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और मैंने तय कर लिया कि क्या करना है….!

आज बहुत दिनों बाद अच्छी नींद आई क्यूंकि आज मैं सुबह का अलार्म बंद करके सोई थी और मैं अब वापस पीछे मुड़ने के मूड में बिल्कुल नहीं थी।

आज बहुत दिनों बाद अच्छी नींद आई क्यूंकि आज मैं सुबह का अलार्म बंद करके सोई थी और मैं अब वापस पीछे मुड़ने के मूड में बिल्कुल नहीं थी।

और मैंने तय कर लिया कि क्या करना है….!

आज बहुत दिनों बाद मुझे अच्छी नींद आई। आज मैं सुबह का अलार्म बंद करके सोई थी। दरवाजे पर धड़-धड़ की आवाज़ से मेरी नींद खुली। पास तुषार बेखबर सो रहे थे। मैं भी चुपचाप लेटी रही।

“हिना देखो ना! कौन है? दरवाजा खोलो यार!”

“तुम देखो! मेरी आंखें नहीं खुल रहीं हैं।” मैंने बहाना बनाते हुए कहा।

मुझे पता था एक बार मैं उठी तो चकरघिन्नी जैसी पूरे दिन काम में फंसी रहूंगी।

तुषार थोड़ी देर टालते रहे पर दरवाजे में खड़े ‘शख्स’ को चैन कहां था! वे भी अपना गुस्सा और खींझ दरवाजे पर उतार रहे थे। तुषार ने जब देखा मैं बेअसर लेटी हूँ तो जबरदस्ती उसे बिस्तर से उठना पड़ा। दरवाजे पर कौन है, मैं ये खूब अच्छे से जानती थी।

“क्या मम्मी! अभी तो साढ़े छः बजे हैं। इतनी सुबह दरवाजा क्यों पीट रही हो!”

“अरे बहू जगी नहीं अब तक! तुम्हारे पापा आधे घंटे से गर्म पानी के लिए कह रहे हैं। अब तो चाय का समय हो गया।”

“हिना! उठो यार। मेरी नींद खराब हो गई।”

“रात को मम्मी जी के कमरे में इलेक्ट्रिक कैटल लगाकर आई थी। उनसे कहो स्विच ऑन कर लें, पानी गर्म हो जाएगा। फिर उसी में चाय भी बना लें।”

मम्मी जी के भुनभुनाने की आवाज़ मैंने सुनी और तुषार को उन्हें समझाने की भी। नींद तो कब का भाग चुकी थी पर मैं लेटी रही।

तुषार ने पास आकर मेरा माथा छूकर कहा “तबीयत तो ठीक है ना तुम्हारी!” मैंने आंखें बंद किए सर हाँ में हिला दिया। तुषार फिर सो गए।

मुझे बारह साल हो गए थे इस घर में ब्याह कर आए। अब तक मैंने सास-ससुर की हर एक छोटी बड़ी जरूरतों का ध्यान रखा। ननद शिखा के हाथों में चाय की कप पकड़ाई। बच्चों की देखभाल के साथ ही हर एक की ख्वाहिश पूरी की। पर किसी को मेरी कोई कद्र ही नहीं!

पिछले दो महीनों से लॉकडाउन की वजह से सब घर पर हैं। सुबह शाम हर किसी के खाने पीने की ख्वाहिशें पूरी करती हूँ। दिन में चौदह बार चाय बनाती हूँ। चाय बनाकर ले जाती हूँ तो फरमान आता है कि अभी कॉफी चाहिए। मीना थी तो झाड़ू-पोछा, बर्तन का आराम था पर अब घर की साफ-सफाई, बरतन धोना सब मेरे सिर पर आ गया। लेकिन कोई हिल कर राज़ी नहीं।

कल तुषार अपने दोस्तों की विडियो देख रहा था। तुषार ने तंज करते हुए कहा, “यार तुम्हीं बीमार सी रहती हो। तुम्हें न तो कपड़े पहनने का ढंग रह गया और न तो सजने संवरने का। देखो तो मोहित की वाइफ जया इस पिक में कितनी स्मार्ट लग रही है। हमने एक साथ तो न जाने कब लास्ट पिक ली थी? तुम तो आजकल रात में भी थकी रहती हो। मेरे लिए तो तुम्हें समय ही नहीं रहता।”

और फिर निशा भाभी का मेकअप विडियो चैलेंज मेरे घर में एक नया तूफान लेकर आया, “निशा भाभी इस उम्र में भी कितनी फिट और स्मार्ट हैं अपने पैशन को उन्होंने छोड़ा नहीं बल्कि और ग्रूम किया है।” तुषार ने कहा।
राजेश भाईसाहब आई. ए. एस. हैं। इस लॉकडाउन में भी उनके घर में बावर्ची और सहायक हैं, मेरी आलोचना करते हुए तुषार ये भूल जाते हैं।

इस घर की, घर के लोगों की देखभाल में मैंने अपनी अनदेखी की और इसका मुझे ये सिला मिला। अपनी बीमारी में भी मैं सबकी पसंद नापसंद का ध्यान रखती हूं लेकिन किस लिए! क्या मुझे अपनी परवाह करने का हक़ नहीं! क्या मेरा शरीर आराम नहीं चाहता? क्या मुझे अपने शौक पूरे करने का मन नहीं करता? क्या मेरा मन नहीं करता तैयार होकर पति के साथ फोटो खिंचवाने का! कितने दिनों से ये सारे सवाल जेहन में घूम रहें थे। इस लॉकडाउन में मुझे खुद से सवाल जवाब करने का मौका मिला। मैंने क्यों अपने सपनों का लॉकडाउन कर दिया?

आठ बज गए थे। मैं बिस्तर से उठी और तुषार को जगाया। लॉकडाउन की वजह से वर्क फ्राम होम है। सुबह दस बजे उठते हैं। मुंह धोकर लैपटॉप लेकर बैठ जाते हैं नाश्ता-खाना सब उनके रूम तक पहुंचाना पड़ता है।

“क्या हुआ! अभी क्यों जगा रही हो?”

“तुषार नौ बजे तक नाश्ता नहीं किया तो किसी को भी नाश्ता नहीं मिलेगा।”

मैंने दलिया बनाया। शिखा सबसे पहले मुंह सिकोड़ने लगी। मैंने कहा, “शिखा आज से सबके लिए एक जैसा नाश्ता बनेगा। मम्मी जी मैं आपको सब्जियां देती हूं काट दीजिए।”

दो सब्ज़ी, दाल, रायता, चटनी, पापड़ बनने वाले किचन में आज दाल और एक सब्ज़ी बनी। बार बार ‘चाय पीने का मन हो रहा है’ कहने वाले बाबू जी की चाय मम्मी जी इलेक्ट्रिक कैटल में बना रहीं हैं और तानें दे रहीं हैं, “कितनी चाय पीते हैं आप!”  शिखा को डस्टिंग की जिम्मेदारी दे दी है। तुषार मेरे साथ बर्तन धोने में हाथ बटाएंगे।

मेरा काम जल्दी निपट गया तो शाम को मैंने साड़ी पहनकर हल्का मेकअप किया और तुषार से बोली चलो आज फोटो खिंचाते हैं, लेकिन दोपहर के बर्तन धोने के बाद तुषार का शायद फोटो खिंचवाने का मन नहीं हो रहा है।

मैंने ढेर सारी सेल्फी ली।

ये बदलाव सबको परेशान कर रहे थे, लॉकडाउन की वजह से शायद चिढ़कर या कुढ़कर सब मेरा साथ भी दे रहे हैं लेकिन मैं अब वापस पीछे मुड़ने के मूड में बिल्कुल नहीं थी। इस लॉकडाउन में ही नहीं, लॉकडाउन के बाद भी ये बदलाव मेरे घर में जारी रहेंगे। मैं दुकानें खुलने के इंतजार में हूं। मुझे कैनवस और ढेर सारे रंग खरीदने हैं।

मूल चित्र : Canva 

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