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मोना को लगता था कि अगर रवि अपने पसंद की लड़की से शादी करेगा तो वो उनकी इज्जत नहीं करेगी और रवि भी सिर्फ अपनी पत्नी की सुनेगा।
“रवि देख कितनी अच्छी लड़की का रिश्ता आया है, एक बार फ़ोटो तो देख ले”, सरिता जी ने बेटे रवि से कहा।
“माँ कितनी बार बोल चुका हूँ मैं प्रिया से ही शादी करूँगा, वरना मुझे शादी ही नहीं करनी।”
रवि की एक बड़ी बहन थी जिसकी शादी पहले ही हो चुकी थी। सरिता जी और रवि की बहन मोना को लगता था कि अगर रवि अपने पसंद की लड़की से शादी करेगा तो वो उनकी इज्जत नहीं करेगी और रवि भी शादी के बाद अपनी पत्नी के इशारों पर नाचेगा। इसलिए वो कम पढ़ी-लिखी और खुद की पसंद की लड़की से शादी करवाना चाहती थी।
लेकिन रवि की जिद के आगे किसी की एक न चली और सबको शादी के लिए मानना ही पड़ा। शादी के दिन ही मोना ने प्रिया में खामियां निकालना शुरु कर दिया और प्रिया की छोटी छोटी गलतियों को भी बढ़ा चढ़ाकर बता कर बहुत हंगामा किया।
रवि ने अपनी माँ और बहन के तेज स्वभाव के बारे में प्रिया को पहले ही बता दिया था। प्रिया शान्त और समझदार थी वो जानती थी कि मैं रवि की पसन्द हूँ इसलिए मुझे कोई पसन्द नहीं करता। प्रिया ने सोचा बहन की तो शादी हो गई है उससे क्या डरना वो तो कुछ दिनों मे चली जायेगी और सासु मां का दिल तो मैं जीत ही लूंगी।
लेकिन प्रिया गलत थी सरिता जी हमेशा प्रिया को हर छोटी छोटी बात पर टोकती रहती वो सीधे मुँह प्रिया से बात भी नहीं करती। प्रिया ने कई बार रवि से बोलने की कोशिश की लेकिन रवि हमेशा कहता, “धीरे-धीरे मान जाएगी तुम हिम्मत मत हरो।”
प्रिया ने नोटिस किया कि सास ज्यादातर समय अपनी बेटी मोना से ही फोन पर बात करती रहती है और दिन भर के क्रियाकलापों की जानकारी देती है। लाख कोशिशों के बाद भी प्रिया सरिता जी का दिल नहीं जीत पाई थी। प्रिया ये जान गई थी कि सास के कान भरने का काम मोना ही कर रही है। तभी मांजी इतना रूखा व्यवहार करती है।
सरिताजी अपने घर के हर निर्णय बेटी से ही पुछ कर लेती। किस त्योहार पर क्या पहनना है, घर में क्या पकवान बनने हैं सब मोना की पसंद का होता। प्रिया को लगता जैसे मेरी इस घर में कोई वैल्यू ही नहीं है।
एक दिन प्रिया रोज के काम निपटा ही रही थी कि प्रिया के भाई का फोन आया।
“हेलो! प्रिया कैसी हो?”
“ठीक हूँ भैया”, प्रिया ने कहा।
“पापा की तबियत ठीक नहीं है, कुछ दिनों से तुम्हें बहूत याद करते हैं।”
“बहुत दिनों से ठीक नहीं है और आप मुझे अब बता रहे हैं?” प्रिया ने कहा।
“तुम्हारी सास को बताया था मम्मी ने, उन्होंने बताया नहीं क्या तुम्हें? शायद भूल गई होगी। अच्छा अब मैं फोन रखता हूं बाय।”
प्रिया को बुरा लगा कि पापा की तबीयत ठीक नहीं है और माँ जी ने उसे बताया भी नहीं। प्रिया सरिता जी के कमरे में जा ही रही थी कि उसके कदम रुक गए। सरिता जी फोन पर बात कर रही थी फोन का स्पीकर खुला था इसलिए प्रिया को साफ साफ सुनाई दे रहा था। मोना बोल रही थी, “ये सब मायके जाने के बहाने हैं। दीवाली आने वाली है घर में काम ज्यादा है इसलिए मायके जा कर काम से बचने का तरीका है ये। बोल दो माँ भाभी से कि दीवाली के बाद जाना। बहु को इतनी समझ तो होनी चाहिये कि अब ससुराल ही उसका घर है और ससुराल के लोगों को ही प्राथमिकता देनी चाहिए न कि मायके को।”
प्रिया से अब रहा न गया और वो कमरे में जाकर सरिता जी से फ़ोन ले कर मोना से बोलती है, “दीदी आप बात तो बड़ी समझदारी वाली करती हैं, लेकिन ये समझदारी अपने जीवन में भी तो अपनायें। आप भी तो किसी की बहु हैं तो आप क्यों अपने मायके के हर छोटे बड़े कामों में दखल देती हैं? यहां के निर्णय मैं और मांजी ले सकते हैं तो कृपया आप अपना घर देखिये और मुझे सुकून से रहने दीजिए। प्रिया ने फोन रख दिया।”
सरिता जी गुस्से से प्रिया को देख रही थी, लेकिन प्रिया अपने मन की भड़ास निकाल कर संतुष्ट थी।
दोस्तों, क्या प्रिया ने सही किया? अपने विचार कमेंट करके जरूर बताएं, मेरी और रचनायें पढ़ने के लिए मुझे फॉलो करें।
मूल चित्र : Canva
Devoted house wife and caring mother... Writing is my hobby. read more...
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