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इस प्राइड मंथ एलजीबीटी से जुड़े कुछ मिथकों को दूर कर तथ्यों को समझें   

अगर आपने अभी भी अपने मन में एलजीबीटी से जुड़ी अनगिनत गलत फ़हमिया पाल रखी हैं तो इस प्राइड मंथ में जानिए एलजीबीटी से जुड़े कुछ मिथक और तथ्य। 

अगर आपने अभी भी अपने मन में एलजीबीटी से जुड़ी अनगिनत गलत फ़हमिया पाल रखी हैं तो इस प्राइड मंथ में जानिए एलजीबीटी से जुड़े कुछ मिथक और तथ्य। 

लोगों को अब ये समझना बहुत जरूरी हो गया है कि एलजीबीटी – गे, लेसबियन, बाई सेक्सुअल या ट्रांसजेंडर होना कोई कलंक नहीं हैं। अब वक़्त आ चुका है कि हम उन्हें स्वीकार करें और उन पर भी गर्व करें। समय के साथ हमारे समाज के नज़रिये को बदलना ही होगा। और उसके लिए सबसे ज़रूरी है कि लोगों को सही जानकारी हो, उन्हें सही शिक्षा हो। क्यूँकि आखिर एक गलत नज़रिया तभी बदल सकता है, जब हमारा नज़रिया सही हो। इसीलिए प्राइड मंथ को सोशल मीडिया पर बढ़ चढ़कर सेलिब्रेट करने से पहले सही जानकारी रखें और ये जानकारी अपने आस-पास के लोगों को भी दें। 

2014 की जनगणना में पहली बार भारत में थर्ड जेंडर को शामिल किया गया था। और उसमे 4.9 लाख लोगों ने थर्ड जेंडर में अपने आप को रजिस्टर करवाया था। लेकिन उस समय कई ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट का कहना था कि इनकी संख्या 7 से 8 गुना ज्यादा है। समाज के डर के कारण या सही जानकारी के अभाव की वजह से यह गणना एक्यूरेट नहीं है। यह बात आज के 5-6 साल पुरानी है। अब होने वाली जनगणना में संख्या में इज़ाफ़ा होगा। लेकिन क्या आप उसके लिए तैयार हैं? या अभी भी अपने मन में एलजीबीटी से जुडी अनगिनत गलत फ़हमिया पाल रखें हैं। हम सही मायने में सभी लोगों की इज़्ज़त तभी कर सकते हैं जब उनके बारे में कोई मिथक न पाल रखा हो।

इसीलिए इस प्राइड मंथ में जानिए एलजीबीटी से जुड़े कुछ मिथक और तथ्य 

शुरुवात शुरू से ही करते है। आज भी बहुत से लोग एलजीबीटी/LGBTQ की या तो फुल फॉर्म नहीं जानते हैं और अगर जानते भी हैं तो मतलब नहीं पता। 

समलैंगिकों को आम बोलचाल की भाषा में एलजीबीटी (LGBT) यानी लेस्ब‍ियन (LESBIAN), गे(GAY), बाईसेक्सुअल (BISEXUAL) और ट्रांसजेंडर (TRANSGENDER) कहते हैं । वहीं कई और दूसरे वर्गों को जोड़कर इसे क्व‍ियर (Queer) समुदाय का नाम दिया गया है। इसलिए इसे LGBTQ भी कहा जाता है।

L – लेस्बियन 

एक महिला जिसका शारीरिक, रोमांटिक और / या भावनात्मक आकर्षण अन्य महिलाओं के लिए होता है। कुछ लेस्बियन्स, गे या गे वीमेन के रूप में पहचान करना पसंद कर सकते हैं। इनकी शारीरिक बनावट और सेक्सुअल ओरिएंटेशन एक महिला के सामान और उनकी ही तरफ होती है। 

G – गे

यह उन पुरुषों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिनका शारीरिक, रोमांटिक और / या भावनात्मक आकर्षण अन्य पुरुषों के लिए होता है। यह समलैंगिक महिलाओं के लिए पसंदीदा शब्द है। 

B – बाई सेक्सुअल 

एक व्यक्ति जो समान लिंग के या दूसरे लिंग के लोगों के लिए शारीरिक, रोमांटिक और / या भावनात्मक आकर्षण रखता है। लोग अपने जीवन में अलग-अलग तरीकों और लेवल में इस अट्रैक्शन का अनुभव कर सकते हैं। 

T – ट्रांसजेंडर – 

ट्रांसजेंडर टर्म उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिनकी जेंडर आइडेंटिटी या जेंडर एक्सप्रेशन उनके सेक्स से अलग होते हैं ( मतलब जो रोल उन्हें उनके सेक्स के हिसाब से जन्म के समय दिया गया था।) ये थर्ड जेंडर में आते हैं। ये वो लोग होते हैं जिनके जननांग( प्राइवेट पार्ट) पैदा होते वक्त पुरुष की तरह होते हैं और जिसे लड़का माना जाता है। लेकिन समय के साथ जब ये लोग बड़े होते हैं और अपने अस्तित्व को पहचनाते हैं तो खुद को लड़की मानते हैं। तो इन्हें ‘ट्रांसवुमेन’ कहते हैं और इसके उलट हो जाए तो इन्हें ‘ट्रांसमेन’ कहते हैं।

 Q – क्वीयर  

सारी एलजीबीटी/LGBT समुदाय काे क्वीयर समुदाय कहते हैं। हम ये भी कह सकते हैं जो इंसान ना अपनी पहचान तय कर पाए हैं ना ही शारीरिक चाहत, यानी जो ना खुद को आदमी, औरत या ‘ट्रांसजेंडर’ मानते हैं और ना ही ‘लेस्बियन’, ‘गे’ या ‘बाईसेक्सुअल’, उन्हें ‘क्वीयर’ कहते हैं। हालांकि कई LGBT समुदाय इस टर्म को स्वीकार नहीं करते हैं। 

I – इंटर-सेक्स 

कई जगह LGBTIQ टर्म भी इस्तेमाल किया जाता है।  ये भी ट्रांसजेंडर का हिस्सा माना जाता है। ये वह लोग होते हैं जिनके पैदा होने के बाद उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन (प्राइवेट पार्ट) को देखकर ये साफ नहीं हो पाता कि वह लड़का है या लड़की। 

ये कुछ बेसिक सी टर्म्स है जिनके बारे में सबको पता होना चाहिए।  इन्हीं से कुछ गलत फ़हमिया तो दूर हो जाती है, लेकिन फिर भी कई ऐसे भ्रम है, जिनकी वज़ह से LGBTQ कम्युनिटी को बहुत सी प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। 

एलजीबीटी के कुछ मिथक एवं तथ्य 

मिथक : एलजीबीटी होना असामान्य है 

तथ्य: लेस्बियन, गे और बाई सेक्सुअल लोगों के लिए, अपने ही लिंग के सदस्यों के साथ यौन आकर्षण और संबंध होना स्वाभाविक है। कुछ ट्रांसजेंडर्स अपने आप को होमो सेक्सुअल या बाई सेक्सुअल मानते हैं तो कुछ हेट्रो सेक्सुअल मानते हैं। इन फीलिंग्स का आना और उनके साथ आगे बढ़ना स्वाभाविक है, लेकिन अगर आप उन्हें मज़बूर करेंगे तो वो ज़रूर असामान्य हो जायेगें। रिश्ते की क्वालिटी महत्वपूर्ण होती है, न कि लिंग की। तो इस बात को दिमाग से निकल दें की एलजीबीटी होना असामान्य है।

और आखिर सामान्य की परिभाषा क्या होती है? हेट्रो सेक्सुअल होकर आप दूसरों को प्रताड़ित करें, क्या वो सामान्य है?

मिथक : एलजीबीटी वेस्टर्न कल्चर को बढ़ावा देने की वजह से आया है 

तथ्य : लोगो को यह समझना बहुत जरूरी है कि गे, लेस्बियन, ट्रांसजेंडर होना कोई ट्रेंड नहीं है, जो कहीं से अडॉप्ट किया जाये। ये एक लाइफस्टाइल है, ठीक उसी प्रकार से जैसे एक महिला या पुरुष की होती है। और हां, हमारा कंस्टीटूशन यानि कि भारतीय कानून ज़रूर वेस्टर्न है। 1860 में ब्रिटिश ने सेक्शन 377 ( इसके तहत समलैंगिकता अपराध थी।) की शुरुवात भारत, पाकिस्तान और श्री लंका में करी थी। तो ये लोग नहीं हमारा कानून वेस्टर्न है, उसे छोड़ें तो बेहतर होगा। 

साथ ही हमारी अपनी भारतीय संस्कृति में यौन संबंधों के कई उदाहरण हैं – पुरानी वास्तुकला में या साहित्य में। उदाहरण के लिए, काम सूत्र में और खजुराहो जैसी वास्तुकला में समान सेक्स संबंधों का उल्लेख है।  

मिथक : समान-सेक्स संबंध में, एक साथी आमतौर पर मर्दाना भूमिका निभाता है और दूसरा एक स्त्री की भूमिका निभाता है

तथ्य : जिस प्रकार हेट्रो सेक्सुअल रिलेशनशिप में सभी प्रकार के संबंध पाए जाते हैं, उसी प्रकार सेम-सेक्स रिलेशनशिप में होता है। कौन क्या करेगा, ये फैसला लेने वाले आप और हम कोई नहीं होते है। एक रिलेशनशिप में समानता और म्यूच्यूअल अंडरस्टैंडिंग जरूरी होती है, जहां आपका पार्टनर कौन है और उसे क्या पसंद है, ज़्यादा मायने रखता है।

तो सामान्य तौर पर जरूरी नहीं है की एक पार्टनर को पुरुष और एक को महिला की भूमिका निभानी पड़े। यह हर कपल पर निर्भर करता है कि वो अपने रिश्ते को किस प्रकार से चलना चाहते हैं। और हां यह बात उनके सेक्सुअल और इमोशनल रिलेशन दोनों पर लागू होती है।    

मिथक : अधिकांश एलजीबीटी लोगों को अन्य लिंग के व्यक्ति के साथ अच्छे सेक्स संबंधों से ठीक किया जा सकता है

तथ्य : यह कोई बीमारी नहीं है। तो इसका कोई इलाज नहीं हैं। कई एलजीबीटी लोगों के पास हेट्रोसेक्सुअल संबंध या अनुभव होता हैं।  इन अनुभवों ने उनके ओरिएंटेशन को नहीं बदला है।

अगर आप हेट्रो सेक्सुअल है, तो एक बार सोच कर देखिएगा की क्या आपको सेम सेक्स रिलेशन से ट्रांसजेंडर या गे या लेस्बियन में बदला जा सकता है? जवाब तुरंत नहीं ही आएगा। इसीलिए ठीक उसी प्रकार एलजीबीटी लोगों को भी नहीं बदला जा सकता है। कई होमोसेक्सुअल लोग सामाजिक दबाव में आकर हेट्रो सेक्सुअल रिलेशनशिप में आ तो जाते हैं, लेकिन वो कभी खुश नहीं रह पाते। इससे दोनों पार्टनर को ही बहुत दुःख और दर्द से गुजरना पड़ता है।    

मिथक : अधिकांश एलजीबीटी  लोग मनोचिकित्सा या करेक्टिव रेप या कन्वर्ज़न थेरेपी से ठीक हो सकते हैं 

तथ्य : मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक और मानसिक स्वास्थ्य प्रोफ़ेशनल्स भी इस बात से सहमत हैं कि समलैंगिकता एक बीमारी, मानसिक विकार या भावनात्मक समस्या नहीं है। 1990 में, अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन ने कहा कि कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं हैं कि कन्वर्ज़न थेरेपी काम करती है।

किसी के ओरिएंटेशन को बदलने से किसी का व्यवहार या इमोशंस नहीं बदल जाता है। आम तौर पर इस तरह की सर्जरी करने वाले चिकित्सक आमतौर पर समलैंगिकता के खिलाफ एक वैचारिक दृष्टिकोण वाले संगठनों से आते हैं। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन ने किसी भी प्रकार की कन्वर्ज़न थेरेपी को किसी भी रूप में मान्यता नहीं दी है। 

मिथक : आपके मित्र मंडली या कार्य स्थल में एलजीबीटी लोग आपको भी एलजीबीटी बना देंगे

तथ्य : किसी से प्यार करना या पसंद करना संक्रामक नहीं है। जो लोग एलजीबीटी हैं, उनके साथ समय बिताने से आप एलजीबीटी नहीं बन जाते हैं ठीक उसी प्रकार से जैसे किसी लेफ्ट हैंडीड व्यक्ति के सम्पर्क में आने से आप लेफ्ट हैंडीड नहीं बन जाते हैं। उनसे बात करें, वो भी ठीक आप ही की तरह हैं, और शायद आपसे बेहतर ही होंगे।  

मिथक : एलजीबीटी व्यक्ति बहुत सारे सेक्स रिलेशनशिप में होते हैं

तथ्य : सेम सेक्स डिज़ायरिंग (इच्छुक) व्यक्ति या फिर ट्रांसजेंडर्स भी उसी प्रकार सेक्स रिलेशनशिप रखते हैं, जिस प्रकार एक हेट्रो सेक्सुअल व्यक्ति रखता है। और सबसे पहली बात ये हर व्यक्ति की अपनी चॉइस है की वो अपनी सेक्स लाइफ को कैसे रखना चाहता है।  हम किसी पर टिप्पणी करने वाले कोई नहीं होते।

कई ट्रांसजेंडर्स और होमो सेक्सुअल व्यक्ति अपने पार्टनर के साथ कमिटेड होते हैं और बेहतरीन तरीके के अपने रिश्तें निभाते हैं। और कई लोग असेक्सुअल(सेक्स में रूचि न होना) भी होते हैं। जिस प्रकार हम हेट्रो सेक्सुअल लोगों की सेक्स लाइफ पर कमेंट या बात नहीं कर सकते हैं, ठीक उसी प्रकार ट्रांसजेंडर्स की सेक्स लाइफ के बारे में भी हम अंदाजा नहीं लगा सकते हैं की वो किस तरह के सेक्सुअल रिलेशन शिप में रहते हैं। 

मिथक : ज़्यादातर पेडोफाइल्स समलैंगिक होते हैं 

तथ्य : बच्चों का यौन शोषण मुख्य रूप से परिवार में ही होता है। पैडीयट्रिक्स की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों के साथ 95% से अधिक दुर्व्यवहार पुरुष ही करते हैं। लेकिन एक बच्चा का शोषण हेट्रो सेक्सुअल पुरुष के करने की संभावना 100 गुना ज्यादा होती है।  पीडोफाइल(बच्चों के साथ सेक्स करने वाले) पुरुष या महिला पीड़ितों के बीच अंतर नहीं करते हैं; हालाँकि, लड़कियाँ दोगुनी ज्यादा शिकार होती हैं। 90 % अपराधियों ने अपनी आइडेंटिटी हेट्रोसेक्सुअल ही बताई है। 

इस रिपोर्ट से साफ़ जाहिर होता है की अपराधी अपनी पॉवर और कंट्रोल की वजह से ज्यादा अपराध करते हैं न कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से। इसी मिस कन्सेप्शन की वजह से ज़्यादातर एलजीबीटी लोगों पर हमले होते हैं। लेकिन यह सच है कि एलजीबीटी लोग भी हेट्रोसेक्सुअल लोगों की तरह ही चिंतित हैं कि बच्चों को पेडोफाइल्स से कैसे बचाएं। 

मिथक : एलजीबीटी लोग अच्छे माता-पिता नहीं हो सकते हैं 

तथ्य : रिसर्च से सामने आया है की होमो सेक्सुअल कपल के बच्चे अक्सर अपने पीयर ग्रुप द्वारा चिड़ाये जाने को लेकर चिंतित होते हैं, लेकिन ऐसा कहीं नहीं है की उन्हें उनके पेरेंट्स से शिकायत होती हो। उनके इमोशनल व्यवहार से लेकर शारीरिक व्यवहार समान उसी प्रकार होते हैं जिस प्रकार एक हेट्रो सेक्सुअल कपल के बच्चों में होते हैं। और हां बच्चे ट्रांसजेंडर होंगे या होमो सेक्सुअल या फिर हेट्रो सेक्सुअल, इसका पेरेंटिंग से कोई नाता नहीं है।

दोनों प्रकार के कपल के बच्चों में 7% – 10 % एलजीबीटी होने की संभावना होती है। तो उनकी परवरिश पर शक करने से पहले आप अपनी परवरिश सुधारें और ध्यान दें कि कहीं आपके बच्चे ही तो नहीं जो होमो सेक्सुअल पेरेंट्स के बच्चों को परेशान कर रहें हैं। 

मिथक : जो पुरुष स्त्री की तरह व्यवहार करते हैं, वो गे होते हैं, छोटे बाल और गहरी आवाज़ वाली महिला लेस्बियन होती हैं, ट्रांसमेन गुप्त रूप से लेस्बियन होते और ट्रांसवूमन वास्तव में गे होती हैं

तथ्य : ये रूढ़िवादिता ही है जो आज भी सेक्सुअल ओरिएंटेशन को जेंडर रोल के साथ देखती है। कई समलैंगिक पुरुष हैं जो पुल्लिंग है, और कई समलैंगिक महिलाएं हैं जो स्त्रीलिंग है। इसके अलावा, कुछ हेट्रोसेक्सुअल पुरुषों में भी स्त्रियों के लक्षण होते हैं, और कुछ हेट्रोसेक्सुअल महिलाओं में मर्दाना लक्षण होते हैं। सभी भ्रम को दूर करने के लिए सबसे पहले आपको सेक्स और जेंडर में अंतर पता होना चाहिए और उसके बाद सभी तरह के सेक्सुअल ओरिएंटेशन के बारे में।

ट्रांसमैन वे लोग हैं जिन्हें उनके जन्म के समय महिला लिंग मिला था लेकिन उनकी लिंग पहचान ( जेंडर आइडेंटिटी) और अभिव्यक्ति पुरुषों की है। वे पुरुषों के रूप में संबोधित किया जाना पसंद करते हैं, और इसका कारण यह है कि वे पुरुष हैं। हो सकता है उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन महिलाओं की तरह हो।  इसी तरह, ट्रांसवूमन वे लोग हैं जिन्हें जन्म के समय पुरुष लिंग मिला था लेकिन उनकी लिंग पहचान और अभिव्यक्ति महिलाओं की है। वे महिलाओं के रूप में संबोधित किया जाना पसंद करते हैं क्योंकि वे महिलाएं हैं। और वे पुरुषों या महिलाओं के प्रति आकर्षित हो सकते हैं।

एलजीबीटी समुदाय के लोगों को भी गर्व के साथ स्वीकार करें   

उम्मीद है अब आपकी कुछ गलत फहमियाँ दूर हुई होगी। और अभी भी बहुत सी गलत फहमियाँ होंगी जिनकी वजह से आप एलजीबीटी समुदाय के लोगों से रिश्ता नहीं रखना चाहते। तो उस समस्या के लिए एक ही समाधान है की आप उनसे बात करें, उनसे अपनी गलत फहमियाँ दूर करें। इस प्राइड मंथ 2020 में अपने सारे मिथ दूर करके, पूरे साल एलजीबीटी समुदाय के लोगों को दिल से स्वीकार करें।   

नोट : जून प्राइड मंथ है, और हम इसे चिह्नित करने के लिए लेखों की एक श्रृंखला रख रहे हैं, जिसमें एलजीबीटीक्यूए + समुदाय और उनके सहयोगियों की आवाज़ें शामिल हैं, जिनमें विमेंस वेब कम्युनिटी भी शामिल है। ये लेख उसी श्रृंखला की एक कड़ी है। 

 

मूल चित्र : Canva

 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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