कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
एक बहू के रूप में, एक महिला के पास 'घर चलाने' की शक्ति नहीं होती है और वह भी पितृसत्ता के कारण उस पर होने वाले अत्याचारों का शिकार होती है।
एक बहू के रूप में, एक महिला के पास ‘घर चलाने’ की शक्ति नहीं होती है और वह भी पितृसत्ता के कारण उस पर होने वाले अत्याचारों का शिकार होती है।
पड़ोस की आंटी से लेकर हमारी अपनी माँ तक हमारे समाज में कई महिलाएँ हैं जो अन्य महिलाओं पर पितृसत्ता को बढ़ावा देकर उनका उत्पीड़न करती हैं। अब समय आ गया हैं जब हमें यह पूछने की आवश्यकता है कि आखिर एक महिला दूसरी महिला पर, पितृसत्ता को बढ़ावा देते हुए, उत्पीड़न क्यों करती हैं?
मेरे परिवार ने सौभाग्य से आज तक मेरे भाई और मेरे बीच कभी भी भेदभाव नहीं किया। हम दोनों को कभी ये नहीं बोला गया कि तुम लड़की हो तो तुम सिर्फ ‘लड़कियों जैसे चीज़े’ कर सकती हो, या फिर तुम लड़के तो तुम सिर्फ ‘लड़कों जैसी चीज़े’ कर सकते हो। हमारे माता पता ने हमें कभी भी ‘लड़का-लड़की’ जैसे समाज के द्वारा बनाए ढांचे तथा नियमो में सीमित नहीं किया गया।
मेरी एक चाची हैं जिन्होंने मेरे जीवन पर बहुत प्रभाव डाला है। जब भी वह हमसे मिलने आती थीं, तब मैं और मेरा भाई उनके लिए कभी बच्चे नहीं थे हम हमेशा ‘लड़का और लड़की’ अतः अलग-अलग थे।
मुझे याद है कि वह कैसे मेरी माँ को कहती थी की “अपनी लड़की को सम्भाल के रखो, इसकी हरकतें लड़कों जैसी होती जा रहीं हैं।”
मेरी माँ ने कभी भी मुझे कभी भी समाज के हिसाब से जो काम लड़के करते हैं जैसे खेल कूद इत्यादि में शामिल ना होने के लिए मजबूर नहीं किया। हालांकि, मेरी चाची की उपस्थिति में, उन्होंने मुझे वह सब काम जो लड़कियों हिसाब से करना शोभा नहीं देते वह करने हमेशा रोका है। यह सब इसलिए कि मेरी चाची मुझे एक टॉम्बॉय का टैग ना दें और मेरी माँ को एक बच्चे की परवरिश कैसे की जाए इस मुद्दे पे भाषण ना दें।
हालाँकि यह तकनीकी रूप से पितृसत्तात्मक सोच नहीं हैं, लेकिन मेरी माँ यह मेरी चाची को खुश करने के लिए करती थीं। मेरी चाची हमेशा पितृसत्तात्मक सोच का प्रसार करती थी और एक बच्चे को पालने के बुनियादी पितृसत्तात्मक नियमों को लागू करने की कोशिश करती थी। अपनी पितृसत्ता से भरी रूढ़िवादी सोच को दूसरे को बताना तथा उन्हें पितृसत्तात्मक नियमों को लागू करने के आदेश देना औरतों की तरफ से पितृसत्ता को बढ़ावा देना के तरीकों में से एक है।
सच कहूँ तो, एक या दूसरे तरीके से, जब तक मुझे नारीवादी शिक्षा की दुनिया नहीं दिखाई गई थी, मेरी चाची के विचारों ने मेरी जीवन शैली भी काफी प्रभावित किया हैं।
अबेदा सुल्ताना अपनी किताब पितृसत्ता और महिलाओं की अधीनता में: सैद्धांतिक विश्लेषण, में कहती हैं,
पितृसत्ता एक सत्ता प्रणाली के रूप में लोगों को प्रभावित करती है, जहाँ महिलाओं को हमेशा दबाया जाता है तथा उन्हें हमेशा पुरुषो के प्रति कमतर समझा जाता है। और इस प्रकार, यह प्रणाली सार्वजनिक और निजी दोनों स्थानों पर पुरुषों को प्राथमिकता देना सिखाती है।
इसलिए जब भी हम पितृसत्ता के बारे में सोचते हैं, तो हम शायद ही कभी इस बुरी प्रथा को बढ़ाने में महिलाओं के योगदान को स्वीकार करते हैं। मेरी चाची की तरह कई महिलाएं हैं जो अपने पितृसत्तात्मक आदर्शों के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दूसरों को पितृसत्ता का पालन करने के लिए प्रभावित करती हैं।
इस सवाल का जवाब शक्ति और स्वार्थ के प्रति मनुष्य आकर्षण से दिया जा सकता है; एक या दूसरे अर्थ में पितृसत्ता शक्ति को दर्शाती है। अगर आपके पास शक्ति है तो आप सोचते हैं कि बाकी सब लोग आपसे कमतर हैं।
एक बहु के रूप में, एक महिला के पास ‘घर चलाने’ की शक्ति नहीं होती है और वह भी पितृसत्ता के कारण उस पर होने वाले अत्याचारों का शिकार होती है। हालाँकि, एक सास के रूप में, वह यह शक्ति रखती है और भारतीय सेट अप में आमतौर पर अपनी बहु पर उत्पीड़न करती है।
एक बहू के रूप में वह जिस भी दौर से गुजरीं, वह सुनिश्चित करती हैं कि उसकी बहू भी उसी से गुजरे। यह पैटर्न पीढ़ियों में एक अनुष्ठान की तरह चलता है। किसी महिला ने एक बार सत्ता की स्थिति को संभाल लिया और अपनी बहू पर अत्याचार शुरू कर दिया और अब परिवार की हर महिला ऐसा ही करती है।
भारतीय समाज में एक महिला कैसे व्यवहार करती है और सोचती है यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि अन्य महिलाएं उसके बारे में क्या सोचती हैं। जिस तरह से वे कपड़े पहनती हैं, चलती हैं, बात करती हैं और जिस तरह का वह व्यहवार रखती हैं, ये सब चीज़े मुख्या रूप से मोहल्ले वाली आंटियों के उसके प्रति राय पर निर्भर करता हैं।
हम सभी जानते हैं कि कुछ पड़ोस की आंटियों के अस्तित्व का एकमात्र उद्देश्य हमारी माताओं को हमारे किसी भी आक्रामक व्यवहार की सूचना देना है। कुछ ऐसा जो ना केवल बेटियों को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित करता है बल्कि उन माताओं को भी प्रभावित करता है जो अपने स्वयं के पालन-पोषण पर सवाल उठाने लगती हैं।
पितृसत्तात्मक महिलाओं के ये पैटर्न दूसरी महिलाओं के मन में अचेतन भेदभाव पैदा करते हैं। यह दुसरो के प्रति तथा खुद के प्रति उनके व्यहवार को प्रभावित करता हैं। अन्य महिलाओं द्वारा पितृसत्ता का शिकार होने के कारण महिलाएं बहिष्कृत और कमतर महसूस करती हैं। इसके बाद वे दूसरी महिलाओं के लिए उस विचारधारा को अपना लेती जो उनपे दूसरी औरतें दिखती हैं।
इन पितृसत्तात्मक महिलाओं से लड़ने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक वह है, वह सब काम करें जो आपको पसंद हों । यदि आप घर में बल्ब बदलना चाहते हैं, तो ऐसा करें। आप जिस कपड़े से प्यार करते हैं उस ही पहने भले ही वह साड़ी जितना बड़ा हो या स्कर्ट जितना छोटा! यदि आप पीरियड्स के दौरान पूजा करना चाहते हैं, तो करें क्यूंकि यह आपकी आस्था और पसंद की बात है, ना कि उनकी जो आपको प्रभावित करें।
शुरुआत में, यह कठिन होने वाला है, लेकिन इस प्रयास की ओर छोटे छोटे कदम उठाएं। छोटी शुरुआत करें और सशक्त महसूस करें। यहां ध्यान देने योग्य सबसे महत्वपूर्ण चीज़ यह है कि आपके आसपास पितृसत्तात्मक सोच को बढ़ावा देने वाली महिलाओं की तरह आपको बनना ज़रूरी नहीं हैं। यदि कोई महिला अपनी पितृसत्तात्मक विचारधारा के साथ आप पर अत्याचार कर रही है, तो अन्य महिलाओं के साथ आपको भी ऐसा करना चाहिये , ये सोच गलत है।
ध्यान रखे अगर आप पैटर्न को तोड़ेंगे तो बदलाव अपने आप आएगा।
मूल चित्र : YouTube
I read, I write, I dream and search for the silver lining in my life. Being a student of mass communication with literature and political science I love writing about things that bother me. Follow read more...
Please enter your email address