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रिपोर्ट्स का कहना है कि LGBTQ को कुछ लोग काम पर रख तो लेते हैं परन्तु वहां उनका मानसिक उत्पीड़न किया जाता है, उनका मज़ाक बनाया जाता है।
भारत में LGBTQ को उनके अधिकार 3 साल पहले ही मिल गए थे और तभी से लोगों को सोच में बदलाव आना शुरू हो गया आज की युवा पीढ़ी LGBTQ के विषय में बात करने से बिलकुल नहीं हिचकती, उनको इस बात को स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है।
समाज के बहुत से प्रख्यात लोगों ने सामने आकर यह बात मानी है कि वो गे,लेस्बियन, या होमोसेक्सुअल हैं लेकिन यह बात समाज का सिर्फ एक अभिजात वर्ग ही मानता है। एक सच यह भी है की आज भी समाज LGBTQ को सामान्य नहीं मानता।
आज भी स्कूल में पढ़ने वाला 16 साल का बच्चा आत्महत्या कर लेता है क्यूंकि उसके क्लास के बच्चे उसे यह कहकर चिढ़ाते हैं की वह एक सामान्य लड़का नहीं है, उसकी हरकतें लड़कियों जैसी हैं और उस बच्चे ने अपने सुसाइड नोट में लिखा, “पापा, मुझे खेद है कि मैं एक अच्छा बेटा नहीं बन सका। मैं आपकी तरह कमा नहीं सकता। मेरे पास लड़की जैसी विशेषताएं हैं और यहां तक कि मेरा चेहरा भी उनके जैसा है।”
उस बच्चे के सुसाइड से साफ़ यह बात नज़र आती है कि हमारे यहाँ के विद्यालयों का, कामकाज के स्थलों का माहौल आज भी LGBTQ लिए सामान्य नहीं है। रिपोर्ट्स का कहना है कि LGBTQ को कुछ लोग काम पर रख तो लेते हैं परन्तु वहां उनका मानसिक उत्पीड़न किया जाता है, उनका मज़ाक बनाया जाता है। और अंततः उनको काम छोड़ना पड़ता है।
इन सभी रिपोर्ट्स से यही पता चलता है कि आज LGBTQ को कानून द्वारा उनके अधिकार मिल गए हैं लेकिन समाज आज भी उनके अधिकारों को छीन रहा है। हमारा समाज कुछ समय पहले तक सिर्फ T(Transgender) से परिचित था लेकिन उनकी स्थिति आज तक समाज में कैसी है यह हम सब जानते , उनको ना तो शिक्षा मिलती है ना नौकरी और तो और उनको उनके घरवालों द्वारा स्वीकार भी नहीं किया जाता है।
अब धीरे धीरे भारतीय समाज में यह बात भी पता चलने लगी है कि सिर्फ T ही नहीं बल्कि LGBQ भी होते हैं। आप खुद ही सोचिये कि क्या सिर्फ यह बात पता चलने से LGBTQ वर्ग को उनके अधिकार मिल सकते हैं ? क्यूंकि हम सबको ट्रांसजेंडर के बारे में जानकारी कितने वर्षों से थी लेकिन उनको उनके अधिकार आज तक नहीं दिए गए और तो और उनके लिंग को एक गाली की तरह माना गया तो अब सवाल यह उठता है की अखिर गलती कहाँ है?
नहीं बिलकुल नहीं बदली है और हमें यह समझना होगा की समाज की सोच सिर्फ कानून बदलने से नहीं बदलती है, कानून बदलने से अन्याय करने वालों के मन में एक डर पैदा अवश्य हो जाता है लेकिन इन विषयों में डर कि नहीं, स्वीकार्यता और इंसानियत की आवश्यकता होती है।
कानून बदलने के बाद एक बदलाव आया है, वो यह कि LGBTQ वर्ग ने खुद की पहचान को स्वीकारना शुरू कर दिया है, लेकिन उनके दोस्त, उनके घरवाले, कार्यस्थल वाले आदि उन्हें स्वीकारें, इसके लिए हमें छोटे छोटे बदलाव करने होंगे जैसे हमें बचों की किताबों में सिर्फ “This is a Girl” , “This is a boy” नहीं लिखना होगा बल्कि हमें यह भी लिखना होगा “This looks like is a boy but feels like a girl”
हमें हमारी फिल्मों, किताबों में, कहानियों में, सिर्फ लड़के-लड़कियों की कहानी नहीं दिखानी चाहिए, हमें और भी ऐसे छोटे छोटे बदलाव करने पड़ेंगे। हमें यह समझना होगा कि समाज का एक बड़ा वर्ग LGBTQ के प्रति ऐसा अजीब व्यवहार क्यूँ करते हैं? ऐसा इसीलिए किया जाता है क्यूंकि हमारे यहाँ शुरू से यह नहीं बताया गया था कि लड़के और लड़कियों की तरह ही LGBTQ भी होते हैं।
LGBTQ वर्ग की लड़ाई अभी भी बहुत लम्बी है उनको अपने सामान्य अधिकारों को पाने के लिए भारत में अभी बहुत संघर्ष करना बाकी है। UN की रिपोर्ट्स में साफ़ कहा गया है की भारत में LGBTQ के सफर में अभी बहुत कांटे हैं और उनको उनके अधिकारों को दिलाने की ज़िम्मेदारी समाज के पढ़े-लिखे वर्ग को लेनी होगी।
LGBTQ को भी शिक्षा दिलानी होगी सबसे पहला अधिकार है जीवन का और दूसरा अधिकार है शिक्षा का तो समाज के युथ को यह ज़िम्मेदारी लेनी होगी की आगे की जनरेशन के बच्चों को बचपन से यह पता हो की वर्ग भी होता है और वो उनके साथ उतना ही सहज व्यवहार करें जैसा लड़के, लड़कियों के साथ करते हैं।
मूल चित्र : Canva
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