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कई बार दिलों में दूरी कम करने के लिए घरों में दूरी बनानी पड़ती है…

बिना पति के जीवन का इतना लम्बा सफर तय करना आसान नहीं था लेकिन अपनी दृढ़ता के कारण रूकमणि अपने बेटों को संस्कारी बनाने में सफल रही।

बिना पति के जीवन का इतना लम्बा सफर तय करना आसान नहीं था लेकिन अपनी दृढ़ता के कारण रूकमणि अपने बेटों को संस्कारी बनाने में सफल रही।

“मां आप क्यों परेशान हो रही हो? नीतू जुबान की तेज है लेकिन दिल की बुरी नहीं है। आप तो जानती हैं ना उसे? एक मिनट में नाराज हो जाना और फिर हंसना मुस्कराना। मैं समझा लूँगा उसे, आप सो जाओ हम कहीं नहीं जायेगें”, रूकमणि जी के बडे़ बेटे राघव ने कहा।

राघव अपने नाम की तरह शान्त और सौम्य स्वभाव का था, लेकिन उसकी पत्नी नीतू का स्वभाव बिल्कुल उसके विपरीत था। राघव के छोटे भाई नमन की शादी नहीं हुई थी, तब तक तो रूकमणि जी और राघव नीतू की गलतियों को नजरंदाज कर घर में शान्ति और प्यार का माहौल बनाने में सक्षम थे। लेकिन जब से घर की छोटी बहु भावना आई है, तब से नीतू को संभालना मुश्किल होता जा रहा है।

रूकमणि जी बहुत ही कम उम्र में विधवा हो गई थीं। दोनों बेटों को पाल पोसकर बड़ा करने में बहुत ही संघर्ष किया था उन्होंने। बिना पति के जीवन का इतना लम्बा सफर तय करना आसान नहीं था लेकिन उनकी दृढ़ता और मेहनती स्वभाव के कारण वह अपने बेटों को शिक्षित और संस्कारी बनाने में सफल रही। बड़ा बेटा राघव प्रोफेसर था और छोटा बेटा इंजीनियर था। दोनों बेटे अपनी मां से बेहद प्रेम करते थे। रूकमणि जी भी बहुत खुश हुआ करती थी अपने हरे भरे संसार को देखकर।

वे बस इतना चाहती थीं कि वे जब तक वह इस दुनिया में हैं उनके दोनों बेटे एक साथ रहें। लेकिन बड़ी बहु नीतू का व्यवहार थोड़ा अलग था। वह चाहती थी उसका अलग घर हो और वह अपने बच्चों के साथ वहीं रहे। राघव ने एक फ्लैट ले लिया था अपने विवाह से पहले, जिसे किराये पर उठा दिया था। नीतू को यह बात पता थी और घर में कोई भी लड़ाई-झगड़ा होता वह उस फ्लैट में जाकर रहने के लिए जिद करती राघव से। राघव बहाने बनाकर नीतू को शान्त कर देता क्योंकि वह चाहता था कि मां की इच्छा पूरी करे।

आज भी दोनों बहुओं में झगड़ा हो गया था और बड़ी बहु ने घर छोड़कर जाने की धमकी दे दी थी।  छोटी बहु भी परिवार की शान्ति और ख़ुशी के लिए अपनी जेठानी द्वारा किया हर बुरा व्यवहार सह लेती। रूकमणि जी नीतू के गुस्सैल होने के कारण उससे तो कुछ ना कह पाती लेकिन भावना के शान्तिप्रिय होने के कारण उसे ही चुप रहने के लिए कह देतीं।

आज भी नीतू ने भावना के मायके पक्ष की बेइज्जती कर उसे खूब खरी खोटी सुनाई थी। भावना वैसे तो हमेशा शान्त हो जाया करती थी लेकिन आज उसके सब्र का बांध टूट गया और वह जबाब देने में नहीं चूकी। मनन ने भावना को डांट लगाई और हाथ छोड़ने की कोशिश की वो तो मां ने रोक दिया। उन दोनों का भी खूब  झगड़ा हो गया क्योंकि मनन राघव के जितना शान्त नहीं था। घर में हो रही लड़ाई देख बच्चे भी सहमे-सहमे से हो गए।

रूकमणि जी रात भर नहीं सोयीं। दोनों बेटों के कमरों में से चीखने चिल्लाने की आवाजें उनके मन में कील की तरह चुभ रही थीं। राघव का उदास चेहरा उनके मन पर कठोराघात कर रहा था। वह पूरी रात  यही सोचती  रही – आज मनन ने छोटी बहु पर हाथ उठाने की कोशिश की जबकि उसकी कोई  गलती भी नहीं थी आखिर कब तक सहे वह बड़ी बहु के ताने? बड़ी बहु ने भी हमेशा के लिए मायके जाने की धमकी दी। दोनों बेटों के जीवन में कलह ने घर कर लिया है। दोनों बेटे जी जान से कोशिश कर रहे हैं कि साथ में रहने की। अपनी मां की इच्छा पूरी करने में लगे हैं लेकिन कहीं ऐसा ना हो जाये कि साथ रहने की जदोजहद में इन सबमें आपस में दूरियां आ जाएँ।

रूकमणि जी रात भर सोचती रहीं और अगले दिन सुबह सुबह घर से निकल गई बिना किसी को कुछ बताये। दोनों बेटे और बहुयें जब अपने कमरों से निकले और मां को घर में ना पाया तो परेशान हो गये। आस पड़ोस में देखा। पास के मंदिर में देखा लेकिन रूकमणि जी कही दिखाई नहीं दीं। परेशान और हताश दोनों भाई घर लौटे तो मां को घर की देहरी पर बैठा पाया। मां को सामने देख राघव और मनन दौड़कर उनको गले लगाकर उनके पास बैठ गये और बोले, “कहां चली गई थीं मां? आप एक बार बता तो देती, पता है कितना घबरा गये थे हम?”

“नहीं बच्चों घबराने की जरुरत नहीं है, घर में जो भी समस्या हो रही है मैं तो उसका समाधान खोजने गई थी”, रूकमणि जी ने कहा, तो राघव ने आश्चर्य से पूछा, “हम समझे नहीं मां।”

रूकमणि जी ने राघव से कहा, “राघव मैं तेरे उस फ्लैट पर गई थी बेटा। वहां रह रहे किरायेदार से मिलने। मैंने उनसे फ्लैट खाली करने के लिए बोल दिया है। एक हफ्ते में वे फ्लैट खाली कर देगें।  उसके बाद तुम बड़ी बहु और बच्चों को लेकर वहां रहने चले जाना।”

“नहीं मां मैं कहीं नहीं जाऊंगा। मैंने कहा था ना आपसे कल? आप क्यों परेशान हो रही हो?” राघव ने कहा।

“राघव मैंने तुमसे पूछा नहीं है, बताया है। आज तक हर बात मानी है तुमने मेरी। ये भी मान लो।  मेरा ये फैसला हम सबके लिए उचित है। मुझे घरों में दूरी मंजूर है बच्चों, लेकिन दिलों में दूरी हरगिज़ मंजूर नहीं। हम सब एक ही शहर में हैं। रोज मिलना मिलाना रहेगा और प्यार भी बना रहेगा। तुम लोग हंसते मुस्कराते रहो। बस यही चाहिए मुझे। और ये फैसला मैंने बहुत सोच समझकर लिया है। अब चलो उठो, नाश्ता करते हैं भूख लगी है मुझे बहुत तेज।”

रूकमणि जी दोनों बेटों का हाथ पकड़कर अन्दर ले गयीं। आज उनके मुख पर कुछ अलग ही आभा थी। वो खुश थी क्योंकि अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए आज फिर उन्होंने एक मजबूत फैसला ले लिया था।

मूल चित्र :  Canva

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