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फिल्म चमन बहार – लड़कों के प्यार में एक लड़की की मर्ज़ी कितने मायने रखती है?

फिल्म चमन बहार की कहानी में एक लड़की की  मर्ज़ी जाने बगैर सब उससे एक तरफा प्रेम करने लगते हैं और अगर उसमें उनको रिजेक्शन मिल जाए तो....

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फिल्म चमन बहार की कहानी में एक लड़की की  मर्ज़ी जाने बगैर सब उससे एक तरफा प्रेम करने लगते हैं और अगर उसमें उनको रिजेक्शन मिल जाए तो….

अपूर्वधर बडगैयां जो प्रकाश झा के असिस्टेट रह चुके है ने बतौर लेखक और निर्देशक अपनी पहली फिल्म चमन बहार से शुरूआत की, जो नेटफिलक्स पर रिलीज हुई है। भारत में कमोबेश हर कस्बों में शहरी लड़की के प्रति लड़कों का एक अलग दुनिया-संसार होता है। इसी आकर्षण को अपूर्वधर बडगैयां ने अपनी फिल्म चमन बहार का केंद्र बनाया है।

यह तो तय है कि कहानी को अपूर्वधर बडगैयां ने जिस तरह से पिरोया है वह उन सभी लड़कों को अपना दर्शक बना लेगी। जो इसी फेन्टेन्सी में छोटे शहरों और कस्बों में सिगरेट-पान-गुटखा और चाय के दुकान में कभी-कभी अपना वक्त गुजारा करते थे या गुजारा करते हैं। परंतु, इस फैन्टेसी का पूरा सच यह है कि यह छोटे शहरों और कस्बों में रहने वाली लड़कियों की वह सारी आज़ादी छीन लेती हैं।

जो वह चाहती है पर हासिल नहीं कर पाती क्योंकि एक तरफा प्रेम करते हुए उसको ताड़ने वाले ही उसके गुलामी का कारण बन जाते हैं। भारत के हर छोटे शहर-कस्बों में माता-पिता अपने लड़कियों के लिए मान-मर्यादा से जुड़ी एक अलग ही तरह के समस्या से जीते हैं, जिससे वह कभी मुक्त ही नहीं हो पाते हैं। उनको इस चिंता से मुक्त नहीं होने देती है लड़कों का लड़की के प्रति आकर्षण और उससे जुड़ी हुई फैन्टेसी।

पूरी फिल्म में उस लड़की का कोई भी संवाद नहीं है, जिसके दीवाने शहर के पूरे लड़के हैं

पूरी फिल्म में उस लड़की का कोई भी संवाद नहीं है, जिसके दीवाने शहर के पूरे लड़के हैं। उसकी चुप्पी ही फिल्म के सारे संवादों पर भारी है क्योंकि सच्चाई तो यही है लड़की की मर्जी जाने बगैर सब उससे एक तरफा प्रेम करने लगते है और अगर उसमें उसको रिजेक्शन मिल जाए तो फिर वह लड़की को चरित्रहीन बताने से भी गुरेज नहीं करते हैं।

लड़के की मनोदशा और एकतरफा प्रेमकहानी को बयां किया है

वर्ष 2016 में सोनम गुप्ता बेवफा है प्रकरण सुर्खियों में आया था। किसी सिरफिरे आशिक ने नोट पर लिखा था कि सोनम गुप्ता बेवफा है। उस प्रकरण का इस्तेमाल लेखक ने कहानी में बखूबी किया है। उन्होंने उसे चटपटा न बनाकर लड़के की मनोदशा और एकतरफा प्रेमकहानी को बयां किया है। हालांकि इन हालातों में लड़की और परिवार की मनोदशा का चित्रण भी बेहतर तरीके से हो सकता था। जिसमें अपूर्वधर बडगैयां सफल नहीं हो सके है।

फिल्म चमन बहार की कहानी

फिल्म ‘चमन बहार’ की कहानी छत्तीसगढ़ के छोटे से कस्बे लोरमी में गढ़ी गई है। अपनी पहचान बनाने को आतुर चपरासी का बेटा बिल्लू (जितेंद्र कुमार) पान की दुकान चमन बहार नाम से खोलता है। शहर के बाहरी इलाके में होने के कारण वहां भीड़भाड़ नहीं होती। उसकी जिंदगी में उस समय बहार आ जाती है जब दुकान के सामने स्थित मकान में जूनियर इंजीनियर अपने परिवार साथ रहने आते हैं।

उनकी बेटी रिंकू ननोरिया (रितिका बदियानी) इलाके के लड़कों का आकर्षण का केंद्र बन जाती है। उसकी झलक पाने के लिए इलाके के लड़कों से लेकर युवा राजनेता   और वन विभाग के अधिकारी का लड़का तक पान की दुकान पर आने लगते हैं।  बिल्लू मन ही मन रिंकू से प्यार करने लगता है। एक दिन हिम्मत करके आई लव यू का कार्ड उसकी बालकनी में फेंकने का प्रयास करता है जो उसके पिता के हाथ लग जाता है।

फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ और ‘पंचायत’ वेब सीरीज में नजर आए जितेंद्र कुमार ने साधारण लड़के को परदे पर सच्चाई और सही इमोशन के साथ व्यक्त किया है। सहयोगी कलाकारों की बात करें तो आग में घी डालने का काम डालने वाले सोमू (भुवन अरोड़ा) और छोटू (धीरेंद्र तिवारी) की जोड़ी की केमिस्ट्री बढिय़ा है। फिल्म का गीत संगीत साधारण है। कुछ संगीत छत्तीसगढ़ी आदिवासी लोक परंपरा की लगती है जिसको समझने की क्षमता अधिक लोगों के पास नहीं है पर वह मधुर लगते है।

फिल्म पुरुष समाज पर चोट करने की बस कोशिश करती है

कुल मिलाकर पूरी फिल्म पुरुष समाज पर चोट करने की कोशिश तो करती है पर उसमें कामयाब नहीं हो पाती है। वह सिर्फ एक सामाज़िक फलसफे का बयांन करती है जहां छोटे शहर और कस्बों में होता है। फिल्म की यह खूबी कहीं जा सकती है कि वह उपदेशात्मक नहीं होती है वह यथास्थिति को जस का तस दर्शकों के सामने रख देती है।

मूल चित्र : YouTube 

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