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ग्रामीण लोग आज भी समलैंगिकता को भूत-प्रेत से जुड़ा मानते हैं

लोग समलैंगिकता का मतलब ही नहीं समझते कि यह क्या तथ्य है, ग्रामीण लोग इस बात को देवी देवता और अंधविश्वास से जोड़ कर देखते हैं।

लोग समलैंगिकता का मतलब ही नहीं समझते कि यह क्या तथ्य है, ग्रामीण लोग इस बात को देवी देवता और अंधविश्वास से जोड़ कर देखते हैं।

हमारे देश में समलैंगिक लोगों को न्याय मिला यह एक बहुत ही सौभाग्य की बात है, यह केवल समलैगिक लोगों की जीत नहीं यह समानता की जीत है, यह एकता की जीत है। यह जीत ऐतिहासिक है। भारत में समलैंगिक सेक्स को कानूनी बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया गया है।

ग्रामीण भारत में एलजीबीटी समुदाय के सदस्यों के लिए वास्तविकता अलग है

देश भर के शहरों में LGBT समूह सत्तारूढ़ ‘नए युग की शुरुआत’ के रूप में मनाते रहे हैं। लेकिन ग्रामीण भारत में एलजीबीटी समुदाय के सदस्यों के लिए वास्तविकता अलग है। उनका मानना ​​है कि उनके प्रति प्रतिगामी दृष्टिकोण को बदलने में लंबा समय लगेगा।

ग्रामीण लोग समलैंगिकता का मतलब ही नहीं समझते

लोग समलैंगिकता का मतलब ही नहीं समझते कि यह क्या तथ्य है, यह कैसा सच है? इस बात के लिए कौन सार्थक है और इसका वैज्ञानिक कारण क्या है। ग्रामीण लोग इस बात को देवी देवता और अंधविश्वास से जोड़ कर देखते हैं।

कोई समलैंगिक पुरुष है और वह महिलाओं की तरह व्यवहार करता है, तो उसको गाँव के लोग समझते हैं उसके ऊपर प्रेत का वास है, जो महिला है, इसलिए वह ऐसा कर रहा है। और अगर किसी समलैंगिक महिला ने ऐसा किया या बाल छोटे रखे और लड़कियों के खेल में रूचि लेने के बजाए लड़कों के साथ खेलने में रूचि दिखाई तो वह उसको भूत या प्रेत का वास बताने लगते हैं। उस लड़की पर देव आते हैं और लोगों का जमवाड़ा इकट्ठा हो जाता है।

ज़रा सा ग़ौर करते हैं, हम उस समलैंगिक पुरुष या महिला की जगह ख़ुद को रखते हैं, और थोड़ा सोचते हैं की अगर हमारे साथ ऐसा व्यवहार हो रहा हो और हमको कोई समझ नहीं पा रहा हो तो कैसा महसूस होगा? बिल्कुल ऐसा लगेगा जैसे मैं किसी नर्क का दृश्य देख रहा हूँ।

गाँव में  इसके प्रति कड़ा रुख़ अपनाया जाता है

गाँव में समलैंगिक पुरुषों के साथ कड़ा रुख़ अपनाया जाता है, गाँव के पुरोहितों का मानना है कि ऐसे पुरुष को इलाज की भी ज़रूरत पड़ सकती है और या फिर इनको कई दिनों तक कमरों में बंद किया जाना चाहिए। और ऐसा होता भी है।

समलैंगिक महिला के साथ तो बलात्कार तक किया जाता है, उसको महसूस करवाया जाता है कि वह किस बात के लिए धरती पर आई है। उसको बलात्कार एक पाठ के रूप में समझाया जाता है। यह कितना अन्यायपूर्ण तथ्य है, जो किसी की भी रूह को अंदर तक तोड़ देता है।

वास्तव में शहरी जीवन की अपेक्षा ग्रामीण जीवन शैली में एक समलैंगिक होना किसी बड़े कलंक की भांति ही है। शहरी भारत में, जहां सोशल मीडिया और कॉरपोरेट क्षेत्रों की पहलों ने एलजीबीटी अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाई है।

समलैंगिक महिलाओं को ज़्यादा मुश्किलें हैं

ट्रांसजेंडर लोगों या समलैंगिकता, महिलाओं की तुलना में समलैंगिक पुरुषों के लिए अधिक उत्साह देखने को मिलता है क्योकिं कहीं न कहीं उनके अंदर आत्मविश्वास होता है। जबकि महिलाओं को यहाँ भी असमानता का चेहरा देखने को मिलता है और अगर बात करें ग्रामीण महिलाओं की तो उनको तो वैसे भी पुरुषवादी समाज दुनिया से काट कर रखते हैं।

शहरी भारत की तरह ग्रामीण भारत में ऐसे आयामों की कमी है, जो उनके समाज में जागरूकता का काम करें। शहर में लोग ऑनलाइन और सोशल मीडिया की सहायता से अपनी वास्तविकता लोगों तक पहुँचा देते हैं, मगर ग्रामीण क्षेत्र में कोई नहीं जो उनको सुन सके और समझ सके।

ग्रामीण भारत में परिवारों के पास इससे निपटने के अपने तरीके हैं

शहरों में आज कल ट्विटर पर समलैंगिकता अभिमान परेड, मीट-अप और कई तरह की चर्चा होती हैं, लोग अपनी कुंठा को व्यथित कर के कहीं न कहीं अपने मन को शांत कर लेते हैं मगर इस तथ्य से दूर, ग्रामीण भारत में परिवारों के पास समलैंगिकता से निपटने के अपने तरीके हैं। जो घृणित हैं और भयावाह भी।

कुछ हिस्सों में, गुप्त हत्याओं की योजना बनाई जाती है ताकि एक युवा समलैंगिक व्यक्ति के जीवित रहने का कोई भी तथ्य बाकी न रहे। या फिर एकमात्र तरीका यही माना जाता है कि वह शहर में भाग जाए, या उसको गाँव से निकाला जाता है। भारत जैसे देश में 70% क्षेत्र तो ग्रामीण क्षेत्र ही है और बाकी शहरी।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि समलैंगिक लोग प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं और कुछ तो यह समझ ही नहीं पाते होंगे कि वह प्राकृतिक तौर पर ही ऐसे हैं या उनको कोई बीमारी है। कुछ बचे हुए लोगों को लगता है समलैंगिक होने से एड्स जैसी बीमारी होने का ख़तरा अधिक रहता है। ऐसे ही बहुत सारे निरर्थक विचार हैं जिनका कोई मूल नहीं और न ही कोई उद्देश्य।

समलैंगिकता और इसकी पहचान पहले से कहीं अधिक भारतीय युवाओं को स्वीकार्य हो सकती है

आज, समलैंगिकता और इसकी पहचान पहले से कहीं अधिक भारतीय युवाओं को स्वीकार्य हो सकती है, लेकिन परिवार, घर और स्कूल की सीमाओं के भीतर, अपनी लैंगिकता और खुले तौर पर अपने लिंग के विकल्प को स्वीकार करने की स्वतंत्रता अभी भी LGBTQ (समलैंगिक) लोगों के लिए एक निरंतर संघर्ष बनी हुई है।

हम सब को मिलकर उनकी आवाज़ बनना है, इसलिए नहीं के वह समलैंगिक हैं, बल्कि इसलिए के हम और हमारा संविधान हम सब को समानता के साथ जीना सिखाता है। हम सब को इस बात पर मुहिम चलानी होगी और ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करना होगा। उनको समझना भी होगा और समझाना भी।

अन्याय किसी भी प्रकार का हो, असंवैधानिक है और हमको किसी को भी इस तथ्य को नज़रन्दाज़ नहीं किया जाना चाहिए। अब बारी है सोचने की और कुछ कर दिखाने की, जो वाकई में प्रभावशाली हो।

मूल चित्र : YouTube

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