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आज उसे वो गुज़रे हुए तमाम पल याद आ रहे थे जब उसने अमन की खातिर, उसके साथ की ख्वाहिश की वजह से अपने माँ-बाप का घर छोड़ने का फैसला किया था।
वो रो रही थी, ज़ार-ओ-कतार और बेशुमार लेकिन उसका कोई गम-गुसार नहीं था, कोई आंसू पोंछने सामने नहीं आया, किसी ने ये नहीं पूछा कि इस बेतहाशा रोने की वजह क्या है? कोई पूछता तो वो बताती भी क्या? क्या कहती कि जिस शख्स पर एतमाद किया उसी ने उसके भरोसे को रेज़ा-रेज़ा कर दिया, तोड़ दिया, चकनाचूर कर दिया?
जिस शख्स के भरोसे उसने अपनी एक अलग दुनिया बसानी चाही उसी ने उसके तमाम सपने उसकी आँखों से नोंच फेंके, उसकी दुनिया को ऊपर से नीचे तक हिला दिया, उसका मान तोड़ कर रख दिया?
आज उसे वो गुज़रे हुए तमाम पल याद आ रहे थे जब उसने अमन की खातिर, उसके साथ की ख्वाहिश की वजह से अपने माँ-बाप का घर छोड़ने का फैसला किया था। अमन से शादी करने का फैसला किया था। माँ-पापा शादी के लिए राज़ी न थे और उसे अमन के अलावा किसी का साथ मंज़ूर न था।
इस कशमकश भरी कैफियत से उबरते हुए उसने अपनी ज़िन्दगी का इतना बड़ा फैसला किया जिसमें उसके माँ-बाप, भाई-बहन कोई शामिल न था। अपनी बाकी ज़िन्दगी अमन के साथ बिताने का फैसला।
अमन एक अच्छा शौहर साबित हुआ, उसका ख्याल रखता था, प्यार भी करता था, पर कुछ कमी थी। शायद वो उसे भरोसे के काबिल नहीं समझता था, उसके फैसलों को कोई अहमियत नहीं देता था, बल्कि किसी फैसले में उसकी राय ही नहीं लेता था। ये बात उसे समझ नहीं आती थी।
जो शख्स शादी से पहले उसके ज़हानत की दाद देते नहीं थकता था, जो उसकी दानिशमंदी भरी बातों का कायल था, वो अचानक से इतना कैसे बदल सकता था? अमन के अम्मी-अब्बू उससे नाराज़ नहीं थे, बहु का भी ख्याल रखते थे, अमन की बहनें भी रौशनी को पसंद करती थीं, बस एक अमन ही था जिसने प्यार तो दिया पर अपना भरोसा उसे नहीं सौंपा और आज उसे इस बात का एहसास हुआ कि क्यूँ नहीं सौंपा?
शादी के तीन साल बाद उसे भी माँ बनाने का एजाज़ हासिल हुआ, एक छोटी सी गुड़िया को रब ने उसके दामन में डाल दिया, वो खुश थी, सब खुश थे, अमन भी खुश था। अमन उसका अब भी ख्याल रखता था, उससे ज्यादा अपनी बच्ची का।
वो भी ऐसा ही एक खुशनुमा पल था जब वो दोनों मुस्तकबिल के बारे में सपने संजो रहे थे जब अमन ने कहा कि वो चाहता है कि उसकी अम्मी मुस्तकिल उनके साथ ही रहने लग जाएं। रौशनी भी इस ख्याल से खुश हुई। उसकी सास एक अच्छे मिजाज़ की सुलझी हुई औरत थीं। उनको देख कर रौशनी को अपनी अम्मी का ख्याल आता था, वैसे ही बात करने का लहजा और समझदारी भरी बातें।
पर अमन का नजरिया तो कुछ और ही था, और यही उसके तकलीफ कि वजह थी। अमन चाहता था कि उसकी बच्ची की परवरिश में ज्यादा हाथ उसकी अपनी माँ का हो, रौशनी का कम। अमन ने कहा “मैं चाहता हूँ कि फिज़ा की तरबियत मेरी माँ के हाथों हो जिस तरह से उन्होंने मेरी बहनों को पाला, उनकी परवरिश और तरबियत की, क्यूंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी भी उसी तरह मेरी इज्ज़त को रौंदते हुए किसी और का साथ थाम ले जिस तरह तुमने अपने अपने माँ-बाप कि इज्ज़त का पास न रखते हुए किया।”
अलफ़ाज़ थे या नश्तर जो उसके दिल में चुभ रहे थे, उसके कानों में पिघला हुआ सीसा बनकर दर्द दे रहे थे। कैसी चुभन थी जो कम होने का नाम ही न ले रही थी। ये तो वही बात हुई कि जिसके खातिर उसने अपनी कश्तियाँ जलाईं उसी ने बीच मझधार डुबो दिया!
मूल चित्र : Pexels
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