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क्या आपके परिवार में भी बहू का एक ही संस्कार है, और वह है चुप रहना!

अब आप ही बताइये कि ये कहाँ का इंसाफ़ है कि बहू के घर वाले तो बदतमीज, गवांर कहे जाते है और लड़के वाले संस्कारी, पढ़े-लिखे समझे जाते हैं?

अब आप ही बताइये कि ये कहाँ का इंसाफ़ है कि बहू के घर वाले तो बदतमीज, गवांर कहे जाते हैं और लड़के वाले संस्कारी, पढ़े-लिखे समझे जाते हैं?

“कल की आयी इस लड़की की इतनी मजाल, मुझसे जुबान लड़ाती है? इसके माँ-बाप को बताना पड़ेगा, यही संस्कार दिए हैं उन्होंने? कुछ नहीं सिखाया इस गवांर को! हमारे सर पर बैठ गयी है। जब देखो तब जुबान चलती है इसकी…”, सुजाता अपनी बहू को बोले जा रही है।

तभी उनके पास बैठ ससुर भी बोल पड़े, “यही सीख कर आई है अपने घर से? कैसे बड़े-बुजुर्गों की इज़्ज़त की जाती है? जब से आई है, तब से जीना हराम कर रखा है, हमारा न तो चैन मिलता है ना ही सकूं…!”

“बिल्कुल सही कह रहे हो आप… सब मेरी गलती है इतने सालों से आपकी बातों को सुनती रही। जब तक मैं चुप थी, तब तक बहुत अच्छी थी? आप सब की हां में हां मिलाती रही, जी हुजूरी करती रही, तब तक तो मैं बहुत संस्कारी थी?”

“आप मुझे बोलते रहो, मैं गूंगे बहरे की तरह सुनती रहूँ? लेकिन जब से आपकी बातों का जवाब देना शुरू किया है, तब से आप लोगों की आंखों में खटक रही हूँ!”

“अब से मैं आपकी कोई बात नहीं सुनने वाली, पसंद आये तो ठीक, न पसंद आये तो बहुत अच्छा”, रिया ने पुरजोर से अपनी बात कही, “आपका जो भी फैसला होगा मुझे मंजूर है।”

“आप चाहते हो मैं आपकी इज़्ज़त करूँ तो आपको भी कुछ सोचना चाहिए कि यदि मेरे माँ पिताजी आपके बारे में बोलें, हर बात का ताना आपके बेटे को दें, तो क्या आप लोग सुन सकते हो? कुछ ऐसा ही मेरे साथ आप भी कर रहे हो। मेरी बात का ताना मेरे माँ पिता को देते हो, तो यह सब मैं कैसे बर्दाश्त करूँ?”

“मम्मी जी अब से जी हुजूरी बन्द…बहुत सहन कर लिया, अब नहीं होगा इतना कहकर रिया वहाँ से चली जाती है।

दोस्तो आप ही बताओ क्या यह सही है कि यदि कोई चुप है, आपको जवाब नहीं दे रहा है, और सामने वाला कुछ भी बोलता रहे, कब तक सर झुकाकर सुनते रहेंगे? किसी जानवर को भी आप दस बार मारोगे तो वो एक बार तो आपको ज़रूर मारेगा।

हमेशा जी हजूरी करते रहो, आगे पीछे डोलते रहो तो, आप घर की सबसे अच्छी बहु मानी जाती हो। लेकिन जब जी हजूरी बंद कर दो, तो आपसे बुरा कोई नहीं होता।

माना बुजुर्गों की बातें हमारे लिए बहुत उपयोगी है लेकिन अब आप ही बताइये कि ये कहाँ का इंसाफ़ है कि बहू के घर वाले तो बदतमीज, गवांर कहे जाते हैं और लड़के वाले संस्कारी, पढ़े-लिखे समझे जाते हैं?

आपके घर की बहू का चुप रहना उसका संस्कार ही है, वरना कल की आई को अलग होने में कितनी देर लगती है… सही कहा है राड़ सैं बाड़ भली!

आप सब का क्या कहना है इस बारे में… अपने विचारों को भी लिख कर बताएं। ब्लॉग को पढ़ने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया।

मूल चित्र : Canva

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