमेशा याद रहेगा ।
वेब सीरीज़ पाताल लोक की असली हीरो इसकी पटकथा है जो सुदीप शर्मा ने अपनी टीम के साथ मिलकर लिखी है। तरुण तेजपाल की किताब से प्रेरित यह पटकथा बहुत सधी हुई है और दर्शक को बांधे रखती है। आखरी एपिसोड के आखरी दृश्य तक अगर ‘अब क्या होगा’ वाली स्थिति जो बनाये रख सकते हो तो आपकी पटकथा मुक्कमल है । दो साल दिए हैं सुदीप शर्मा ने इस कहानी और किरदारों को। उनकी और टीम की मेहनत रंग लाई है ।
सुदीप शर्मा ने दोनों निर्देशक और एडिटर भी बहुत अनुभवी चुने हैं। अविनाश अरुण और प्रोसित रॉय ने मिलकर हमें पाताल लोक दिखाया है। इस दोनों ने अपने एक साक्षात्कार में कहा है कि पटकथा इतनी सशक्त थी कि उसके साथ न्याय करने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी इनके कंधों पर थी और इन्होंने पूरा न्याय किया है। अलग अलग देश काल में नहीं अलग अलग निर्देशकों द्वारा फिल्माए गए दृश्यों को जिस तरह से जोड़ा गया है कि देखते हुए आपसे कहीं कोई कड़ी नहीं छूटती। ये कमाल किया है एडिटर संयुक्ता कज़ा ने।
इसके निर्माता हैं अनुष्का शर्मा व उनके भाई करनेश शर्मा की कंपनी क्लीन स्लेट फ़िल्मज़। मौजूदा हालात में जहां खबरें भी टीआरपी के आधार पर चलती है इस तरह की एक कहानी को बनाने और प्रस्तुत करने जो जोख़िम उठाया है और जो हिम्मत दिखाई है इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
ये सीरीज़ सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं देखी जा सकती, ये उससे बहुत ऊपर है। मात्र नौ एपिसोड में इसने हर उस घाव को छू लिया जिसे शायद भूलकर या अनदेखा कर हम जीए जा रहे हैं।
मूल चित्र : YouTube
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