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होमोफोबिया दो शब्दों से मिलकर बना है जो दो शब्दों का युग्म है, मगर न जाने कितनी ही तक़लीफ़ों का और असमानता का एक अंबार लिए है।
होमोफोबिया दो शब्दों से मिलकर बना है। यह शब्द कहने को दो शब्दों का युग्म है, मगर न जाने कितनी ही तक़लीफ़ों का और असमानता का एक अंबार लिए है।
होमो+फोबिया समलैंगिक लोगों के लिए के लिए या उनसे असमानता महसूस करना और उनसे नफ़रत करना आज कल की भाषा में होमोफोबिया कहलाता है। यह पूरी तरह से लोकतंत्र का उल्लंघन करता है। हमारा संविधान असमानता के विरोध में है, मगर आम लोगों को कौन समझाए और उनको कौन बताए समलैंगिक लोग कोई अन्य ग्रह के प्राणी नहीं बल्कि हमारे जैसे ही हैं और वह भी नागरिक हैं हमारी तरह हैं, और हमारे जैसे ही अधिकार समलैंगिक लोगों को भी प्राप्त हैं।
LGBTQI/एलजीबीटीक्यूआई लोग अभी भी अपने जीवन में कई तरह की परेशानियों से जूझ रहें हैं, अभी भी 69 देश ऐसे हैं जहाँ पर समलैंगिकता अपराध है, और कई लाख समलैंगिक लोग इस भय से जी रहे हैं। देखा गया है कि विषमलैंगिक लोग जो आजकल खुद को नए नाम से पुकारते हैं स्ट्रेट यह लोग खुले तौर पर समलैंगिकता को अपराध मानते हैं और किसी भी समलैंगिक लोगों से ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कोई वह कोई अपराधी हों, और LGBTQI से सम्बंधित लोगों को अपराध बोध लगने लगता है। समाज सरासर ऐसे लोगों का शोषण कर रहा है, और समलैंगिक लोग पहले से ही समाज में फैली अमानवता के शिकार हो रहे हैं।
कई मुद्दे ऐसे हैं जो समलैंगिक लोग होमोफोबिक के गंदे जाल में फँस कर कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। होमोफोबिक हमारे समाज में कई तरह की कृतियों को जन्म दे रहे हैं।
सबसे बड़ी समस्या यही है कि समाज हिंसा के लिए सम्मुख रूप से जिम्मेदार है, और शोषित वर्ग के लोगों का शोषण किया जाता रहा है, अब यह हिंसात्मक हो गया है। लोग प्रताड़ित हो रहे हैं और सामने आकर LGBTQ लोगों का बहिष्कार कर रहे हैं, जो बहुत घातक सिद्ध होगा। हिंसा किसी भी कीमत पर किसी के लिए भी जायज नहीं है।
समलैंगिक लोगों को खुद को प्रूव करने को कहा जाता है, जिस वजह से वह लोग असहज हो जाते हैं, और ख़ुद को क़ैद में जकड़ा हुआ पाते हैं, और इनसिक्योर हो जाते हैं, जिससे इनके अंदर आत्मविश्वास की भारी कमी देखने को मिलती है और वहीं यह समुदाय ख़ुद को समाज से कटने के लिए मजबूर हो जाता है, और एकल जीवन व्यतीत करने में यकीन करने लगते हैं।
कभी कभी दखने में आया है कि इस समुदाय के लोगों को नौकरी का बहिष्कृत रूप देखने को अक्सर मिलता है, यह भी होमोफोबिक समाज का एक परिणाम है, लोगों का या तो नौकरी नहीं मिलती और अगर मिलती भी है तो उनको उस नौकरी से निकाल दिया जाता है, जो वाकई में दर्दनाक होता है। समाज में यौनिकता की पहचान इतनी भी ज़रूरी नहीं कि आप इसके आधार पर किसी की रोज़ी रोटी छीन लें।
परिवार तो किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे पहली इकाई होती है अगर वहाँ से भी निराशा हाथ लगेगी तो क्या होगा? समाज की बात तो दूसरे नम्बर पर आती है, जब परिवार की स्वीकृति ही नहीं मिलेगी तो लोग आगे कैसे बढ़ेंगे? उनको समाज भी तुच्छ नज़रों से तौलता है, कहा जाता है जब परिवार ने नहीं संभला तो हम क्या कर सकते हैं। यह भी बहुत तुच्छ प्रकार का परिणाम है होमोफोबिक समाज का।
ऐसे न जाने कितनी ही वजह होंगी जो एक समलैंगिक व्यक्ति झेलता आ रहा है, चाहे बचपन में विद्यालय और बड़े होने और कॉलेज के ताने हों या शादी के लिए घरवालों के दबाव। जीवन हमेशा अपने उसूलों पर चलना चाहिए, बशर्ते वह नैतिकता और ईमानदारी की चादर में लपेटा हुआ हो।
किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह किसी दूसरे व्यक्ति के साथ भेदभाव या धमकाने, या उन्हें भावनात्मक या शारीरिक रूप से चोट पहुंचाने का अधिकार रखता हो।
•LGBTQ लोगों का वर्णन करने के लिए कभी भी नकारात्मक या आक्रामक भाषा का उपयोग न करें।
•इस बात से सावधान रहें कि कभी भी रफ़ भाषा का प्रयोग न करें और उनको किसी भी बात के लिए दोषी न ठहराएं सिर्फ इसलिए के वे समलैंगिक हैं – जैसे कि “वह तो समलैंगिक है” वह तो गे है आदि- यह बात दूसरों को चोट पहुंचा सकती है।
•ऐसी किसी भी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए कि LGBTQ लोगों के बारे में कई रूढ़ियाँ हैं या उनके बारे में धारणाएँ हज़ार धारणाएं हैं, क्योंकि रूढ़िवादी सोच का कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं होता।
•अपने स्वयं के यौन अभिविन्यास और पहचान की परवाह किए बिना LGBTQ समुदाय के एक मुखर समर्थक बनें। इस समुदाय को सपोर्ट करें और इसको साधारण बनाने के लिए मुहिम में भाग लें।
•LGBTQ लोगों के लिए बताएं कि आपके अपने जीवन में कई ऐसे मित्र हैं और सहयोगी हैं जो इस समुदाय के साथ बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और उनसे सामान्य व्यवहार करते हैं।
•LGBTQ मुद्दों पर खुद को शिक्षित करें। एलजीबीटीक्यू लोगों के फैसलों का सम्मान करें।
•याद रखें कि LGBTQ होना किसी व्यक्ति की जटिल पहचान और जीवन का सिर्फ एक हिस्सा मात्र हो सकता है मगर इस बात से किसी के चरित्र का हनन नहीं किया जा सकता और न आप यह निर्धारित कर सकते ।
•अपने LGBTQ दोस्तों या परिवार के सदस्यों के साझेदारों में उतनी रुचि दिखाएं जितना आप किसी विषमलिंगी या स्ट्रेट व्यक्ति के साथी में दिखाते हैं।
•जब कभी अन्य लोग होमोफोबिक या बाइफोबिक हो रहे हों, जैसे कि आपत्तिजनक चुटकुले बनाना, नकारात्मक भाषा का उपयोग करना, या अपनी यौन अभिविन्यास या पहचान के कारण किसी को धमकाना या परेशान करना, तो आप अपनी सुरक्षित नीतियों के तहत बोलना सीखें उनको समझाएं और अपनी चुप्पी तोड़ने के लिए ख़ुद को शाबाशी दें।
और अंत में सभी लोगों के लिए एक संदेश, के लोगों से कैसा डरना, और कैसा भय और नफ़रत। ज़िन्दगी बहुत छोटी है किसी से नफ़रत के लिए अपने वक़्त को ज़ाया न करें और उन लोगों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं जो हाशिये पर आंके जाते हों, जिनको नफ़रत की नज़रों से देखा जाता है।
यह होमोफोबिया है क्या? कभी इसकी जड़ में जाकर देखिए, और इस समुदाय के लोगों में अपने परिवार की छवि देखें, क्या आपके बच्चे या कोई रिश्तेदार अगर ऐसा है तो क्या उसको भी आप ऐसे ही दरकिनार करेंगे? नहीं न? तो फिर आप क्यों अपनी नफ़रत, द्वेष की भावनाओं को ऐसे समुदाय के लोगों के लिए मन में पनपने ही क्यों देते हैं?
इस अंतराष्ट्रीय प्राइड माह पर यह प्रण लें कि LGBTQ समुदाय को सपोर्ट करें और उनके उद्धार के लिए अपनी नीतियों का निर्धारण करें।
नोट : जून प्राइड मंथ है, और हम इसे चिह्नित करने के लिए लेखों की एक श्रृंखला रख रहे हैं, जिसमें एलजीबीटीक्यूए + समुदाय और उनके सहयोगियों की आवाज़ें शामिल हैं, जिनमें विमेंस वेब कम्युनिटी भी शामिल है। ये लेख उसी श्रृंखला की एक कड़ी है।
मूल चित्र : Canva
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