कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
ऐसे ना जाने कितने ही काम हैं जो मैं कर सकता हूं पर मैं नहीं करता और वह इतने दिनों से सब कुछ संभाल रही है, हमारा घर, अपनी नौकरी, मेरी मां, मेरे बच्चों को...
ऐसे ना जाने कितने ही काम हैं जो मैं कर सकता हूं पर मैं नहीं करता और वह इतने दिनों से सब कुछ संभाल रही है, हमारा घर, अपनी नौकरी, मेरी मां, मेरे बच्चों को…
जनता कर्फ्यू की वजह से इतवार का सारा दिन घर बैठे ही गुजर रहा था, बीच-बीच में पत्नी कभी इधर बच्चों को कुछ पकड़ाती, कभी मुझे मेरी चाय पकड़ाती, चहल-कदमी कर रही थी। मैं भी अब फोन देखते-देखते उब गया था, तभी फिर एक बार पत्नी चहल-कदमी करती नजर आ गई और मेरे मन के गलियारे में ना जाने कितने दिनों बाद यादों ने दस्तक दे दी थी, यादें नहीं वो अनमोल लम्हें जिन्हें कभी मैंने जिया था, कहूं तो ठीक होगा।
कुछ पंद्रह साल पुरानी बात होगी, मैंने पहली बार उसे एक बस में देखा था; वैसे तो बस में मैं कभी बैठता ही ना था पर उस दिन अचानक मेरी गाड़ी खराब थी और मेरा वक्त पर ऑफिस पहुंचना बेहद जरूरी था। नतीजतन मैं बस में था और मेरे साथ वाली सीट पर वह बैठी थी। वैसे इतनी खूबसूरत भी ना थी वह, पर ना जाने कैसा आकर्षण था उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में कि जहां उतरना था वहाँ ना उतर कर मैं बैठा ही रह गया और अगले कुछ दिन मैंने बस से यात्रा शुरू कर दी थी।
हर दिन उसके साथ वाली सीट पर बैठ जाता और ना जाने कितनी देर हमारी बातों का सिलसिला चलता रहता और इक बात बताऊं उसकी बातों में ज़िन्दगी को देखने का एक अलग ही नज़रिया था या शायद ये मेरी मुहब्बत थी उसके लिए, पता नहीं क्या था पर जो भी था उस वक्त मैं बेहद खुश हुआ करता था।
शाम के कुछ छह बजकर तीस मिनट पर खबर आई, ‘कोरोना वायरस की वजह से पूरी दिल्ली लॉक डाउन होगी इकतीस मार्च तक।’ सब परेशान हो गए, मां कहने लग गईं, “अब तो ना सुबह की सैर हो पाएगी और ना ही शाम को मंदिर जाना हो पाएगा, एक दिन में यह हाल है, नौ दिन और कैसे निकलेगा।”
अब मां को क्या समझाता मैं खुद यही सब सोच रहा था। अगले दिन का सूरज कुछ ज्यादा ही जल्दी निकाल गया था शायद, आंख खुली तो वही बस वाली लड़की झाड़ू लगाती थी घर में, कहीं जाना नहीं था तो कोई जल्दी भी नहीं थी भागने की मैं वहीं बैठा रहा और उसे देखता रहा।
उसने मेरी तरफ देखा, “अभी तुम्हारी चाय लाती हूं”, कहकर जाने लगी, तो मुझे ध्यान आया ये काम तो काम वाली बाई का है! इससे पहले कभी ख़्याल ही नहीं आया कि कामवाली भी छुट्टी करती है। वह चाय लेकर आई तो मैंने पूछा, “कामवाली छुट्टी पर है क्या?”
“हां! वह जब से बच्चों के स्कूल की छुट्टी हुई है तबसे ही उसे छुट्टी दे दी है, पता नहीं कितने घरों में जाती है तो, उसकी भी सेफ्टी जरूरी है ना, इसलिए सोसाइटी की सभी औरतों से बात कर के उसे दो महीने का एडवांस दे कर छुट्टी दे दी है।”
मैंने सोचा पिछले दस दिनों से कामवाली छुट्टी पर है और मैंने आज गौर किया इस बात पर, क्या हो गया है मुझे? मैं शायद भूल ही गया हूं उस बस वाली लड़की को, इतना व्यस्त कैसे हो सकता हूं मैं? मेरा मन मुझे धिक्कार रहा था।
खैर! अब मैंने ध्यान देना शुरू किया कि इन दो दिनों में मैंने उसे दो पल भी बैठे हुए नहीं देखा है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या कर सकता हूं जिससे वह कम से कम थोड़ी देर मेरे साथ बैठे और जिस बस वाली लड़की को मैंने गुजरते हुए वक्त के साथ खो दिया है उसे फिर से पा सकूं। अब मैं उसके पीछे-पीछे रसोई की तरफ गया और देखता रहा उसे, कितनी फुर्ती से उसने माँ का काम तेल-मसाले वाला, बच्चों के लिए उनकी पसंद का नाश्ता बना कर उनके कमरे में ले जा रही थी, मैंने बढ़ कर उसके हाथ से नाश्ते की ट्रे ले ली, “लाओ मैं पहुंचाता हूं।”
वह मुझे देख मुस्कुराई, मैंने शायद बड़े दिनों बाद देखा था कि उसकी मुस्कुराहट अब भी वैसी है, जब वह पहली बार मुझे देख कर मुस्कुराई थी। नाश्ते के बाद बर्तन साफ करने का जिम्मा मैंने ले लिया था, वह मुझे देख फिर मुस्कुराई, मुझे लगा ऐसे ना जाने कितने ही काम हैं जो मैं कर सकता हूं पर मैं नहीं करता। वह इतने दिनों से सब कुछ संभाल रही है, हमारा घर, अपनी नौकरी, मेरी मां को, मेरे बच्चों को और भी ना जाने क्या-क्या! क्या ये जिम्मेदारियां मेरी नहीं हैं? मैंने धीरे-धीरे अपने आप को उसके साथ के कामों में व्यस्त कर दिया और उसकी हर मुस्कुराहट के साथ मुझे एक बार फिर मिल जाती वही बस वाली लड़की।
दोस्तों कुछ भी कहो इस लॉक डाउन ने मुझे तो बहुत कुछ सीखा दिया और भी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
मूल चित्र : Unsplash
A mother, reader and just started as a blogger read more...
Please enter your email address