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चौंक मत जाना, सिर्फ पहचान लेना, मेरा रास्ता तूने लिखा था ना...अपनी कलम से, तो क्यों मुझे कुचला गया यहाँ पे?
चौंक मत जाना, सिर्फ पहचान लेना, मेरा रास्ता तूने लिखा था ना…अपनी कलम से, तो क्यों मुझे कुचला गया यहाँ पे?
अगर तू है, तो देख मुझे अगर सुनता है अभी भी, तो सुन मुझे। वही हूँ क्या मैं? जिसे तूने बनाया था।
चौंक मत जाना, सिर्फ पहचान लेना। मेरा रास्ता तूने लिखा था ना… अपनी कलम से तो क्यों मुझे कुचला गया यहाँ पे।
मैं हूँ धरा का अनमोल रतन तूने कहा था ना… फिर क्यों मुझे बेचा गया यहाँ पे।
मेरे बिन समस्त जग है अधूरा, पुरुष भी आधा सा… तो क्यों मुझे कैद किया गया यहाँ पे।
तेरा ही तो विस्तार हूँ मैं, नए जन्म का आधार हूँ मैं फिर मुझे क्यों अधमरा कर दिया यहाँ पे।
दुर्गा, काली और ना जाने कितने स्वरूप बनाये तूने फिर क्यों मुझे कुरूप कर दिया यहाँ पे।
कुछ और तुझे क्या कहूँ तू तो अन्तर्यामी है सब पता है तुझे पर, करता कुछ नहीं।
मैं ना सीता हूँ, जो धरती में समा जाती। न ही अहिल्याबाई, जो पत्थर बन जाती।
है अस्तित्व कायम तेरा आज भी तो मेरी एक बात सुन ले। चाहिए पुरुष तुझे या मैं, कोई एक चुन लें।
तेरी सबसे उत्कृष्ट कला का लोगों को यहाँ भान नहीं, ना मिली थी कदर मुझे यहाँ अब मेरा यहाँ कोई मान नहीं।
मूल चित्र : Canva
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