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उनसे मिलना एक संयोग था…मेरी मनोकामना पूरी होने के लिए

शादी से पहले मैं वैभव लक्ष्मी के व्रत रखा करती थी और आस्था इतनी हो गई थी कि कल्पना शक्ति में भी एक बूढ़ी औरत लाठी के साथ दिखाई देती थी।

शादी से पहले मैं वैभव लक्ष्मी के व्रत रखा करती थी और आस्था इतनी हो गई थी कि कल्पना शक्ति में भी एक बूढ़ी औरत लाठी के साथ दिखाई देती थी। 

ये सच्ची बात है। बस एक पहेली सी ही थी। वृद्ध महिला की कहानी। एक संयोग की बात हुई थी जो भूली ही नही जा सकती।

शादी से पहले मैं वैभव लक्ष्मी के व्रत रखा करती थी और आस्था इतनी हो गई थी कि कल्पना शक्ति में भी एक बूढ़ी औरत लाठी के साथ दिखाई देती थी और जब भी मुझे कोई परेशानी होती कॉलेज में या कोई बात होती तो मैं पूजा में उसी बात को बोलती थी। मतलब मैं लक्ष्मी माता के सामने वह सब चीजें बोल देती थी और मन शांत हो जाता था और सोचा था ऐसे मन्दिर जरूर जाँऊगी जहाँ मन्दिर का नाम लक्ष्मी माता से होगा।

मै लगातार व्रत रही थी और मेरी शादी हो गई। शादी के बाद बेटा हुआ और एक बार मेरे पति ने मुंबई जाने का प्रोग्राम बनाया कि चलो तो मैं मुंबई दिखाते हैं एस्सेल वर्ल्ड बेटे को घुमा कर लाते हैं और हम लोगों ने तब ट्रेन से रिजर्वेशन कराया हुआ था।

मेरे पैरों में कुछ दर्द था तो मेरी बर्थ ऊपर की मिली थी और मेरे पति की भी ऊपर की थी और बराबर वाले कंपार्टमेंट में 4 सीट थी और उसमें सेकंड एसी की बात है और उसमें एक वृद्ध महिला सफर कर रही थी। मैं नीचे की बर्थ पर बैठ गई और सोचने लगी कि ऊपर चढ़ा कैसे जाएगा? या फिर टीटी आता है तो हम उससे किसी की सीट इधर चेंज करवा लेंगे तब तक मैं नीचे ही बैठी थी और मेरे हस्बैंड भी।

मेरा बेटा तीन साल का था और बहुत ही  बहुत ही बातूनी था। सारे कंपार्टमेंट में वह सब का मन लगाए हुए था और सब हंसते हुए उससे बातें कर रहे थे। तभी वह बराबर वाले कंपार्टमेंट में उन बुजुर्ग आंटी के पास चला गया और उनसे बातें करने लगा और वापस आ गया और उसने बताया आंटी अकेली है, तो यह सोचकर मेरे हस्बैंड ने सोचा उनसे बातें करते हैं क्योंकि उनकी 3 सीट पूरी खाली थी और वह अकेले ही सफर कर रही थी।

मेरे हस्बैंड उन के पास गए और उन्होंने उनसे पूछा कि क्या मेरी वाइफ रात के लिए आपकी किसी एक बर्थ पर सो सकती है? क्योंकि उसके पैर में प्रॉब्लम है ऊपर नहीं चढ़ पाएगी, पर उन आंटी ने एकदम एक ही बार में मना कर दिया कि नहीं यह सिर्फ मेरी है और मैं किसी को नहीं दूंगी।

उनका व्यवहार बहुत अटपटा लगा और वह चुपचाप आ गए और बोले कि उन्होंने मना कर दिया तो मुझे बहुत बुरा लगा और मैंने सोचा कि एक औरत ,एक औरत के लिए इतना नहीं कर सकती जबकि उसके कंपार्टमेंट में कोई भी नहीं है और वह सफर कर रही हैं और वह काफी बुजुर्ग थी। पर मेरा बेटा बार-बार उनके पास जा रहा था और अपनी कुछ ना कुछ बातें उनसे पूछे जा रहा था।

उन्होंने उसे खाने के लिए मुरमुरे  दिए तब मैंने उसे मना किया। मैंने उसे मना किया कि बेटा किसी की भी दी हुई चीज़ ऐसे नहीं खाते, आपको नहीं खानी चाहिए। इतने में उनकी आवाज अंदर से आई, “मैं किसी नहीं हूं अरे मैं खा रही थी तो मैंने उसको अपने लिए दे दिया।” तो मैंने उन्हें सॉरी बोला, “नहीं बात यह है की समझा रही हूं कि किसी अनजान से ना ले।”

वो बोली,  “हां मैं समझ सकती हूं”, और उन्होंने मेरे बेटे को आवाज लगाई और बोला, “जाओ अपनी मम्मी को यहां ले आओ।” मैं गई तो मैंने उनको नमस्ते किया और जब मैंने उन्हें देखा तो आपको शायद यकीन नहीं होगा उनके माथे पर एक बहुत बड़ी लाल बिंदी लगी हुई थी और उनके हाथों में बहुत ही ज्यादा दोनों हाथों में लाल रंग की मीनाकारी वाली चूड़ी थी जो कि बहुत पहले हमारी मम्मी वगैरह पहना करती थी, मोटी मोटी और उसमें गोल्डन कलर की कुछ लाइन लाइन सी होती है और उनके हाथ में उनके पास एक छड़ी रखी हुई थी और उन्होंने कॉटन की साड़ी पहनी हुई थी।

मैं उन्हें देख कर मुस्कुरा दी और मन में मैंने सोचा कि अरे यह तो बिल्कुल मेरी लक्ष्मी माता जैसी लग रही है और बचपना था बस ऐसे ही ख्याल आया मैंने उनसे पूछा कि आप इतनी बड़ी बिंदी लगाती हैं और आपके ऊपर  बिंदी बहुत अच्छी लग रही है। मेरे ऊपर  बिल्कुल अच्छी नहीं लगेगी। वह मुस्कुरा दी, और बोली, “तुम्हारा नाम क्या है?”

मैंने कहा, “मेरा नाम अंशु है और मैं अपने पति और बेटे के साथ घूमने जा रही हूं।” तो उन्होंने बोला कि क्या तुम्हें कविताएं आती हैं? तो मैंने उनसे बोला कि नहीं। “क्या आपको आती है”, मैंने पूछा? तो उन्होंने कहा, “मुझे आती है।” तो मैंने कहा, “आप सुनाइए।” तो उन्होंने कुछ हिंदी में एक कविता सुनाई जो कि मुझे बिल्कुल याद नहीं हुई उसका मुझे अर्थ समझ में आया कि किसी पर जल्दी से विश्वास नहीं करना चाहिए। मैंने उनको और कहा कि आंटी अच्छा है आप मुझे मिली और मेरा सफर बहुत अच्छे से आपसे बात करते हुए निकल जाएगा और अगला दिन भी हमारा अच्छे से बीता बातें करते हुए मैंने उनसे पूछा कि आप अकेली क्यों हैं आपके तीनों सीट खाली क्यों है?

उन्होंने बोला कि जिन्हें जाना था वहाँ नहीं जा पाए। मैंने ज्यादा पूछना ठीक नहीं समझा कि क्या पता वह बताना नहीं चाह रही हो, पर मैंने पूछा, “आप अकेली कहां जा रही हैं?” वे बोली “मैं मुंबई से आगे जा रही हूं।” और मैंने कहा, “अकेली क्यों जा रही है”?  तो वो बोली कि बस मेरा ऑपरेशन है और मैं ऑपरेशन कराने जा रही हूं तो मेरी कुछ कमर, पैर में कुछ दर्द है तो उसका  इलाज 14 साल से  चल रहा है। “14 साल से?” मैने पूछा मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था। वह बोली मेरे पैरों की कुछ परेशानी है छड़ी के सहारे से चलती हूं और मेरे पति को पैरालाइसिस है वह चल नहीं पाते, लेटे रहते हैं और मेरा एक बेटा है।

मैंने बोला, “आप अकेले आपरेशन करा के चली जाएगीं।” मैं बहुत आश्चर्यचकित थी मैं बार बार उनसे पूछ रही थी कि आपको अकेले कैसे भेज दिया? बोली, “अब आदत पड़ गई है। शुरू में पति आते थे अब अकेले ही आकर चली जाती हूं। वो चल नहीं पाते।”

उन्होंने मुझसे कहा कि मुंबई में क्या देखोगी? मैंने कहा  बच्चे को एस्सेल वर्ल्ड दिखाना है उन्होंने कहा वहां महालक्ष्मी का मंदिर है वहां जरूर जाना। मेरे लिए वो बहुत खुशी की बात थी क्योंकि बचपन से मैं लक्ष्मी माता के मन्दिर जाना चाहती थी। मैने कहा माता ने चाहा तो जरूर जाँऊगी। और नमस्ते की कहा आंटी आपके साथ बहुत अच्छा लगा रात को ही हमे उतरना है आप जब सो रही होगी।

मैंने पैर छूए। वो बोली, “तुमने मेरा नाम नहीं पूछा।”  मैं तब भी आश्चर्य मे थी क्योंकि कभी कोई वृद्ध महिला अपना नाम ऐसे नहीं बताती। बस आंटी ही रहती है। मैं मुस्कुरा दी। वो बोली मेरा नाम है “योग माया”। मुझे नाम सुनकर फिर आश्चर्य हुआ। मैंने बोला, “बहुत अच्छा नाम है। मैंने पहली बार सुना।”

इसके बाद हम सो गये। रात आने पर हम स्टेशन उतर गये। मैंने पति को बताया कि उन्होने महालक्ष्मी जी के मदिर जाने को बोला है। पति ने कहा पता नही हमारा होटल कितनी दूर है और बम्बई मे कितने मंदिर होगे, हमें कैसे पता, कौन सा है! उस बात को ज्यादा नहीं बढ़ाया पर मन में था काश जाती।

अगले दिन हमने पूरे दिन की टैक्सी ली और हम घूमने निकले। उस दिन दशहरा था। सोचा मन्दिर चलेंगे। रास्ते मे एक पीर दरगाह दिखी। मैने बोला ,”सुनिए ये पिक्चर मे देखी है दरगाह की बहुत मान्यता है, चलें क्या ? पति मान गये और फूलो की चादर चढ़ा कर आए।

बहुत पुलिस थी। किसी से पूछा इतनी पुलिस व्यवस्था क्यूँ? उसने बताया कि ये बराबर वाला महालक्ष्मी का मंदिर है आज दशहरा पर महा यज्ञ है। मेरी खुशी का ठिकाना नही था पर डर था भीड़ को देखकर पति न ना कह दे क्योंकि समय कम था और बहुत जगह जाना था। शाम तक नंबर आएगा।

पति से कहा देखो संयोग मंदिर ले आया। आज महायज्ञ भी है दशहरा है और हम घर पर नहीं तो पूजा कर लेते हैं। पति भी सहमत थे, शायद माँ ने बुलाया। जैंटस और लेडिज की अलग लाइन थी। हम लाइन मे लगे पति ने कमल के फूल ख़रीद कर दिए। वहाँ तीन देवियाँ थी और दर्शन करके हम बाहर आए। मन में सुकून भरा था, पर वो आंटी एक पहेली सी थी। महालक्ष्मी के दर्शन करा गई। वहाँ जाने के संयोग बना और बचपन की कामना पूरी हुई।

मूल चित्र : Unspalsh 

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